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History of Ravana effigy burning

कैसे शुरू हुई थी रावण का पुतला जलाने की परंपरा? सबसे पहले कहां लगा था दशहरा मेला?

दशहरे के अवसर पर रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद का पुतला जलाने की परंपरा बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। हालांकि यह प्रथा भगवान राम द्वारा रावण के वध से जुड़ी है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि रावण का पुतला सबसे पहले किसने जलाया था।
Editorial
Updated:- 2025-09-30, 16:22 IST

नवरात्रि खत्म होने के साथ ही दशहरा का पर्व मनाया जाता है। इस दिन को विजयादशमी के नाम से भी जाना जाता है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इस दिन भगवान राम ने लंकापति रावण का वध किया था, जिसे अधर्म और अहंकार के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। इस दिन रावण का पुतला जलाने की परंपरा है, जो यह संदेश देती है कि अंततः सत्य और धर्म की ही विजय होती है। साथ ही दशहरे के मौके पर जगह-जगह मेले का आयोजन किया जाता है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि सबसे पहले रावण का पुतला कहां जलाया गया था।

रावण दहन की परंपरा की शुरुआत कब हुई थी?

Who is burned first on Dussehra

रामायण की कथा सदियों पुरानी है, लेकिन रावण का पुतला दहन सार्वजनिक परंपरा के रूप में भारत की स्वतंत्रता के बाद अधिक लोकप्रिय हुई। ऐतिहासिक और लिखित प्रमाणों के अनुसार, बड़े लेवल पर रावण दहन की शुरुआत साल 1948 के आसपास मानी जाती है।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, कहा जाता है कि सबसे पहले झारखंड के रांची शहर (उस दौरान यह बिहार का हिस्सा था)में पाकिस्तान से आए कुछ शरणार्थी परिवारों ने विजयादशमी के दिन रावण दहन की शुरुआत की थी।

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दिल्ली में पहली बार कब जलाया गया था रावण?

साल 1953 में दिल्ली के रामलीला मैदान में भी बड़े पैमाने पर रावण का पुतला जलाया गया था,जो धीरे-धीरे पूरे उत्तर भारत में दशहरे का एक अभिन्न अंग बन गया। यह प्रथा मुख्य रूप से अहंकार, क्रोध, लोभ और अन्य दस बुराइयों के प्रतीक रावण के दस सिरों को जलाकर, आत्म-शुद्धि और धर्म की स्थापना का संदेश देती है।

सबसे पहले दशहरा मेले की शुरुआत कब हुई?

When was the first Dussehra started

दशहरा के अवसर पर मेले लगने की परंपरा काफी पुरानी है, जिसका स्वरूप अलग-अलग स्थानों पर भिन्न रहा है। सबसे प्राचीन और ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण दशहरा मेलों में से एक मैसूर (कर्नाटक) का दशहरा उत्सव माना जाता है, जिसकी शुरुआत साल 1610 ईस्वी में मैसूर के राजा वाडियार द्वारा श्रीरंगपट्टन में की गई थी। हालांकि, यह मेला देवी दुर्गा (चामुंडेश्वरी) की महिषासुर पर विजय को समर्पित है, जो अपनी भव्यता, जुलूस तथा 'जंबो सवारी' के लिए विश्व प्रसिद्ध है।

सबसे प्राचीन दशहरा मेला कहां आयोजित होता है?

मैसूर के अलावा, अन्य प्रसिद्ध और प्राचीन दशहरा मेला हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में आयोजित होता है। कुल्लू दशहरा उत्सव की शुरुआत साल 1651 ईस्वी में राजा जगत सिंह के शासनकाल में हुई थी। यह पर्व सात दिनों तक चलता है और इसमें सैंकड़ों स्थानीय देवी-देवता एक साथ आकर भगवान रघुनाथ की रथयात्रा में शामिल होते हैं, लेकिन यहां रावण दहन की परंपरा नहीं है, बल्कि सातवें दिन लंका दहन की रस्म निभाई जाती है। इसके अलावा राजस्थान के कोटा का राष्ट्रीय दशहरा मेला भी 18वीं शताब्दी की शुरुआत के लिए मशहूर है।

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image credit- Herzindagi, Freepik

 

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