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How hindu religion defines marriage

हिंदू धर्म में होती हैं 8 तरह की शादी, राक्षस विवाह का है अलग महत्व

हिंदू धर्म में जहां ब्रह्म विवाह होता है वहीं राक्षस विवाह भी होता है, लेकिन ये असल में होते क्या हैं वो भी जान लीजिए।&nbsp; <div>&nbsp;</div>
Editorial
Updated:- 2023-01-13, 07:30 IST

हिंदू धर्म में शादी एक ऐसा पवित्र बंधन माना जाता है जो सात जन्मों तक चलता है। हिंदू शादियों की बात करें तो भारत में लगभग हर प्रांत में अलग-अलग रिवाज होते हैं। पर क्या आपको ये पता है कि हिंदू धर्म में कई अलग तरह के विवाह भी होते हैं। अगर आप धर्म और ग्रंथों की जानकारी रखते हैं तो आपको पता होगा कि विवाह को सोलह संस्कारों में से पंद्रहवां संस्कार माना जाता है। आपको शायद पता ना हो, लेकिन हमारे यहां धार्मिक विवाह अलग-अलग तरह के होते हैं।

यहां एक दो नहीं बल्कि 8 तरह के धार्मिक विवाहों का विवरण है। मनुस्मृति में विवाह को आठ अलग तरह से विभाजित किया गया है और जितने भी रिवाज अलग-अलग प्रांतों में मौजूद हैं वो सभी इसके आधार पर ही होते हैं।

1. ब्रह्म विवाह

क्या है खासियत- इस विवाह में वर-वधु दोनों का एक वर्ण का होना आवश्यक है।

इस तरह के विवाह में वर-वधु दोनों की आयु 25 से ऊपर होनी चाहिए और इस तरह के विवाह में कन्यादान का महत्व ज्यादा होता है। इस तरह के विवाह में वैदिक मंत्रों का जाप अनिवार्य होता है। इस तरह के विवाह में शुभ मुहूर्त की भी बहुत मान्यता होती है।

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2. प्रजापत्य विवाह

क्या है खासियत- इसमें वधु की आयु छोटी होती है।

इस तरह के विवाह की अनुमति अब नहीं होती। इसमें वधु की मर्जी के खिलाफ भी उसकी शादी की जा सकती है। छोटी आयु में जब विवाह किया जाता है तब उसे वर को नहीं बल्कि उसके पिता को सौंपा जाता है ताकि वो ससुराल में बेटी बनकर रहे।

3. दैव विवाह

क्या है खासियत- वधु का विवाह किसी सिद्ध पुरुष या ज्ञानी से कर दिया जाता है।

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इसे वास्तव में कन्या का दान समझा जाए तो गलत नहीं होगा। ये ब्रह्म विवाह का ही एक स्वरूप है, लेकिन इसमें अधिकतर वधु पक्ष के लोग निर्धन होते हैं या फिर कन्या की विवाह की उम्र ज्यादा हो जाती है। ऐसे में कन्या का विवाह किसी सिद्ध पुरुष से कर दिया जाता है।

4. गंधर्व विवाह

क्या है खासियत- इसे प्रेम विवाह कहा जाता है।

पहले के समय में अपनी पसंद की शादी को गंधर्व विवाह कहते थे। जब वर और वधु एक दूसरे को पसंद कर लेते थे। इस तरह के विवाह में अधिकतर परिवार की सहमति नहीं होती थी और इसे ही गंधर्व की संज्ञा दी जाती थी। प्राचीन काल में ऐसे कई विवाह हुए थे जिन्हें गंधर्व की संज्ञा दी गई थी उदाहरण के तौर पर शकुंतला और दुष्यंत का विवाह।

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5. आर्ष विवाह

क्या है खासियत- इस विवाह में वर पक्ष के लोग कन्या पक्ष के लोगों को गाय या बैल देते हैं।

गौदान को बहुत बड़ा दान माना जाता है और ऐसे में आर्ष विवाह में गाय दान करने की प्रथा बताई जाती है। हालांकि, आज के जमाने में कन्या पक्ष को दिया गया कोई भी मूल्य चुकाना आर्ष विवाह ही कहलाता है। इसमें वर और वधु दोनों की सहमति विवाह के लिए जरूरी है।

6. असुर विवाह

क्या है खासियत- इस तरह के विवाह में कन्या का सौदा किया जाता है।

आर्ष विवाह में जहां दान दिया जाता है वहीं इस तरह के विवाह में कन्या का सौदा किया जाता है। उसका मूल्य चुका कर एक तरह से वर पक्ष के लोग उसे खरीदकर ले जाते हैं। ये अधिकतर गरीब परिवारों में होता है जहां कन्या का विवाह किसी ऐसे पुरुष से भी कर दिया जाता है जिसमें कोई दोष हो।

7. पिशाच विवाह

क्या है खासियत- इस तरह के विवाह में कन्या की मर्जी शामिल नहीं होती

इसे भी खराब विवाह की श्रेणी में रखा जाता है जहां कन्या या तो होश में नहीं होती है या फिर उसका विवाह किसी तरह का दबाव डालकर किया जाता है। पिशाच विवाह में कई बार कन्या अपने विवाह के दौरान होश में भी नहीं रहती है।

8. राक्षस विवाह

क्या है खासियत- जब कन्या के परिवार वाले विवाह के लिए सहमत ना हों, लेकिन फिर भी विवाह कर लिया जाए।

ऐसा अधिकतर लव मैरिज में होता है जहां कन्या भागकर अपनी पसंद से शादी कर लेती है। कन्या के परिवार वाले इस तरह के विवाह में विरोध करते हैं। भगवान श्री कृष्ण और रुक्मणी का विवाह भी राक्षस विवाह की श्रेणी में आता था जहां कृष्ण के साथ रुक्मणी ने भागकर शादी की थी।

ये सारे विवाह हिंदू धर्म के हिसाब से निश्चित किए गए हैं। तो आपका विवाह किस श्रेणी में आता है? हमें अपने जवाब आर्टिकल के नीचे दिए कमेंट बॉक्स में बताएं। अगर आपको ये स्टोरी अच्छी लगी है तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से।

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