
शालिनी तीस साल की होने वाली थी। रंग हल्का सांवला था, लेकिन चेहरे पर सादगी और आंखों में एक अलग चमक थी। फिर भी, हर बार जब कोई लड़का उसे देखने आता, तो कुछ मिनट की बातें होती और बाद में वही जवाब-हम सोचकर बताएंगे। इसके बाद कभी कोई फोन नहीं आता। दस से ज्यादा रिश्ते इसी तरह टूट चुके थे। धीरे-धीरे शालिनी का आत्मविश्वास भी टूटने लगा। उसे लगने लगा कि शायद उसके रंग या सादे स्वभाव की वजह से कोई उसे पसंद नहीं करता। वहीं, उसके पिता रमेश हर बार सोच में पड़ जाते- क्या दहेज कम देने की वजह से कोई रिश्ता आगे नहीं बढ़ रहा? बेटी की चिंता में घुलते रमेश अब हर नए रिश्ते के नाम से ही डरने लगे थे।
एक बार फिर नया रिश्ता आया। यह 11वां रिश्ता एक रिश्तेदार के जरिए आया था। रमेश के दिल में बस एक ही ख्याल था - इस बार रिश्ता किसी भी कीमत पर नहीं टूटना चाहिए। पिछले कई सालों की नाकाम कोशिशों ने उसे तोड़ दिया था, लेकिन बेटी की आंखों में उम्मीद देख वह खुद को मजबूत बनाए रखता था। दूसरी ओर, शालिनी अब थक चुकी थी। हर बार उम्मीद बंधती और हर बार टूट जाती। उसने गुस्से और बेबसी में अपने पिता से कहा ,अगर इस बार भी रिश्ता नहीं हुआ, तो मैं आगे किसी से शादी नहीं करूंगी और न ही किसी से मिलने जाऊंगीबेटी की बातें सुनकर रमेश का दिल बैठ गया, लेकिन चेहरे पर मुस्कान लाते हुए उसने कहा, बेटा, इस बार तेरी शादी जरूर होगी, तुझे जरूर पसंद करेंगे। उस पल रमेश ने ठान लिया था कि चाहे कुछ भी हो जाए, वह इस बार अपनी बेटी की खुशियां किसी कीमत पर अधूरी नहीं रहने देगा।

रिश्ते वाले घर पहुंचे तो माहौल पहले की तरह ही था। लड़का मोबाइल में बिजी था, जबकि उसके घरवाले इधर-उधर की बातें कर रहे थे, जैसे शालिनी वहां मौजूद ही न हो। शालिनी ने एक नजर में सब समझ लिया- इस बार भी वही कहानी दोहराई जाएगी। कुछ मिनट बाद ही लड़के वालों ने उठते हुए कहा, चलो जी, हमें निकलना है, थोड़ा काम है।
रमेश के चेहरे पर हल्की घबराहट नजर आ रही थी। उसने तुरंत कहा, कोई बात नहीं, लेकिन बच्चों की कुंडली मिलवा लेते हैं, रोका या सगाई की तारीख पर भी बात कर लेते हैं।
लड़के वालों ने बिना भाव बदले जवाब दिया, हम आपको फोन पर बता देंगे, अभी हमें जाना होगा। यह सुनते ही रमेश के दिल में चिंता और बढ़ गई थी। उसे लगा कि यह रिश्ता भी हाथ से निकल जाएगा। वह किसी भी तरह इसे रोक लेना चाहता था। उसने शालिनी की तरफ देखा और धीमे स्वर में कहा, बेटा, तू अंदर जा, अभी बड़े लोगों की बात हो रही है। शालिनी ने पिता की बात सुनी, लेकिन चेहरे पर निराशा साफ झलक रही थी। गुस्से और लाचारी में वह कमरे के अंदर चली गई। उसे मालूम था कि एक बार फिर उसकी उम्मीदें टूटने वाली हैं।

शालिनी के कमरे में जाते ही रमेश ने हिम्मत जुटाकर कहा, देखिए, कुंडली तो बाद में भी मिल जाएगी, पहले दहेज की बात कर लेते हैं। शादी में आपको क्या चाहिए, कितनी रकम या क्या चीजें रखनी हैं, इस पर बात कर लेते हैं। रमेश की यह बात सुनकर लड़के वाले अचानक रुक गए। एक-दूसरे की तरफ देखते हुए उनके चेहरे पर हल्की मुस्कान आई। उन्हें अहसास हो गया था कि यह परिवार रिश्ता किसी भी कीमत पर पक्का करना चाहता है और शायद उन्हें यहां से अपनी मनचाही कीमत मिल सकती है। लड़के वालों ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, देखिए, हम तो दहेज के खिलाफ हैं, लेकिन जो भी देंगे, वो आपकी बेटी की खुशी के लिए ही तो होगा। वैसे बेटे का ऑफिस थोड़ा दूर है, बाइक से आने-जाने में दिक्कत होती है। अगर आप एक गाड़ी मिल देते हैं तो अच्छा रहेगा, आपकी बेटी को भी मायके आने में आसानी होगी। गाड़ी का नाम सुनते ही रमेश के चेहरे का रंग उड़ गया। दिल भारी हो गया, लेकिन उसने खुद को संभालते हुए धीरे से कहा, हां जी, गाड़ी तो आज के समय में जरूरत बन गई है।
इतना सुनते ही लड़के ने बिना झिझक कहा, मुझे 12 लाख वाली गाड़ी चाहिए, आखिर गाड़ी रोज-रोज थोड़ी खरीदी जाती है। उसकी मां ने भी बिना हिचक के बेटे की बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, हां, बेटे की पसंद की गाड़ी होगी तो अच्छा रहेगा, आखिर उसे ही चलानी है। रमेश ने चेहरे पर बनावटी मुस्कान साफ नजर आ रही थी, उधर शालिनी की मां और बहन चुपचाप बस सुन रही थी। रमेश ने भारी मन से कहा- हां जी, बिल्कुल, जैसा आप ठीक समझें। बात यहीं खत्म होती, उससे पहले ही लड़के की मां फिर बोली, बाकी तो लड़की के गहने-कपड़े, लड़के की सोने की चेन-अंगूठी तो आप देंगे ही। साथ में घर के जरूरी सामान- जैसे फ्रिज, एसी, बेड ये सब तो आम बात है, हर बेटी लेकर ही आती है। इस पर तो बात करने की जरूरत ही नहीं है।

रमेश कुछ पल के लिए बिल्कुल चुप हो गया। 12 लाख की गाड़ी के बाद इतना सब कैसे देगा, यह सोचकर उसका दिल डूबने लगा था, लेकिन फिर भी उसने हिम्मत जुटाई और मुस्कराते हुए कहा, हां जी, सब हो जाएगा, जैसा आप कहें। ऐसा लग रहा था, जैसे उसके पास इन बातों के सिवा और कोई शब्द ही नहीं है। उसने लड़के वालों की किसी भी बात को नकारा नहीं था। उसके इतना कहते ही लड़के वालों के चेहरे खिल उठे। सबने खड़े होकर कहा, बधाई हो! रिश्ता तो पक्का हो ही गया था, हम फोन पर आपको बता ही देते, लेकिन चलो ये बात हम यही कर देते हैं। बाहर से आती बधाई की आवाजें सुनकर शालिनी कमरे से बाहर आ गई। उसकी आंखों में उम्मीद की हल्की चमक थी। लड़के की मां ने मुस्कुराकर कहा, आओ शालिनी, अब तुम हमारे घर की बहू बनने वाली हो, मुंह तो मिठा कर लो।
यह सुनकर शालिनी के चेहरे पर पहली बार सच्ची खुशी दिखाई दी थी, वह मुस्करा रही थी, लेकिन कोई नहीं जानता था कि उस मुस्कान के पीछे उसके पिता की टूटी हुई सांसें और भारी दिल छिपा था, लेकिन बेटी को मुस्कुराते देख, वह अपना सारा दर्द जैसे भूल गया था। शालिनी के चेहरे पर मासूम खुशी थी। उसने मिठाई उठाई, सबको खिलाया, और उसके चेहरे की मुस्कान में किसी को भी यह अहसास नहीं हुआ कि उसके पिता के दिल पर अभी कितने बोझ हैं। सब लोग चले गए। घर के दरवाजे बंद होते ही रमेश की मुस्कान भी फीकी पड़ गई। शालिनी खुशी-खुशी अपने कमरे में कपड़े बदलने चली गई। दूसरी तरफ उसके पिता ने कुर्सी पर बैठते ही गहरी सांस ली। सुमित्रा समझ चुकी थी, यह सब मांग पूरी करना उनके बजट में नहीं था, उसने धीरे से पूछा, क्या हुई जी..हम कैसे करेंगे ये सब।

रमेश बोला, सविता उन्होंने गाड़ी मांगी है, वो भी 12 लाख की। साथ में गहने, फर्नीचर, चेन और अंगूठी से सब भी देना है। अब मैं सोच रहा हूं- कहां से लाऊंगा इतना सब? सुमित्रा के चेहरे पर चिंता की लकीरें उभर आईं। उसने दुखी मन से कहा- इतना सब तो हमारी औकात से बाहर है, अगर ये रिश्ता टूटा तो, शालिनी भी टूट जाएगी। आपने देखा न वो कितना ज्यादा खुश है।
रमेश कुछ पल चुप रहा। उसे याद आया- कैसे शालिनी बचपन से अपनी हर छोटी इच्छा भी पूछकर रखती थी, ताकि घर पर बोझ न बने। उसने कभी एक सामान भी बिना पूछे नहीं खरीदा था। उसने अपनी पत्नी से कहा-मेरी बेटी तो हमेशा मेरे हालात समझती रही, पर अब उसके लिए मुझे ही कुछ करना होगा। रातभर रमेश जागता रहा। उसने पन्ने-पन्ने जोड़कर खर्च का हिसाब लगाया- सेविंग्स, फिक्स्ड डिपॉजिट और थोड़ा कर्ज जोड़कर भी शादी करना मुश्किल हो रहा है, लेकिन मन में केवल एक ही बात चल रही थी कि शालिनी खुश रहेगी। सावित्री ने कहा- चलो अब सो जाओ, कल देखते हैं ये सब। यह बोलते हुए दोनों सो गए। अगले दिन शालिनी आई और बोली- पापा, आप इतने चुप क्यों हैं? रिश्ता पक्का हुआ, खुश तो रहिए। रमेश ने मुस्कुराने की कोशिश की, हां बेटा, बस थोड़ा काम का तनाव है। शालिनी ने प्यार से उनका हाथ थामा- आप चिंता मत कीजिए पापा, सब अच्छा होगा। रमेश ने सिर हिलाया, लेकिन उसके भीतर एक डर था- क्या सच में सब अच्छा होगा? वो नहीं जानता था कि जो रिश्ता दहेज की नींव पर टिका है, वो कब तक टिक पाएगा, लेकिन बेटी की खुशी के लिए वह सब कुछ करने को तैयार था।

3-4 दिन बीतने के बाद, शादी की तारीख पक्की करने के लिए लड़के वालों का सामने से फोन आया था। ऐसा पहली बार था, जब लड़के वाले खुद सामने से फोन कर रहे थे। इस बात से रमेश खुश तो था, लेकिन दहेज का जुगाड़ करना उसके लिए मुश्किल हो रहा था। अब उसके पास घर बेचने के सिवा और कोई चारा नहीं था। उसने सावित्री से कहा, यह घर बेचना पड़ेगा, तभी हम शालिनी की शादी करवा पाएंगे। सावित्री ने कहा.. सुनिए जी, हमारी एक और बेटी है। सब शालिनी पर लगा देंगे, तो इसकी शादी में क्या करेंगे। रमेश ने कहा- अभी हमें अपनी एक बेटी की चिंता करने की जरूरत है। रिया अभी 20 साल की है। उसकी शादी में अभी 10 साल है। भगवान का आर्शीवाद रहा, तो हम कुछ कर लेंगे, उसकी भी शादी हो जाएगी।
ये बोलते हुए उसने कहा, आज ही मैं घर बेचने की बात पड़ोस के ठेकेदार से करता हूं। सावित्री नहीं चाहती थी, लेकिन शालिनी की खुशी के लिए उसे यह मानना पड़ा था। देखते ही देखते शादी की तारीख पक्की हो गई थी और बेटी की शॉपिंग भी शुरू हो गई थी.. रमेश ने घर बेचने के लिए ग्राहक भी खोज लिया था। अब बस शालिनी की शादी होने के बाद घर बेचने का बात पक्की हुई थी। शालिनी अपनी शादी की हर बात से अंजान थी। उसने नहीं पता था कि दहेज में इतना कुछ मांगा गया है। वह बस अपनी शादी से खुश थी, 10 बार रिजेक्ट होने के बाद अब उसके मन में उम्मीद जगी थी, वह बहुत खुश थी।
रमेश ने बेटी के दहेज के लिए सारी तैयारियां कर ली थी, दहेज की सारी चीजें शालिनी को भी नजर आ रही थी। उसे सब ठीक लग रहा था, क्योंकि इतना सामान तो उसके परिवार वालों को किसी भी शादी में देना ही पड़ता, लेकिन 12 लाख की गाड़ी वाली बात से अभी भी शालिनी अंजान थी। उसके पिता ने भी तय किया था कि गाड़ी शादी वाले दिन ही आएगी।

आखिर शादी का दिन भी आ गया। घर दुल्हन की तरह सजाया गया था, सब तैयारियां हो चुकी थी और बाराती भी आने वाले था। कुछ ही घंटों में बाराती पहुंचने वाले थे और शालिनी का मेकअप अभी भी चल रहा था। तभी बाहर से आवाज आई, अरे कितनी सुंदर गाड़ी शालिनी को दहेज में मिल रही है। शालिनी को बात सुनाई तो दी, लेकिन उसने यह बात इग्नोर कर दी। तभी बाहर से उसके पड़ोस में रहने वाली नेहा ने कहा- अरे शालिनी का मेकअप हो जाएगा, एक बार उसे दहेज में आई गाड़ी को तो देखो,.. क्या मस्त गाड़ी है यार।

शालिनी ये बात सुनकर हैरान हो गई.. गाड़ी, कौन सी गाड़ी। गाड़ी थोड़ी दी जा रही है, किसी और की गाड़ी होगी। नेहा ने फिर कहा- नहीं तुम्हारी गाड़ी है ये, तुम्हें दहेज में मिलने वाली है। ये बात सुनते ही जैसे शालिनी के पैरों से जमीन खिसक गई थी। शादी के जोड़े में बैठी शालिनी फौरन कमरे से बाहर निकली और अपने पिता को आवाज लगने लगी.. पापा…पापा .. कहां हो..
रमेश ने कहा- क्या हुआ बेटा.. अरे तुम ऐसे बाहर क्यों घूम रही हो, अपना मेकअप पूरा करो। बारात आने वाली है। शालिनी ने गुस्से में कहा- ये गाड़ी किसकी है।
रमेश ने मुस्कुराते हुए कहा- बेटा ये तेरी ही तो गाड़ी है। मैं तुझे तोहफे में दे रहा हूं।
शालिनी- पापा ये दहेज में गाड़ी मांगी गई और आपने हां किया, इसलिए यह शादी हो रही है न।
10 लाख से भी ज्यादा महंगी गाड़ी है ये। ऐसे दहेज के लालची से आप अपनी बेटी की शादी करवा रहे हैं।
रमेश ने अपनी बेटी को समझाते हुए कहा- नहीं बेटा, मैं अपनी मर्जी से दे रहा हूं.. शालिनी- अब समझ आया, तभी अचानक से उस दिन रिश्ता पक्का हो गया था।

मना कर दो.. ये शादी नहीं होगी। आप खुद मना कर दो, वरना मैं फोन करके मना कर दूंगी।
ये बोलते हुए शालिनी गुस्से में कमरा बंद करके बैठ गई।
रमेश दरवाजे के बाहर खड़ा था, लेकिन अंदर से शालिनी के रोने की आवाज साफ सुनाई दे रही थी। उसका दिल टूट गया।
उसने धीरे से कहा- बेटा, दरवाजा खोलो... बात तो सुनो मेरी।
शालिनी ने जवाब नहीं दिया। कमरे के अंदर वह फर्श पर बैठी थी, हाथों में चेहरा छिपाए हुए। उसे समझ नहीं आ रहा था कि उस रिश्ते को कैसे निभाए जो शुरुआत ही झूठ और लालच पर टिकी थी।
रमेश ने थके हुए स्वर में कहा- लोग क्या कहेंगे, ये तो पूरी ज़िदगी सुना है... लेकिन अगर बेटी की आंखों में दुख रह गया, तो मैं खुद को कभी माफ नहीं कर पाऊंगा।
वह दरवाज़े के पास गया और बोला- शालिनी बेटा, मैं गलत था... मैंने सोचा था कि तेरी खुशी के लिए कुछ भी कर लूंगा, लेकिन शायद भूल गया कि जब रिश्ता मजबूरी से बनता है, तो उसमें खुशी कभी नहीं आती, लेकिन अब सब हो गया है, इस तरह रिश्ता मत तोड़।
शालिनी कमरे से बाहर आई और उसकी आंखें रोने से लाल थीं, उसने कहा- पापा, अगर आज आपने मेरी बात नहीं मानी, तो मैं खुद इस रिश्ते को खत्म कर दूंगी। मुझे ऐसे घर में नहीं जाना जहां मेरी कीमत दहेज से तय हो।
तभी बारात दरवाजे पर आ गई.. शालिनी गुस्से में थी और बिना सोचे समझे दरवाजे के बाहर चली गई और चिल्लाते हुए कहा- चले जाओ यहां से… एक रुपये नहीं मिलेंगे। दहेज के लालची लोगों से मैं शादी नहीं करने वाली।
पूरा माहौल अचानक सन्नाटे में बदल गया। ढोल की आवाज थम गई। दूल्हे के पिता ने गुस्से से कहा- अरे लड़की, होश में तो है? बारात लेकर आए हैं, कोई मजाक नहीं चल रहा यहां! कहां है तेरा पिता, उसे बुला।
शालिनी ने फिर जवाब दिया- मजाक तो आपने किया है, मेरी जिंदगी के साथ! अगर रिश्ता सिर्फ गाड़ी और दहेज पर टिके, तो ऐसी शादी मुझे नहीं करनी!
दूल्हा, जो अब तक खामोश खड़ा था, नीचे नजरें झुकाए सब सुन रहा था।
उसकी मां बोली- हम तो सिर्फ बेटी की सुविधा की बात कर रहे थे, इसमें गलत क्या है?

शालिनी की आंखों में अब आंसू नहीं थे, सिर्फ हिम्मत थी।
उसने कहा- सुविधा नहीं, स्वार्थ है।
अगर मैं आपकी बेटी होती, तो क्या आप मुझसे दहेज मांगते?”
भीड़ में कुछ औरतों ने धीरे से कहा- सही कह रही है लड़की… आजकल ऐसी हिम्मत कौन दिखाता है। रमेश समझ गय था कि अब यह शादी नहीं हो सकती। उसने हाथ जोड़ते हुए कहा- मेरी बेटी शादी नहीं करना चाहती, हमें माफ कर दें। यह शादी नहीं हो पाएगी।
दूल्हे का पिता तिलमिलाया, बोला- ठीक है, याद रखना, अब कोई तुमसे शादी नहीं करेगा! रमेश मुस्कुराए और बोले- कोई बात नहीं, लेकिन मेरी बेटी सिर उठाकर जिएगी, झुककर नहीं। बारात वापस चली गई। शालिनी के आंसू अब गर्व में बदल चुके थे। उसने पापा का हाथ पकड़ते हुए कहा- पापा, शादी नहीं होगी, तो क्या। मैं आपके साथ हमेशा रहूंगी। मैं ही तो आपका बेटा हूं। ऐसे घर में शादी करके आपकी बेटी दुखी रहेगी, तो फायदा क्या। इस तरह भले ही शादी टूट गई थी, लेकिन फिर भी आस-पास खुशी का माहौल था। सब शालिनी और उसके परिवार की तारीफ कर रहे थे, लेकिन बात यहीं खत्म नहीं हुई। जहां शालिनी को रिश्ता नहीं मिल रहा था। वहीं उसी दिन बारात लौटने के बाद भी कई लोगों ने रमेश से अपने बेटे की शादी शालिनी से करवाने की राय रखी।
शालिनी ने यह दिखाया कि लड़की की शादी दहेज पर नहीं, उसकी इज्जत और बराबरी पर होनी चाहिए। उसने अपने आत्म-सम्मान के लिए पूरी बारात के सामने आवाज उठाई- यही असली साहस है।
यह कहानी पूरी तरह से कल्पना पर आधारित है और इसका वास्तविक जीवन से कोई संबंध नहीं है। यह केवल कहानी के उद्देश्य से लिखी गई है। हमारा उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है। ऐसी ही कहानी को पढ़ने के लिए जुड़े रहें हर जिंदगी के साथ।
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