क्या आपको पता है कि 'अतिथि देवो भव:' का मतलब क्या है? अब आप सोचेंगे कि आखिर मैं ये सवाल क्यों कर रही हूं? ये तो सभी को पता है कि इसका मतलब क्या है। मेहमान भगवान के समान होता है ये तो हमें बचपन से ही सिखाया-पढ़ाया जाता है और तो और हमारे यहां टूरिज्म को प्रमोट करने के लिए भी अतिथि देवो भव: ही कहा जाता है। पर क्या आपको पता है कि ये कोई स्लोगन या फिर टूरिज्म को बढ़ावा देने वाली बात नहीं है। इसका संबंध हिंदू धर्म से है और ये सदियों पुरानी कहावत है।
आज हम अतिथि देवो भव: के बारे में ही जानकारी लेंगे और ये जानेंगे कि आखिर ऐसा कहने के पीछे कारण क्या है।
क्या है इस वाक्य का असली मतलब
नहीं-नहीं यहां सिर्फ मेहमान भगवान जैसे होते हैं वाली बात ही नहीं है। यहां कुछ और कारण भी है।
अतिथि- तिथि मतलब तारीख और संसकृत अर्थ देखें तो अतिथि मतलब ऐसा कोई जिसकी तारीख निश्चित ना हो।
देवो भव:- इसका मतलब तो यही है कि ये देवता के समान होता है।
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अतिथि शब्द इसलिए दिया गया क्योंकि मेहमानों के आने का कोई समय नहीं होता है और ना ही कोई तारीख होती है। इसी के साथ उनके जाने का कोई समय नहीं होता और जाने की तारीख भी नहीं होती है।
इस वाक्य का अर्थ ऐसा निकाला जा सकता है कि घर आए मेहमान की सेवा और आदर किया जाए जब तक मेहमान रहना चाहे तब तक और किसी तारीख का फर्क ना समझा जाए। जैसे हम घर में देव की पूजा अर्चना और सत्कार करते हैं वैसे ही अतिथि की सेवा भी करनी चाहिए।
उपनिशदों में भी है अतिथि देवो भव: का वर्णन
तैत्तिरीयोपनिषद शिक्षावल्ली उपनिशद के 11 वें खंड में अतिथि देवो भव: का वर्णन है। इसमें मातृ देवो भव:, पितृ देवो भव: और आचार्य देवो भव: भी कहा गया है। यानी धर्म के अनुसार माता, पिता, शिक्षक और अतिथि सभी देव के समान हैं और इन सभी का सत्कार करना चाहिए।
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अतिथि देवो भव: से जुड़ी पौराणिक कथाएं
अतिथि देवो भव: से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं, लेकिन सबसे ज्यादा मान्य है कृष्ण और सुदामा की कथा। सुदामा दरिद्र अवस्था में श्री कृष्ण की द्वारका नगरी पहुंचे थे और उनके महल के आगे खड़े थे। श्री कृष्ण नंगे पैर दौड़ते हुए सुदामा के पास आए थे, उन्हें अपने से ऊंचा आसन दिया था और उनका सत्कार किया था।
सुदामा की सेवा कर श्री कृष्ण ने उन्हें बिना मांगे ही बहुत कुछ दे दिया था। रातों रात सुदामा की झोपड़ी महल बन गई थी और उसकी जिंदगी पलट गई थी।
ऐसे ही रामायण में शबरी को अतिथि सत्कार की भावना से प्रेरित दिखाया गया है जिसने अपने घर आए अतिथि को खट्टे बेर नहीं खाने दिए और खुद सभी बेरों को छांटकर श्री राम को दिया। श्री राम ने भी शबरी के जूठे बेर खाकर उसका मान रखा और अपना धर्म निभाया।
इस तरह की कई कथाएं हमारे ग्रंथों में मिल जाएंगी जहां पर ये समझाया जा सकता है कि मेहमान को हमारे यहां कितना महत्व दिया जाता है। अतिथि देवो भव: असल में भारतीयों के आदर और सत्कार की भावना का वर्णन करता है और इसलिए ही हमारे यहां इसे इतना प्रचलित माना जाता है। भारत में मेहमान नवाजी को बहुत ही महत्व दिया जाता है। हमारे यहां घर आए अतिथि का अनादर कभी नहीं किया जाता है।
क्या आपको इस वाक्य के महत्व के बारे में पता था? इसके बारे में हमें आर्टिकल के नीचे दिए कमेंट बॉक्स में बताएं। अगर आपको ये स्टोरी अच्छी लगी है तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से।