भारत में पूजा-पाठ, व्रत और धार्मिक अनुष्ठानों का विशेष स्थान है। उपवास के दौरान, अनाज और नमक के सेवन से परहेज किया जाता है, और व्रती व्यक्ति केवल कुछ सीमित चीजें जैसे फल, दूध-दही, कुट्टू, सिंघाड़े का आटा और आलू खाते हैं। इन्हीं व्रत के खानों में से एक है साबूदाना, जिसे साबूदाना खिचड़ी, वड़ा और खीर के रूप में उपवास के दौरान खाया जाता है। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि साबूदाना की उत्पत्ति कहां हुई और यह भारत तक कैसे पहुंचा? आइए जानते हैं इसके सफर के बारे में।
ब्राजील से सफर की शुरुआत(Origins of Sago in Brazil)
साबूदाना का सबसे प्राचीन इस्तेमाल उष्णकटिबंधीय (ट्रॉपिकल) क्षेत्रों में हजारों साल पहले शुरू हुआ था। सबसे पहले, ब्राजील में स्थानीय जनजातियों ने सागो पाम से स्टार्च निकालकर इसे भोजन के रूप में इस्तेमाल करना शुरू किया था।
ब्राजील की तुपी और गुआरानी जनजातियां अपने खाने में सागो पाम के स्टार्च को मुख्य भोजन के रूप में शामिल करती थीं। अमेजन Rainforest का नम और दलदली वातावरण साबूदाना के पेड़ों के लिए बहुत अनुकूल था, जिससे इसे उगाने और खाने की परंपरा शुरूहुई।
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साबूदाना का यूरोप और एशिया तक विस्तार
16वीं शताब्दी में, जब पुर्तगाली खोजकर्ता ब्राजील पहुंचे, तो उन्होंने देखा कि स्थानीय लोग सागो पाम के पेड़ों से स्टार्च निकालकर उसका उपयोग भोजन के रूप में कर रहे थे। इन यूरोपीय यात्रियों ने इस तकनीक को सीखा और धीरे-धीरे इसे अन्य देशों तक पहुंचाया।
ब्राजील और यूरोप के बीच हुए व्यापार ने साबूदाना के बारे में जानकारी को दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में फैलाने में मदद की। धीरे-धीरे, यह एशियाई देशों तक भी पहुंचा और वहां इसकी व्यावसायिक खेती शुरू हो गई।
चीन और दक्षिण-पूर्व एशिया में साबूदाना की लोकप्रियता(Sago in China and Southeast Asia)
हालांकि साबूदाना की शुरुआत ब्राजील में हुई, लेकिन यह चीन और दक्षिण-पूर्व एशिया में तेजी से लोकप्रिय हुआ और वहां इसका व्यावसायिक उत्पादन होने लगा।
कहा जाता है कि मलेशिया, इंडोनेशिया और दक्षिणी चीन में सदियों पहले से साबूदाना का बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता था। इन क्षेत्रों में इसे स्टार्च के रूप में इस्तेमाल किया जाता था, जिससे इसे खाना पकाने और बेकिंग में उपयोग किया जा सके।
13वीं शताब्दी तक, साबूदाना चीन के ग्वांगडोंग और फुजियान जैसे दक्षिणी प्रांतों में एक महत्वपूर्ण खाद्य सामग्री बन चुका था। चीन और दक्षिण-पूर्व एशियाई व्यापारियों ने इसे एशिया के अन्य हिस्सों तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई।
भारत में साबूदाना का आगमन(How Did Sago Reach India?)
भारत में साबूदाना का आगमन व्यापार और प्रवास मार्गों के माध्यम से हुआ। दक्षिण-पूर्व एशिया और भारतीय उपमहाद्वीप के बीच सदियों से मजबूत व्यापारिक संबंध रहे हैं।
प्राचीन समय में चीनी व्यापारी भारतीय बंदरगाहों पर अपने सामान के साथ साबूदाना भी लाते थे, जिससे धीरे-धीरे भारत में इसका उपयोग बढ़ने लगा। 19वीं शताब्दी तक, यह भारत के तमिलनाडु, केरल और आंध्र प्रदेश जैसे दक्षिणी राज्यों में यह एक महत्वपूर्ण खाद्य सामग्री बन चुका था।
20वीं शताब्दी की शुरुआत में, भारत ने टैपिओका की जड़ों से साबूदाना बनाने की अपनी तकनीक विकसित कर ली थी। इसके बाद, तमिलनाडु में पहली साबूदाना फैक्टरियां स्थापित की गईं, खासकर सलेम और इरोड जिलों में। ये क्षेत्र आज भी भारत में सबसे बड़े साबूदाना उत्पादन केंद्रों में शामिल हैं।
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साबूदाना का आयुर्वेदिक महत्व(Ayurvedic Importance Of Sago)
साबूदाना में अधिक मात्रा में कार्बोहाइड्रेट पाया जाता है, जिससे यह तुरंत एनर्जी प्रदान करता है।
आयुर्वेद के अनुसार, साबूदाना में शीतलन (Cooling) गुण होते हैं, जो शरीर को अंदर से ठंडक पहुंचाने में मदद करते हैं। यही कारण है कि इसे गर्मियों में विशेष रूप से सेवन करने की सलाह दी जाती है। साबूदाना बहुत हल्का होता है, इसलिए इसे पचाने में समय नहीं लगता है।
FAQ: History of Sago (Sabudana)
प्रश्न- भारत में साबूदाना का उत्पादन सबसे ज्यादा कहां होता है?
उत्तर- तमिलनाडु में सलेम जिले को भारत की साबूदाना राजधानी के रूप में जाना जाता है, जहां टैपिओका आधारित साबूदाना का निर्माण किया जाता है।
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