
' रास्ता निहारु भैया भात लेके आता होगा
सासु ना मुख से बोले ननदुल भी ताना मारे
सासु ना मुख से बोले नंदी तो ताना मारे
भैया गरीब तेरो खाने का भी टोटा होगा।'
ये पंक्तियां कोई कविता, दोहा या छंद नहीं है। यह मायरा के गीत की पंक्तियां हैं। यूट्यूब पर आपको मायरा के बहुत सारे गीत सुनने को मिल जाएंगे। वैसे इन गीतों को सुनकर कोई भी महिला भावनात्मक रूप से बहुत दुखी हो सकती है। जाहिर है, यह गीत होते ही ऐसे हैं, जिसमें एक महिला के मायके वालों को खरी-खोटी सुनाई जाती है और उनसे उपहार के स्वरूप चीजें मांगी जाती हैं, साथ ही इस गीतों में ऐसी पंक्तियां होती हैं, जो लड़की के मायके वालों को कमजोर और गरीब दर्शाने वाली होती हैं। इन गीतों को सुनकर मायके वालों को उक्साया जाता है है कि मायरा की रस्म में ज्यादा से ज्यादा उपहार दें और लड़की के ससुराल वालों को खुश कर दें। यह रस्म राजस्थान के मारवाड़ी परिवारों में आज भी प्रचलित है।
अब सवाल यह उठता है...जिस दौर में लड़कियां और महिलाएं पुरुषों के कंधे से कंधा मिला कर चल रही हैं, राफेल लड़ाकू विमान की पायल बन रही हैं। 'ऑपरेशन सिंदूर' जैसे डिफेंस प्रोजेक्ट को लीड कर रही हैं, उनके लिए मायके वालों को मायरा जैसे रिवाजों को निभाने की जरूरत पड़ रही है। इससे भी अव्वल एक कमाऊपूत लड़की की शादी में उसे इतने महंगे तोहफे देने की जरूरत क्या है, जो खुद ही अपने पैरों पर खड़े होकर अपनी जिम्मेदारी निभा सकती हैं।
खैर, बीते कुछ समय से सोशल मीडिया में मायरा की रस्म को लेकर तरह-तरह की चर्चा हो रही है, क्योंकी कुछ दिन पहले ही एक वायर वीडियो ने सभी को चौंका दिया। घटना है राजस्थान के गांव झाडेली की। यहां उप प्रधान के परिवार में एक शादी हुई। शादी बेटी के बेटे की थी, जहां बेटी के मायके से उसके बेटे और बहुत के लिए 21 करोड़ के उपहार आए। इसमें 1 किलो सोना, 4 सूटकेस कैश , 210 बीघा जमीन, 1 पैट्रोल पंप था, जो मामा के द्वारा भांजे को दिया गया था। हैरानी वाली बात यह है लड़के की शादी में मायके से इतना सामान आया, तो लड़की की शादी में तो मायके वाले पानी की तरह पैसा बहा देते होंगे। मगर यहां यह मायरा आया भले ही बेटे की शादी में है मगर आया एक उसकी मां के मायके से ही है। ऐसे में सोशल मीडिया पर मायरा जैसे रस्म की लोग कड़ी निंदा कर रहे हैं और इसकी तुलना दहेज से कर रहे हैं। तो चलिए सबसे पहले जानते हैं कि यह रिवज क्या होता है और दहजे से यह कैसे अलग है।
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आसन शब्दों में कहा जाए तो इसे कहते हैं बेटी के लिए मायका का प्यार। मगर हकीकत में मायरा की रस्म में जो उपहार दिए जाते हैं, वो बेटी के ससुराल वालों को खुश करने के लिए दिए जाते हैं। फिर चाहे बेटी की खुद शादी लायक बच्चों की मां हो। यानी बेटी के बच्चों की भी शादी में मायके वालों को मायरा की रस्म करनी पड़ती है। यह रस्म केवल मारवाडि़यों में नहीं बल्कि अलग-अलग जगह पर अलग-अलग नाम से जानी जाती है। जैसे यूपी में इसे भात की रस्म कहते हैं, वहीं एमपी में इसे पहनाउन कहा जाता है।
समानता केवल यह है कि रस्म को किसी भी नाम से पुकारा जाए, इसे निभाना लड़के के मायके वालों को होता है। इसमें मायके पक्ष के लोगों को मिल कर बेटी, भांजे, भांजी, नाती, नातिन की शादी में महंगे उपहार देने होते हैं। जैसे सोने, चांदी का सामान, जमीन-जायदाद, वाहन या बंगला। यहां तक की रोजमर्रा के जीवन में इस्तेमाल होने वाले जरूरत के सामन भी लड़की के मायके से आता है। कहने के लिए यह बेटी को आर्थिक रूप से मजबूत करने क लिए दिया जाता है, मगर असल में यह ससुराल वालों को खुश करने का एक साधान होता है।
मायरा और दहेज, में महज नाम का ही फर्क है। दोनों में ही बेटी को दान-पण्य करने की प्रथा है। हां, मायरा मामा और उनका परिवार देता है और दहेज लड़की के माता पिता को देना होता। कुल मिलाकर सारे उपहार, धन और दौलत, जाती सब लड़के वालों के घर ही है। ऐसे में दोनों ही रस्मों में केवल नाम का ही फर्क समझ आता है। बताया जाता है कि जब बेटी या उसके बच्चों को मायके से मायरा भरा जाता है, तो वकायदा इसकी लिखा पढ़त होती है। इतना ही नहीं, अगर मामा या नाना यह रस्म निभाने के लिए नहीं होते हैं, तो उनके बेटों को इस रस्म में हिस्सेदारी देनी होती है। वहीं जिन बेटियों के मायके में कोई भी मायरा भरने की रस्म करने वाला नहीं होता है, वो भी अपने मायके की चौखट पर एक बार भात मांगने जाती हैं और घर की दीवार को ही तिलक लगा आती हैं। वहीं मायरा की रस्म मायके पक्ष का कोई भी रिश्तेदार भर सकता है। किस्से तो यहां तक भी सुनने को मिलते हैं कि पैसे वाले लोग गरीबों की बेटी के घर मायके पक्ष में शामिल होकर कुछ धन मायरा के रूप में देते हैं।

हम एक तरफ बेटियों को सशक्त बनाने की बात करते हैं, वहीं दूसरी तरफ हम दहेज और मायरा जैसी रस्म में उन्हें फंसाकर दूसरों को उन्हें धन के तराजू में तौलने का अवसर देते हैं। बेटी के घरवालों की तरफ से किसी भी रूप में उसकी ससुराल वालों को दिया गया धन दहेज का ही एक रूप है, जिसे सालों पहले कुप्रथा घोषित किया जा चुका है। मायरा जैसी रस्म भी इसी का एक स्वरूप है और यह वर पक्ष के लोगों को प्रोत्साहित करने का जरिया भी है कि वो खुद को वुध पक्ष से ऊपर और मान्य समझें।
इसमें कोई बुराई नहीं है कि जब दो लोग मिलकर जीवन की नई शुरुआत कर रहे होते हैं, तो उनके सगे संबंधी उन्हें उपहार देते हैं, जो आशीर्वाद या शुभकामनाओं के रूप में ही ग्रहण करना चाहिए। इसमें जब लालच टपकने लगे या लोग अधिकार से मांगने लगे, तो यह इशारा है एक बड़ अपराध की बुनियाद तैयार करने का। इसलिए इस तरह की रस्मों को न तो प्रोत्साहित करना चाहिए और न ही इनका दिखावा होना चहिए।
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