नवरात्रि खत्म होने के साथ ही दशहरा का पर्व मनाया जाता है। इस दिन को विजयादशमी के नाम से भी जाना जाता है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इस दिन भगवान राम ने लंकापति रावण का वध किया था, जिसे अधर्म और अहंकार के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। इस दिन रावण का पुतला जलाने की परंपरा है, जो यह संदेश देती है कि अंततः सत्य और धर्म की ही विजय होती है। साथ ही दशहरे के मौके पर जगह-जगह मेले का आयोजन किया जाता है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि सबसे पहले रावण का पुतला कहां जलाया गया था।
रामायण की कथा सदियों पुरानी है, लेकिन रावण का पुतला दहन सार्वजनिक परंपरा के रूप में भारत की स्वतंत्रता के बाद अधिक लोकप्रिय हुई। ऐतिहासिक और लिखित प्रमाणों के अनुसार, बड़े लेवल पर रावण दहन की शुरुआत साल 1948 के आसपास मानी जाती है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, कहा जाता है कि सबसे पहले झारखंड के रांची शहर (उस दौरान यह बिहार का हिस्सा था)में पाकिस्तान से आए कुछ शरणार्थी परिवारों ने विजयादशमी के दिन रावण दहन की शुरुआत की थी।
साल 1953 में दिल्ली के रामलीला मैदान में भी बड़े पैमाने पर रावण का पुतला जलाया गया था,जो धीरे-धीरे पूरे उत्तर भारत में दशहरे का एक अभिन्न अंग बन गया। यह प्रथा मुख्य रूप से अहंकार, क्रोध, लोभ और अन्य दस बुराइयों के प्रतीक रावण के दस सिरों को जलाकर, आत्म-शुद्धि और धर्म की स्थापना का संदेश देती है।
दशहरा के अवसर पर मेले लगने की परंपरा काफी पुरानी है, जिसका स्वरूप अलग-अलग स्थानों पर भिन्न रहा है। सबसे प्राचीन और ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण दशहरा मेलों में से एक मैसूर (कर्नाटक) का दशहरा उत्सव माना जाता है, जिसकी शुरुआत साल 1610 ईस्वी में मैसूर के राजा वाडियार द्वारा श्रीरंगपट्टन में की गई थी। हालांकि, यह मेला देवी दुर्गा (चामुंडेश्वरी) की महिषासुर पर विजय को समर्पित है, जो अपनी भव्यता, जुलूस तथा 'जंबो सवारी' के लिए विश्व प्रसिद्ध है।
मैसूर के अलावा, अन्य प्रसिद्ध और प्राचीन दशहरा मेला हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में आयोजित होता है। कुल्लू दशहरा उत्सव की शुरुआत साल 1651 ईस्वी में राजा जगत सिंह के शासनकाल में हुई थी। यह पर्व सात दिनों तक चलता है और इसमें सैंकड़ों स्थानीय देवी-देवता एक साथ आकर भगवान रघुनाथ की रथयात्रा में शामिल होते हैं, लेकिन यहां रावण दहन की परंपरा नहीं है, बल्कि सातवें दिन लंका दहन की रस्म निभाई जाती है। इसके अलावा राजस्थान के कोटा का राष्ट्रीय दशहरा मेला भी 18वीं शताब्दी की शुरुआत के लिए मशहूर है।
इसे भी पढ़ें- Ravan In Mahabharat: महाभारत में कब और कैसे हुआ था रावण का पुनर्जन्म
आपको यह स्टोरी अच्छी लगी है, तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़े रहें हर जिंदगी से।
image credit- Herzindagi, Freepik
यह विडियो भी देखें
Herzindagi video
हमारा उद्देश्य अपने आर्टिकल्स और सोशल मीडिया हैंडल्स के माध्यम से सही, सुरक्षित और विशेषज्ञ द्वारा वेरिफाइड जानकारी प्रदान करना है। यहां बताए गए उपाय, सलाह और बातें केवल सामान्य जानकारी के लिए हैं। किसी भी तरह के हेल्थ, ब्यूटी, लाइफ हैक्स या ज्योतिष से जुड़े सुझावों को आजमाने से पहले कृपया अपने विशेषज्ञ से परामर्श लें। किसी प्रतिक्रिया या शिकायत के लिए, compliant_gro@jagrannewmedia.com पर हमसे संपर्क करें।