
भगवान की भक्ति और उनके भक्तों से जुड़ी कई ऐसी कथाएं जो ये बताती हैं कि अगर भक्ति सच्ची तो भगवान स्वयं आते हैं आपकी हर विपदा को हरने। ऐसी ही एक कथा है नरसिंह मेहता की जिनका भात स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने भरा था और ऐसा भरा था जो आज भी कथा के रूप में लोगों के बीच प्रचलित है। वृंदावन के ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से आइये जानते हैं कि क्या है नरसिंह मेटा के भात की कहानी?
'नरसी का भात' की कथा भगवान कृष्ण के परम भक्त नरसी मेहता से जुड़ी है। यह कथा बताती है कि एक सच्चा भक्त जब अपनी भक्ति पर अटल रहता है और सारे संसार के सामने अपमानित होने पर भी अपना भरोसा केवल अपने भगवान पर रखता है तो स्वयं भगवान उसकी लाज बचाने के लिए दौड़े चले आते हैं।

यह घटना एक सामाजिक रस्म 'भात' या 'मायरा' से संबंधित है जिसमें बेटी की शादी या उसके बच्चों के किसी शुभ कार्यक्रम में मायके से भाई या मामा उपहार, कपड़े और अन्य सामग्री लेकर जाते हैं। नरसी मेहता एक गरीब लेकिन अनन्य कृष्ण भक्त थे जिनके पास अपनी बेटी की ससुराल की मांग पूरी करने के लिए कुछ नहीं था।
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यह कथा गुजरात के जूनागढ़ के संत कवि नरसी मेहता के जीवन से संबंधित है, जो अपना सारा समय कृष्ण भक्ति में लगाते थे और इसलिए गरीबी में जीवन व्यतीत करते थे। उनकी एक बेटी थी नानी बाई जिसका विवाह सिरसागढ़ के एक संपन्न परिवार में हुआ था। जब नानी बाई की बेटी का विवाह या कोई अन्य मंगल कार्य आया तो मायके की ओर से भात भरने की रस्म निभाने के लिए ससुराल वालों ने नरसी मेहता को न्योता भेजा।
नानी बाई के ससुराल वाले बहुत घमंडी थे और उन्होंने नरसी को अपनी गरीबी के कारण अपमानित करने के उद्देश्य से भात के लिए बहुमूल्य वस्तुओं की एक लंबी सूची भेज दी। नरसी मेहता के पास अपनी बेटी की लाज रखने और उन वस्तुओं को खरीदने के लिए बिल्कुल धन नहीं था। उनके भाई-भाभियों ने भी उनकी सहायता करने से इनकार कर दिया और उनका उपहास किया।
संसार से हर तरह से निराश होकर, नरसी मेहता ने अश्रुपूर्ण नेत्रों से केवल अपने आराध्य भगवान श्री कृष्ण को याद किया और उनसे अपनी बेटी की लाज बचाने की प्रार्थना की। अपने परम भक्त की पुकार सुनकर, भगवान श्री कृष्ण को स्वयं द्वारका से आना पड़ा। भगवान कृष्ण ने एक धनी और भव्य सेठ का रूप धारण किया, उनके साथ रुक्मिणी जी ने भी सेठानी का रूप लिया।

उनके साथ बहुत सारी बैलगाड़ियां थीं जो सोने, चांदी, हीरे, मोतियों, बहुमूल्य वस्त्रों और सभी प्रकार की सामग्री से भरी हुई थीं। भगवान कृष्ण ने सिरसागढ़ पहुंचकर नरसी मेहता के भाई बनकर नानी बाई का भात भरा। उन्होंने इतनी भव्यता और ऐश्वर्य के साथ भात भरा कि नानी बाई के ससुराल वालों की आंखें खुली रह गईं और वे अपनी पिछली गलती पर शर्मिंदा हुए।
लोक कथाओं के अनुसार, भगवान कृष्ण ने कुबेर को आदेश दिया और भात की सामग्री की वर्षा करवा दी। यहां तक कहा जाता है कि उन्होंने हुंडियों की वर्षा करवा दी जो अपने आप सोने में बदल जाती थीं। उन्होंने न केवल मांगी गई वस्तुएं दीं, बल्कि वहां मौजूद हर व्यक्ति को महंगे उपहारों से सम्मानित किया।
भगवान कृष्ण ने यह रस्म अपने भक्त की लाज रखने और उनकी भक्ति का मान बढ़ाने के लिए निभाई थी। इस कथा से यह शिक्षा मिलती है कि जो भक्त संसार को त्यागकर केवल ईश्वर पर भरोसा करता है, भगवान हर परिस्थिति में उसका साथ देते हैं और उसकी जरूरत को अपने ऊपर ले लेते हैं।
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