
हमारे धर्म शास्त्रों में न जाने कितनी ऐसी बातें लिखी हुई हैं जिनका हमारे जीवन से कोई न कोई जुड़ाव जरूर होता है। ऐसे ही शास्त्रों में मंदिर से जुड़े भी कुछ नियम बनाए गए हैं, जिनका पालन आपके जीवन में समृद्धि ला सकता है।
मंदिर हमेशा स्नान करके शुद्ध तन-मन से ही जाएं, मंदिर में प्रवेश से पहले सीढ़ियों का झुककर स्पर्श करें, संध्या और शयन आरती के नियमों का पालन करें और शयन आरती के बाद रात के समय मंदिर के कपाट बंद कर दें।
ऐसे कई नियम हैं जो हमारे शास्त्रों में बताए गए हैं और इनका पालन करने से हमें मानसिक शांति मिलने के साथ समृद्धि बनी रहती है। अक्सर हमारे मन में इन नियमों को लेकर कई सवाल आते हैं जैसे आखिर रात के समय मंदिर के कपाट बंद क्यों किये जाते हैं। इसके बारे में विस्तार से जानने के लिए हमने नारद संचार के ज्योतिष अनिल जैन जी से बात की। आइए जानें इसके बारे में विस्तार से।

रात के समय मंदिर के कपाट बंद करने की प्रथा धार्मिक धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं का प्रतीक माना जाता है और ये विभिन्न धर्मों के मंदिर से अलग है। यदि हम इसके मुख्य कारणों की बात करें तो कई बातें सामने आती हैं। आइए रात के समय मंदिर के कपाट बंद करने के कारणों के बारे में यहां विस्तार से जानें -
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ऐसा माना जाता है कि मंदिर में स्थापित मूर्तियां काफी मूल्यवान धातुओं की बनी होती हैं और यदि मंदिर के कपाट बंद न किए गए तो चोरी का डर बढ़ जाता है। मंदिरों में मूर्तियों के साथ धनराशि भी रखी होती है, जो मंदिर के विकास और जन कल्याण के लिए संजोकर रखी जाती है।
रात में मंदिर के दरवाजे बंद करने से सुरक्षा की एक अतिरिक्त परत जुड़ जाती है। इससे मंदिर में अनअपेक्षित प्रवेश को रोका जा सकता है और मंदिर की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है। इससे मंदिर के भीतर पवित्र वस्तुओं की सुरक्षा की जा सकती है।

अगर हम धार्मिक मान्यताओं की बात करें तो मंदिर में स्थापित मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा की जाती है और मंदिर में देवताओं या दिव्य प्राणियों का निवास माना जाता है। रात में दरवाजे बंद करना ईश्वर के प्रति सम्मान दिखाने और देवताओं के आराम के समय का सम्मान करने का एक तरीका माना जाता है।
मान्यता है कि रात्रि के समय सभी देवता विश्राम करते हैं, इसलिए रात में मंदिर के कपाट बंद किए जाते हैं। रात्रि विश्राम के बाद सुबह मंदिर खोला जाता है और पूजा-पाठ आरंभ होता है।
मंदिर में नियमित पूजा -पाठ, अनुष्ठान को दैनिक प्रथाओं का एक अनिवार्य हिस्सा माना जाता है। रात्रि में मंदिर के दरवाजे बंद करने से पुजारियों को मंदिर के साथ मूर्तियों की सफाई का समय मिलता है और इस दौरान मंदिर को अगले दिन की पूजा-पाठ के लिए तैयार किया जा सकता है। इससे मूर्तियों की सफाई में कोई बाधा उत्पन्न नहीं होती है और मंदिर अगले दिन के लिए तैयार होता है।
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मंदिर में दैनिक पूजा और भक्ति गतिविधियों से आध्यात्मिक ऊर्जा समाहित होती है। रात के समय इसके दरवाजे बंद करने से इस ऊर्जा को मंदिर परिसर के भीतर की संरक्षित करने में मदद मिलती है।
ऐसा माना जाता है कि मंदिर के भीतर रात के समय ऊर्जा कई गुना बढ़ जाती है, जिससे अगले दिन सुबह भक्तों को दर्शन का पूर्ण लाभ मिलता है। इसी वजह से मंदिर में प्रातः जल्दी दर्शन करना सबसे अधिक शुभ माना जाता है।

यदि हम इसके पीछे के वैज्ञानिक कारणों की बात करें तो इसका कोई विशिष्ट वैज्ञानिक कारण नहीं है कि रात के समय मंदिर बंद होना चाहिए। हालाँकि इसका एक कारण साफ़-सफाई से जुड़ा हो सकता है।
इस प्रथा के वैज्ञानिक से ज्यादा आध्यात्मिक कारण हैं जिनका हम सदियों से पालन करते चले आ रहे हैं। इसका एक अन्य कारण यह भी है पर्यटकों की संख्या को नियंत्रित करने के लिए कपाट बंद करना एक आसान विकल्प होता है।
यदि हम शास्त्रों की बात करें तो रात के समय मंदिर के दरवाजे बंद करने से शोर और जानवरों जैसे बाहरी कारकों से होने वाली परेशानियों को भी कम करने में मदद मिलती है, इसलिए इसका पालन जरूरी माना जाता है।
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