
हिंदू शादियां कई तरह से खास मानी जाती हैं और इस दौरान अलग-अलग रस्में होती हैं जिनका अलग महत्व है। शादी केवल एक सामाजिक बंधन नहीं होता है, बल्कि दो आत्माओं और परिवारों का आध्यात्मिक मिलन भी माना जाता है। एक तरफ जहां दूल्हा और दुल्हन अपनी एक नई यात्रा की शुरुआत करने जा रहे होते हैं, वहीं उनके परिवारों के बीच भी एक गहरा संबंध स्थापित हो रहा होता है। इसी कारण शादी की हर रस्म और इन रस्मों को निभाने का तरीका भी बिल्कुल अलग होता है। शादी की रस्मों में दिशाओं का भी विशेष महत्व होता है। जैसे फेरों के समय या फिर किसी अन्य रीति-रिवाज को करते समय दुल्हन को दूल्हे के किस तरफ बैठना चाहिए, ये भी बहुत मायने रखता है और हर दिशा का विशेष महत्व होता है। शादी के दौरान दूल्हा-दुल्हन एक दूसरे के किस तरफ बैठें, यह प्रश्न अक्सर लोगों के मन में आता है। कई बार शादी की रस्मों में दुल्हन को दूल्हे के बाईं ओर बैठने को कहा जाता है। आइए ज्योतिर्विद पंडित रमेश भोजराज द्विवेदी से जानें इसके बारे में कि शादी की रस्मों में दुल्हन को दूल्हे के किस तरफ बैठना चाहिए और इसका क्या महत्व होता है।
भारतीय विवाह की परंपरा के अनुसार, दुल्हन को हमेशा दूल्हे के बाईं ओर बैठाया जाता है और इसके कुछ विशेष कारण होते हैं जैसे पत्नी को हमेशा से ही पति की बमांगी कहा जाता है। सनातन धर्म के अनुसार व्यक्ति के शरीर का दाहिनी हिस्सा हमेशा से ही कर्मों का प्रतीक माना जाता है और वहीं बायां हिस्सा हृदय का स्थान माना जाता है। दुल्हन का दूल्हे के बाईं ओर बैठना इस बात का प्रतीक है कि दुल्हन अब दूल्हे के ह्रदय के बहुत करीब है और यह स्थान प्रेम, स्नेह और भावनात्मक ऊर्जा का स्थान है। ऐसे में शादी की सभी रस्मों में दुल्हन को बाईं ओर बैठना एक शुभ शगुन माना जाता है।
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प्राचीन समय से ही यह परंपरा चली आ रही है और देवी-देवताओं में भी हमेशा से देवियों का स्थान बाईं तरफ है जैसे कैलाश पर्वत पर हमेशा से ही भगवान शिव के बाईं तरफ माता पार्वती बैठती हैं और उन्हें भगवान शिव की बामांगी का सम्मान दिया जाता है। ऐसे ही माता लक्ष्मी भी हमेशा से ही विष्णु जी के बाईं तरफ ही बैठती हैं। देवताओं से जुड़ी इसी परंपरा पर आधारित विचार के अनुसार ही शादी के दौरान दुल्हन को दूल्हे के बाईं ओर बैठाया जाता है।
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कई बार आपने ध्यान दिया होगा कि शादी की रस्मों में फेरे शुरू होते ही दूल्हा-दुल्हन की जगह बदल जाती है। इसके भी कई ज्योतिष कारण माने जाते हैं। फेरों के समय दुल्हन आमतौर पर दूल्हे के दाईं ओर चलती है और यह दिशा परिवर्तन इसलिए किया जाता है क्योंकि इस रस्म में अग्नि देवता को साक्षी मानकर वचन लिए जाते हैं।
हमेशा से ही दाहिनी दिशा को धर्म, न्याय और संकल्प का स्थान माना जाता है। इसलिए वचन और संकल्प लेते समय दुल्हन को हमेशा दूल्हे के दाईं ओर रहना शुभ माना जाता है। वहीं कन्यादान के दौरान हमेशा दुल्हन दूल्हे के दाईं ओर बैठती है। ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि शादी के समय दुल्हन को कर्तव्य और धर्म से जोड़ा जाता है जो दायां पक्ष ही दिखाता है। शादी की अधिकांश रस्मों में दुल्हन दूल्हे के बाईं ओर ही बैठती है जो उसके भविष्य में बामांगी होने का संकेत देता है।
इन सभी कारणों के साथ एक बड़ा कारण यह भी है कि दुल्हन को हमेशा से ही चंद्र ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है और दूल्हे को सूर्य ऊर्जा से जोड़ा जाता है और चंद्र ऊर्जा को सूर्य ऊर्जा के बाईं ओर रखने से हमेशा ऊर्जा संतुलन बना रहता है। इसी वजह से दुल्हन को हमेशा दूल्हे के बाईं ओर बैठना शुभ माना जाता है।
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