ब्रेस्टफीडिंग कराने से एक नवजात को ही नहीं बल्कि मां को कई फायदे होते हैं। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक ज्यादातर देशों में पहले छह महीने में केवल ब्रेस्टफीडिंग कराने की दर 50 प्रतिशत से भी नीचे है जोकि वल्र्ड हेल्थ असेंबली का 2025 का लक्ष्य है। इस स्थिति की गंभीरता का अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि अब हम जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल एक अगस्त से 8 अगस्त तक स्तनपान सप्ताह मनाते हैं। इस प्रमाण आधारित अनुसंधान से एक बार फिर से स्तनपान का महत्व सामने आया है।
आईवीएच सीनियर केयर में वरिष्ठ न्यूट्रिशन एडवाइज़र डॉक्टर मंजरी चंद्रा ने कहा, गर्भधारण से शुरू होकर दूसरे जन्मदिन तक जीवन के प्रथम हजार दिनों में पोषण की आपूर्ति से दीर्घकालीन स्वास्थ्य की नीव पड़ती है। स्तनपान इस प्रारंभिक पोषण का एक आवश्यक हिस्सा है क्योंकि मां का दूध पोषक तत्वों और बायोएक्टिव निर्माण कारकों का एक बहुआयामी मिश्रण है जोकि जीवन के शुरुआती 6 महीनों में एक नवजात शिशु के लिए आवश्यक हैं। जीवन की शुरुआत में पोषक तत्वों की कमी का लंबे समय में असर दिख सकता है जो कई पीढ़ियों तक रह सकता है।
स्तनपान को हमेशा से ही नवजात शिशुओं के लिए एक वरदान के तौर पर देखा गया है और मातृ़त्व लाभों को हाल तक महसूस नहीं किया गया। मंजरी चंद्रा ने कहा, श्नए प्रमाणों से पता चला है कि स्तनपान कराना माताओं के लिए भी समान रूप से महत्वपूर्ण है और इससे कई अल्पकालीन एवं दीर्घकालीन लाभ मिलते हैं। माताओं को तत्काल होने वाले लाभों में प्रसव के उपरांत वज़न में कमी और मां एवं शिशु के बीच गहरा रिश्ता शामिल हैं। गर्भावस्था के समय गर्भाशय में नए जीवन को सहयोग के लिए कई शारीरिक बदलाव होते हैं। गर्भावस्था के दौरान शरीर हाइपरलिपिडेमिक और इंसुलिन रोधक चरण से गुज़रता है जिससे बाद के जीवन में ह्रदय रोग और टाइप-2 मधुमेह होने की आशंका बढ़ती है। स्तनपान से लंबे समय में मेटाबॉलिक और ह्रदय की बीमारियों का जोखिम घटते देखा गया है और यह टाइप-2 मधुमेह के जोखिम में 4-12 प्रतिशत की कमी लाने से जुड़ा है।
स्तनपान को प्रोत्साहन देना, आने वाली पीढ़ियों का एक स्वस्थ भविष्य सुनिश्चित करने के लिए आज के समय की जरूरत है। विश्व स्तनपान सप्ताह एक शानदार पहल है, हालांकि महज एक सप्ताह से भारत के लिए यह समस्या हल नहीं होगी क्योंकि भारत स्तनपान कराने की व्यवस्था में दक्षिणपूर्व देशों में सबसे निचले पायदान पर है जहां केवल 44 प्रतिशत शिशु जीवन के शुरुआती घंटे में मां का दूध पी पाते हैं। स्तनपान की व्यवस्था में सुधार लाने के लिए सरकार और समाज द्वारा सामूहिक प्रयास करने की जरूरत है। शिशु की देखभाल करने वाली माताओं को एक अनुकूल माहौल उपलब्ध कराने के लिए सरकार को सार्वजनिक स्थानों पर नर्सिंग कक्षों का निर्माण करने की प्रतिबद्धता दिखानी है और समाज को सार्वजनिक जगह पर स्तनपान पर रोक के खिलाफ आने की जरूरत है।
जब माताएं अपने भोजन में इन अतिरिक्त आवश्यक पोषक तत्वों को निरंतर नहीं लेती हैं तो शरीर दूध तैयार करने के लिए अतिरिक्त ऊर्जा लेता है जिससे वज़न घट जाता है। डॉ मंजरी चंद्राए वरिष्ठ पोषण सलाहकारए आईवीएच सीनियरकेयरए ने कहा, स्तनपान कराने वाली माताओं को प्रतिदिन उन विटामिन सप्लीमेंट्स को लेना जारी रखने की सलाह दी जाती है जो उन्होंने प्रसव पूर्व लिया था। विटामिन मां के दूध में स्रवित होते हैं और मां के शरीर में पोषक तत्वों की कमी से सीधे तौर पर उनका दूध प्रभावित होता है। शाकाहार करने वाली माताओं को विटामिन डी, बी12 और कैल्शियम की भी आवश्यकता होती है।
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