
डॉक्टर्स का स्वैग ही अलग होता है। वो सफेद कोट पहने डॉक्टर्स बेहद खास लगते हैं और बचपन से ही बच्चे स्कूल के फैंसी ड्रेस कम्पटीशन में भी डॉक्टर बनने के लिए सफेद कोट का इस्तेमाल करते हैं। पर क्या कभी आपने सोचा है कि डॉक्टर्स का कोट हमेशा सफेद ही क्यों होता है? डॉक्टर्स की पहचान बने इस कोट का रंग सफेद ही क्यों चुना गया? ये सब तो फिर भी ठीक है, लेकिन ऑपरेशन के समय इन्हें हरा रंग ही क्यों दिया गया?
अब सोच में पड़ गए ना आप? ठीक है.... ठीक है... मैंने एक ही लाइन में बहुत सारे सवाल पूछ लिए, लेकिन ये जरूरी भी है। हमेशा से ही हमारे माइंड को इसी तरह से ट्रेन किया जाता है कि हम किसी एक चीज़ को उसी तरह से देखने लगते हैं जैसा कि हमें बताया गया है। यानी डॉक्टर की पहचान ही हमने सफेद कोट को बना लिया है और इसे लेकर कभी सवाल करने के बारे में सोचा ही नहीं कि आखिर ऐसा है भी क्यों?
इसके पीछे एक बहुत ही गहरा लॉजिक लगाया गया है जिसके बारे में आज हम आपको बताते हैं।
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इसका सीधा ताल्लुक ह्यूमन बॉडी से निकलने वाली लिक्विड से है। वो खून हो सकता है, बहती हुई नाक हो सकती है, चोट के निशान हो सकते हैं, पस हो सकता है या यूरिन भी हो सकती है। दरअसल, चेकअप के दौरान डॉक्टर्स को कई तरह के मरीजों से डील करना पड़ता है और ऐसे में उनके कपड़ों पर दाग भी बहुत जल्दी लग जाते हैं।

इसके अलावा, डॉक्टर दिन भर में जो भी करते हैं उसके दाग सफेद कपड़ों पर लग सकते हैं। सफेद कपड़े पर दाग लगने के कारण उसे बदलना जरूरी हो जाता है। इसे ऐसे समझें कि डॉक्टर्स को हेल्थ और हाइजीन का प्रतीक माना जाता है और अगर उनके कोट में दाग लगा होगा तो वो सही नहीं होगा। ऐसे में उन्हें रोज़ाना इस कोट को बदलना पड़ता है और ये दिखाया जाता है कि वो साफ और सुरक्षित हैं।
कई बार डॉक्टर्स दिन में दो से तीन बार इस कोट को बदल लेते हैं क्योंकि उनके कोट पर लगे हुए दाग सही नहीं लगते हैं। यही कारण है कि बाकी सभी रंगों की तुलना में डॉक्टर्स के लिए सफेद रंग चुना गया। इस सफेद कोट का एक नाम भी होता है जिसे लेबोरेटरी कोट कहा जाता है।

आपने कई जगह पर नोटिस किया होगा कि डॉक्टर्स और उनके सहयोगी ऑपरेशन थिएटर में हमेशा हरे या फिर नीले रंग के कपड़े पहनते हैं। अब यहां भी सफाई का लॉजिक दिया जा सकता है, लेकिन आखिर ऑपरेशन करते समय डॉक्टर्स को इसकी जरूरत क्यों नहीं होती है?

इसका कारण जानने के लिए हमें ऑपरेशन की तह तक जाना होगा। नहीं-नहीं ऑपरेशन करने के तरीके को नहीं बता रही हूं बल्कि यहां पर ह्यूमन बॉडी की कॉम्प्लेक्सिटी की बात हो रही है। दरअसल, ह्यूमन बॉडी के अंदरूनी अंग लगभग 99% गुलाबी होते हैं और ब्लड लाल रंग का निकलता है। थोड़ा बहुत सफेद हिस्सा होता है जो अंदरूनी अंगों की टिशू लाइनिंग होती है। अब कई ऑपरेशन घंटों चलते हैं और छोटी-छोटी नसों को भी ध्यान से देखना होता है।
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ऐसे में डॉक्टर्स की आंखें इन रंगों को लेकर इम्यून हो जाती हैं और अगर वो किसी न्यूट्रल रंग की ओर नहीं देखेंगे तो उन्हें ह्यूमन बॉडी के अंदर के अंग थोड़ी देर बाद ठीक से दिखना बंद हो जाते हैं। ऐसे में ऑपरेशन थिएटर में मौजूद लोगों को हरे रंग या नीले रंग का कपड़ा पहनाया जाता है जिससे डॉक्टर्स की नजर उन रंगों पर पड़े और वो इन रंगों को लेकर वापस न्यूट्रल हो जाएं।
यही कारण है कि ज्यादातर हरे रंग का इस्तेमाल किया जाता है क्योंकि इससे विजन को ठीक करना ज्यादा सही होता है। ये कुछ-कुछ वैसा ही है कि फिल्मों की शूटिंग के समय पीछे हरे रंग का पर्दा लगाया जाता है जिसके बाद उन सीन्स को एडिट कर दिया जाता है।
अब कुछ समझे आप कि ऑपरेशन थिएटर में इस तरह के कपड़े क्यों इस्तेमाल किए जाते हैं?
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