गंधर्व विवाह हिंदू धर्म के विवाहों में से एक है जो दूल्हा और दुल्हन के बीच आपसी प्रेम और आकर्षण पर आधारित होता है। ऐसा माना जाता है कि यह भारत में विवाह के सबसे पुराने रूपों में से एक है और इसका उल्लेख ऋग्वेद, महाभारत और मनुस्मृति जैसे विभिन्न प्राचीन हिंदू ग्रंथों में किया गया है। गंधर्व विवाह में, दूल्हा और दुल्हन एक-दूसरे को साथी के रूप में चुनते हैं और अपने माता-पिता की सहमति या किसी औपचारिक समारोह के बिना शादी कर लेते हैं। विवाह तब तक वैध माना जाता है जब तक युगल एक-दूसरे से प्रेम करते हैं और एक-दूसरे के प्रति प्रतिबद्ध रहते हैं।
ऐसा माना जाता है कि इस प्रकार का विवाह प्राचीन काल में गंधर्व समुदाय के बीच प्रचलित था, जो अपनी संगीत प्रतिभा और संगीत प्रेम के लिए जाने जाते थे।
भारतीय संस्कृति और धर्म शास्त्रों में विवाह को एक विशेष धार्मिक और सामाजिक संस्कार माना जाता है। विभिन्न शास्त्रों में विवाह के कई प्रकारों का उल्लेख मिलता है, जिनमें से एक प्रमुख है 'गंधर्व विवाह'। यह विवाह प्रेम, स्वतंत्रता और सहमति पर आधारित होता है, जहां दो व्यक्तियों के बीच बिना किसी सामाजिक या धार्मिक विधि के विवाह होता है। आइए यहां ज्योतिर्विद पंडित रमेश भोजराज द्विवेदी से विस्तार से।
क्या होता है गंधर्व विवाह
गंधर्व विवाह को प्रेम विवाह का प्राचीन रूप माना जा सकता है। इसमें दो व्यक्तियों के बीच प्रेम और आपसी सहमति से शादी होती है। इस विवाह में किसी पारिवारिक या सामाजिक हस्तक्षेप नहीं होता है। यह विवाह शास्त्रों में स्वीकार्य है और इसे आदर्श विवाह के रूप में भी माना जाता है, क्योंकि इसे दैवीय प्रेम का प्रतीक माना गया है। महाभारत और रामायण जैसे महाकाव्यों में भी गंधर्व विवाह के कई उदाहरण मिलते हैं, जिनमें द्रौपदी और अर्जुन तथा शकुंतला और राजा दुष्यंत की शादी गंधर्व विवाह के रूप में वर्णित है।
गंधर्व विवाह का इतिहास और पौराणिक महत्व
गंधर्व विवाह का उल्लेख सबसे पहले वेदों और शास्त्रों में मिलता है। 'गंधर्व' का अर्थ देवताओं के एक वर्ग से है जो संगीत और नृत्य के संरक्षक माने जाते हैं। इसे प्रेम और आकर्षण से जोड़ा जाता है और इसे बिना किसी धार्मिक विधि के, केवल आत्मीयता के आधार पर मान्यता प्राप्त विवाह के रूप में देखा जाता है। गंधर्व विवाह में प्रेम और आपसी आकर्षण को ही विवाह की पवित्रता का आधार माना गया है।
विवाह के अन्य रूपों से कैसे अलग है गंधर्व विवाह
जिस प्रकार अन्य विवाहों में शादी से जुड़ी विभिन्न रस्में होती हैं, गंधर्व विवाह में ऐसा कोई भी बंधन नहीं होता है। इस विवाह में परिवार की सहमति से ज्यादा मायने दूल्हे और दुल्हन की सहमति रखती है। यूं कहा जाए कि इस विवाह के लिए परिवार या समाज की अनुमति आवश्यक नहीं होती। यह विवाह अधिकतर तब होता है जब दोनों व्यक्ति एक-दूसरे से प्रेम करते हैं और आपस में विवाह के लिए सहमत होते हैं।
गंधर्व विवाह में किसी धार्मिक रीति-रिवाज या मंत्रों की आवश्यकता नहीं होती। गंधर्व विवाह स्वतंत्रता और आत्मनिर्णय के अधिकार का प्रतीक माना जाता है। इसमें किसी बाहरी हस्तक्षेप के बिना, वर-वधू अपने निर्णय स्वयं लेते हैं।
गंधर्व विवाह में समाज और परिवार की भूमिका नगण्य होती है।
यह विवाह मुख्यतः व्यक्तिगत होता है, जो किसी सामाजिक या पारिवारिक बंधन से मुक्त होता है। प्राचीन काल से ही इस विवाह को नैतिकता और पवित्रता के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। यह दो आत्माओं के मिलन का ऐसा रूप है जो केवल प्रेम और आपसी समझ पर आधारित होता है।
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गंधर्व विवाह के फायदे और नुकसान क्या हैं
गंधर्व विवाह के कई फायदे होते हैं जैसे कि यह दोनों व्यक्तियों को स्वतंत्रता और आत्मनिर्णय का अधिकार प्रदान करता है। यह विवाह जाति, धर्म या सामाजिक मान्यताओं से मुक्त होता है, जिससे दो प्रेमी अपने संबंध को समाज की सीमाओं से बाहर भी निभा सकते हैं। इस विवाह में किसी धार्मिक विधि की आवश्यकता नहीं होती है इसी वजह से इसके लिए किसी रीति-रिवाज का बंधन नहीं होता है।
हालांकि, अगर देखा जाए तो इस विवाह में परिवार या समाज की सहमति नहीं होती है जिसकी वजह से यह कई बार विवादों का कारण भी बन सकता है। कई बार इस विवाह को समाज से स्वीकृति नहीं मिलती है। इसलिए कई बार यह भविष्य में विवादों का कारण बन सकता है। साथ ही, समाज में इसे स्वीकृति नहीं मिलती है और इसे अक्सर सामाजिक स्तर पर मान्यता प्राप्त नहीं होती है।
पौराणिक कथाओं में गंधर्व विवाह क्या है?
भारतीय महाकाव्य महाभारत और रामायण में गंधर्व विवाह के कई उदाहरण मिलते हैं-
दुष्यंत और शकुंतला- महाकवि कालिदास के अभिज्ञानशाकुन्तलम् में राजा दुष्यंत और शकुंतला के प्रेम की कथा गंधर्व विवाह का उदाहरण है। उनके प्रेम में सामाजिक या धार्मिक हस्तक्षेप नहीं था और उनके बीच केवल प्रेम और समर्पण का संबंध था।
अर्जुन और उर्वशी- महाभारत में अर्जुन और उर्वशी के बीच का संबंध भी गंधर्व विवाह का ही एक उदाहरण है। उर्वशी एक अप्सरा थी और दोनों के बीच केवल प्रेम का संबंध था।
कृष्ण और रुक्मिणी- पुराणों में भगवान श्रीकृष्ण और रुक्मिणी का विवाह भी एक गंधर्व विवाह के रूप में ही वर्णित है। जहां रुक्मिणी ने श्रीकृष्ण को प्रेम पत्र भेजा और विवाह के लिए सहमति व्यक्त की।
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गंधर्व विवाह के नियम और विधि
गंधर्व विवाह की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें किसी धार्मिक अनुष्ठान की आवश्यकता नहीं होती है। इसके नियम बहुत सरल होते हैं-
- गंधर्व विवाह के लिए वर-वधू की आपसी सहमति और प्रेम आवश्यक है। यह विवाह तभी होता है जब दोनों पूर्ण सहमति से विवाह के लिए तैयार हों।
- इस विवाह में किसी धार्मिक अनुष्ठान या परिवार की आवश्यकता नहीं होती, यह मात्र आत्मा का मिलन होता है।
- गंधर्व विवाह के बाद, आमतौर पर युगल अपने परिवार और समाज को सूचित करते हैं, ताकि उन्हें भी उनके रिश्ते की जानकारी हो जाए।
किसी भी अन्य विवाह की तरह इस विवाह का भी विशेष महत्व है, लेकिन इसके बारे में सकारात्मक अथवा नकारात्मक विचार रखना व्यक्तिगत सोच पर आधारित होता है।
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