हमारे धर्म शास्त्रों में कई ऐसी बातें बताई गई हैं जिनका हमारे जीवन से कुछ न कुछ जुड़ाव जरूर होता है। ऐसे ही कुछ संस्कारों के बारे में और उनके महत्व के बारे में भी हमारे शास्त्र कई बातें बताते हैं। ऐसी ही संस्कारों में से एक है अन्नप्राशन।
यह रस्म तब निभाई जाती है जब नवजात शिशु को पहली बार मां के दूध के अलावा अनाज भी खिलाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि अन्नप्राशन से पहले बच्चों को अनाज या उससे बनी कोई भी खाद्य सामग्री नहीं खिलानी चाहिए।
ज्योतिष में भी ऐसी मान्यता है कि एक निश्चित उम्र के बिना बच्चों को अनाज खिलाना सेहत के लिए अच्छा नहीं है और शुभ भी नहीं माना जाता है। इसी वजह से जब बच्चे का अन्नप्राशन किया जाता है तब उसे घर का कोई बड़ा सदस्य अनाज जैसे चावल की बनी कोई मीठी चीज खिलाता है। आइए नारद संचार के ज्योतिष अनिल जैन जी से जानें शास्त्रों में ऐसी मान्यता क्यों है कि अन्नप्राशन संस्कार से पहले छोटे बच्चों को अनाज नहीं खिलाना चाहिए और इसके फायदे क्या हैं।
अन्नप्राशन संस्कार क्या होता है?
संस्कृत में अन्नप्राशन का अर्थ अन्न दीक्षा होता है। यह वो रस्म होती है जब नवजात शिशु को पहली बार अनाज जैसे चावल से बनी कोई चीज खिलाई जाती है। यह शास्त्रों के अनुसार एक प्रसिद्ध परंपरा है।
यह शिशु के जीवन में ठोस आहार की शुरुआत का प्रतीक मानी जाती है। ऐसी मान्यता है कि यदि एक बार अन्नप्राशन अनुष्ठान पूरा हो जाए तो आप अपने बच्चे के आहार में मां के दूध के आलावा अन्य खाद्य पदार्थों को भी शामिल कर सकती हैं जिससे शिशु का स्तन पान छुड़ाया जा सके और अन्य पोषक तत्व उसके आहार में शामिल किए जा सकें।
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आखिर क्यों होता है अन्नप्राशन संस्कार
यदि हम ज्योतिष की न भी मानें तो जैसे-जैसे आपका बच्चा बड़ा होता है उसे आवश्यक पोषक तत्वों की ज्यादा मात्रा में जरूरत होती है। इस वजह से उसकी केवल स्तनपान से ही शिशु को पोषण नहीं मिल सकता है, इसलिए उसे अनाज की भी आवश्यकता होती है।
चूंकि बच्चे को बहुत छोटी उम्र में अनाज देना उसके पाचन को खराब कर सकता है, इसलिए जन्म के बाद पांचवें या छठवें महीने में अन्नप्राशन संस्कार किया जाता है। आमतौर पर यह संस्कार घर या किसी पवित्र स्थान पर किया जाता है।
इस अवसर पर पंडित कुछ मंत्रों का जाप करके बच्चे की सेहत की प्रार्थना करते हैं और घर के बुजुर्ग द्वारा यह रस्म निभाई जाती है। इसमें घर के बुजुर्ग नवजात शिशु को चांदी के चम्मच से खीर (चांदी के बर्तन में खाना खिलाने के फायदे) या कोई अन्य सामग्री खिलाते हैं।
क्या कहता है शास्त्र
शास्त्रों की मानें तो आमतौर पर यह संस्कार शिशु की उम्र के पांचवें से नौवें महीने के बीच आयोजित किया जा सकता है, क्योंकि चार महीने से कम उम्र के बच्चों के लिए ठोस खाद्य पदार्थों को सेहत के लिए अच्छा नहीं माना जाता है, इसलिए 4 से 9 महीने के बीच का ही समय शिशु को अनाज खिलाने के लिए अच्छा माना जाता है।
वैसे मुख्य रूप से अन्नप्राशन शिशु के दांत निकलने से पहले होता है और लड़के और लड़कियों के मामले में इसकी रस्म अलग होती है। कन्या शिशु के लिए अन्नप्राशन किसी भी विषम संख्या वाले महीने में किया जाता है। आमतौर पर लड़कियों का अन्नप्राशन 5वें या 7वें महीने में। दूसरी ओर, एक लड़के के मामले में और लड़कों का अन्नप्राशन सैम संख्या वाले महीने में जैसे छठें या आठवें महीने में किया जाता है।
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अन्नप्राशन समारोह में शिशु को क्या खिलाया जाता है
यदि हम ज्योतिष या शास्त्रों की मानें तो इस समारोह का सबसे महत्वपूर्ण भोजन चावल की खीर या हलवा होता है। कोशिश करें कि शिशु को किसी भी अनाज की बहुत छोटी सी ही मात्रा दी जाए या फिर आप इसके लिए किसी एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें कि बच्चे को क्या खिलाया जा सकता है और क्या नहीं।
हिंदू धर्म शास्त्रों में अन्नप्राशन की रस्म का विशेष महत्व बताया गया है और इससे बच्चे को अच्छी सेहत का आशीष मिलता है।
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