शीला अपने ऑफिस में अपने अच्छे व्यवहार के लिए काफी पंसद की जाती है। हर शख्स कहता है कि वह काफी खुशमिजाज है। लेकिन घर आकर वह छोटी-छोटी चीजों के लिए अपने बच्चे 5 साल के रोहन को बुरी तरह डांट देती है, फिर चाहे वजह उसकी शरारतें हों, खाना देरी से खाने की आदत हो या फिर होमवर्क पूरा न करना। शीला का यह व्यवहार रोहन के साथ-साथ घर के दूसरे सदस्यों को भी दुखी कर देता है। स्वयं शीला भी बाद में अपने बेटे पर चिल्लाने को लेकर अफसोस करती है लेकिन फिर भी वह अपने व्यवहार में बदलाव नहीं ला पाती। कहीं आप भी अपने बच्चे को इसी तरह तो नहीं डांटतीं? अगर हां तो आपको अपने व्यवहार पर गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है। आइए जानें क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ रजत ठुकराल से कि बच्चे पर चिल्लाने से पहले आपको क्यों दो बार सोचना चाहिए-
बच्चों को परफेक्ट बनाने की कोशिश करना उनके साथ नाइंसाफी जैसा है। सभी बच्चों का खेलकूद में मन लगता है, वे अपने काम पर बहुत ज्यादा ध्यान नहीं दे पाते, अपने भाई-बहनों से वे लड़ते हैं, सामान इधर-उधर रख देते हैं या बिखेर देते हैं और इन सब कामों की वजह से उन्हें हमेशा मम्मी पापा से डांट मिलती है। रजत ठुकराल के अनुसार बच्चे लर्निंग स्टेज में होते हैं। उनकी हर चीज को जानने और समझने में रुचि होती है तो जाहिर सी बात है उनसे बहुत सी चीजें छूट जाएंगी। ऐसे में आपको पेशंस रखने की जरूरत है। मां को अपने शब्दों पर ध्यान देने की जरूरत है। उन्हें लगता है कि उन्होंने डांटा ही तो है, बच्चे को मारा तो नहीं, तो उससे उसे चोट नहीं पहुंची, लेकिन उन्हें मालूम नहीं होता कि कड़े शब्दों से बच्चे को साइकोलॉजिकल डैमेज हो सकती है। बच्चे पर चिल्लाने से उनकी साइकोलॉजिकल हेल्थ को काफी नुकसान पहुंचता है।
बच्चे पर चिल्लाने से उन्हें अपनी सुरक्षा और आत्मविश्वास पर खतरा महसूस होता है। बच्चे अपने व्यवहार को ही मम्मी-पापा के बिहेवियर को जोड़कर देखते हैं। इसीलिए वे सोचते हैं-जब मैं कुछ अच्छा करता हूं तो मम्मी खुश होती हैं, जब मैं कुछ गड़बड़ कर देता हूं तो मम्मी चिल्लाने लगती हैं। बच्चे नाराज होने की दूसरे वजहें समझ नहीं पाते मसलन किसी तरह की बुरी खबर का मिलना, किसी से झगड़ा हो जाना या ऑफिस में किसी के साथ टेंशन हो जाना। ऐसे पेरेंटिंग स्टाइल से बच्चा उलझन में पड़ जाता है।
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अगर बच्चे लंबे वक्त तक तनाव भरे माहौल में रहते हैं जहां उन्हें मम्मी-पापा से डांट सुनने को मिलती है तो उन्हें डर, स्ट्रेस, नींद ना आने, चिंता, शारीरिक और मानसिक विकास में देरी होने, व्यवहार संबंधी समस्याएं, पढ़ने-लिखने में परेशानी, दूसरे बच्चों के साथ घुलने-मिलने में परेशानी, इमोशनल इशुज जैसी प्रॉबलम्स हो सकती हैं।
तेज आवाज में चिल्लाना भले ही आपको किसी तरह का शोषण ना लगे, लेकिन जानकार इसे शोषण की ही संज्ञा देते हैं। रजत ठुकरात बताती हैं,
'चिल्लाना बहुत बुरा है और कई बार यह शारीरिक हिंसा से भी ज्यादा बुरा होता है। चिल्लाने के साथ बाकी प्रॉब्लम्स भी खड़ी हो जाती हैं। आप अपने शब्दों के जरिए सिर्फ 10 फीसदी संदेश देती हैं। बाकी सबकुछ आपकी बॉडी लैंग्वेज व्यक्त कर देती है। सिर्फ तेज आवाज ही नहीं, आपके हाव-भाव और आपके शब्द भी बहुत मायने रखते हैं, फिर चाहें आप बच्चे की आलोचना कर रही हों, उसकी बेइज्जती कर रही हों या फिर उसके लिए कुछ टेढ़ा बोल रही हों।'
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मां अक्सर बच्चे पर हताशा में चिल्लाने लगती हैं, जब वह उनका कहा नहीं मानता। लेकिन उन्हें यह समझने की जरूरत है कि उनके चिल्लाने से बच्चा उनका मैसेज नहीं समझ पाता। जब आप तेज आवाज में उस पर चिल्लाती हैं तो वह खुद को डिफेंड करने में लग जाता है और आपका मैसेज समझने में पूरी तरह नाकाम रहता है। वहीं बच्चों पर अगर अक्सर ही चिल्लाया जाता है तो वे आपकी बात पर ध्यान देना ही बंद कर देते हैं।
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आप अपनी जिंदगी में जो भी जिम्मेदारियां निभाती हैं, उनमें से सबसे चुनौतीपूर्ण जिम्मेदारियों में से एक है पेरेंटिंग और ज्यादार महिलाओं को इसका पहले से कोई तजुर्बा नहीं होता। अच्छी बात ये है कि आप वक्त रहते अपनी कमियां सुधार सकती हैं। अगर आप कभी-कभार चिल्लाती हैं तो उसका कोई लॉन्ग टर्म इफेक्ट नहीं होगा खासतौर पर तब जब आप बच्चे से माफी मांग लें और उन्हें उनके उस व्यवहार के बारे में बताएं, जिनके कारण आप आपा खोने लगती हैं।
अगर अच्छे पेरेंट्स बच्चों पर समय-समय पर चिल्लातें हैं तो इससे बच्चे जिंदगी की कठिन परिस्थितियों के लिए तैयार हो जाते हैं और जरूरत पड़ने पर अपने लिए फाइट करना भी सीख जाते हैं।
बच्चों पर चिल्लाना एक फायर अलार्म जैसा है। इसे अगर सावधानी के साथ इस्तेमाल किया जाए और तभी जब रियलिटी में प्रॉब्लम बहुत बड़ी हो, तभी यह मुनासिब है। हालांकि गुस्सा आने पर खुद को नियंत्रित करना मुश्किल होता है लेकिन आपके लिए खुद को संयमित रखने में ही भलाई है।
अगर बच्चे किसी खतरे में पड़ने लगें तो आपका चिल्लाना स्वाभाविक है, लेकिन चिल्लाने से बच्चे का नुकसान कहीं ज्यादा हो सकता है। इसीलिए अगर आप अपने बच्चे को भीतर से मजबूत बनाना चाहती हैं तो बच्चे से शांत भाव से बात करें। इससे बच्चे का दिमाग विकसित होगा और वह तेजी से सीखेगा। जब आप बच्चे पर बेहिसाब चिल्लाती हैं तो उसके सोचने की क्षमता सीमित हो जाती है।
ज्यादातर पेरेंट्स का बच्चों की परवरिश करने का तरीका वैसा ही होता है, जैसा उन्होंने अपने पेरेंट्स से पाया होता है। पहले के वक्त में पेरेंट्स अक्सर अपने बच्चों पर चिल्लाकर उनसे दबाव में काम कराते थे क्योंकि वे यही तरीके जानते थे। जब आप नए तरीके सीखेंगी तो आप ज्यादा अच्छी पेरेंटिंग कर पाएंगी। अगर आप अपनी फैमिली के लिए कुछ रूल्स बना लें तो आप खुद को बच्चों को बिना गंभीर वजहों के डांटने से बचेंगी-
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