नवरात्रि का त्योहार शुरू हो गया है और इस त्योहार के साथ ही शुरू हो गया है उत्सव का दौरा। हिंदू धुर्म के हिसाब से नवारात्रि के बाद त्योहारों की झाड़ी लग जाती है। नवरात्रि की नवमी के बाद विजयदशमी यानी दशहरा आता है। इसके बाद करवाचौथ, शरद पूर्णनिमा, धनतेरस, नरख चौदस, दिवाली, परेवा, भाई दूज और कार्तिक पूर्णनिमा के साथ ही त्योहारा का तांता टूटता है। इन सभी त्योहारों में देवी देवताओं के आगे दीपक जलाने का रिवाज होता है। हिंदू धर्म में मान्यता अनुसार घर के मंदिर में दीपक जलाना बहुत ही शुभ होता है।
17 अक्टूबर से शारदीय नवरात्रि आरंभ हो रही हैं। यदि आप देवी जी की घर में स्थापना कर रही हैं या फिर दीवी जी के आगे दीपक जला रही हैं तो कुछ नियमों का पालन आपको करना चाहिए।
पंडित दयानंद शास्त्री बताते हैं, ‘ दीपक का अर्थ ही होता है जीवन से अंधकार को मिटाना। जलता हुआ दीपक ज्ञान का प्रतीक होता है। आपको बता दें कि दीपक जलाने से अग्निदेव भी प्रसन्न होते हैं। मगर, वास्तुशास्त्र के मुताबिक दीपक जलाने के कुछ नियम और कायदे होते हैं। अगर आप इनका ध्यान रखते हैं तो इससे आपको बहुत फायदा होता है।’
खासतौर पर नवरात्रि के त्योहार में देवी जी के आगे दीपक जलाते वक्त आपको वास्तु का खास ख्याल रखना चाहिए। यदि आप वास्तुशास्त्र दिए गए नियमों के अनुसार देवी जी के आगे दीपक जलाएंगे तो आपको मनवांछित फल मिलेगा।
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किसी भी देवी और देवता की पूजा तब तक पूरी नहीं हो सकती जब तक उनकी आरती न की जाए और आरती बिना दीपक जलाए अधूरी होती है। अगर आप विधिवत पूजा करते हैं तो आपको बता दें कि दीपक जलाते वक्त एक खास मंत्र का उच्चारण जरूर करना चाहिए। ऐसा करना शुभ होता है। इससे भगवान की आरती को पूर्ण माना जाता है। आपको बता दें कि जब आप नवरात्रि में देवी जी की पूजा करें और दीप जाएं तो इस मंत्र का जाप जरूर करें।
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मंत्र-
दीपज्योति: परब्रह्म: दीपज्योति: जनार्दन:।
दीपोहरतिमे पापं संध्यादीपं नामोस्तुते।।
शुभं करोतु कल्याणमारोग्यं सुखं सम्पदां।
शत्रुवृद्धि विनाशं च दीपज्योति: नमोस्तुति।।
इस मंत्र का सरल अर्थ पंडित दयानंद शास्त्री बताते हैं,
‘ इसका अर्थ है, शुभ और कल्याण करने वाली, आरोग्य और धन संपदा देने वाली, शत्रु बुद्धि का नाश और शत्रुओं पर विजय दिलाने वाली दीपक की ज्योति को हम नमस्कार करते हैं।’
भारत में दीयों का इतिहास वैसे तो 5000 वर्षो से भी अधिक पुराना है। मगर वेदों में यही बताया गया है कि भगवान का कोई भी कार्य दियों के बिना अधूरा है। साथ ही अगर घर में कोई शुभ कार्य हो रहा है तो आपको दिए जरूर जलाने चाहिए। इससे घर में शुभ समाचार और सकारात्मक उर्जा बनी रहती है। मगर, दिया की चीज का बना हो इस पर वेदों में काफी कुछ बताया गया है। वेदों के अनुसार मिट्टी और पीतल धातु का दीया ही सबसे शुभ होता है।
पीतल का दीपक
आजकल बाजारों में स्टील के दीपक (पूजा में दीपक का महत्व )भी प्रचलन में हैं लेकिन प्राचीन समय से पीतल धातु को ही पूजा के कार्यों में सब से शुभ माना गया है। इसीलिए पीतल की धातु का दिया ही जलाना शुभ होता है। पंडित जी बताते हैं, ‘पीतल की धातु में दिया जलाने से देवी तो खुश रहती ही हैं साथ इसे आपकी आयु और आय दोनों बढ़ती हैं।’
मिट्टी का दिया
मिट्टी का दिया भी बहुत शुभ होता है। हां इस बात का ध्यान रखें कि अगर आप मिट्टी के दिए में भगवान जी का दीपक जला रही हैं तो वह दिया कहीं से भी खंडित नहीं होना चाहिए। मिट्टी का दिया बेहद पवित्र होता है और आप इसे बार-बार धो कर इस्तेमाल कर सकते हैं। पहली बार जब आप मिट्टी का दिया इस्तेमाल कर रही हों तब आपको उस दिए को कुछ देर के लिए पानी में भिगो कर रखना चाहिए और फिर सुखा लेना चाहिए।
ऐसी बाती करें इस्तेमाल
दीपक जलाने के लिए आपको सफेद रूई से बनी बाती का ही इस्तेमाल करना चाहिए कई लोग ऐसा करने की जगह सूत के धागे का इस्तेमाल करते हैं मगर यह सही नहीं है। हां, आप चाहें तो मौली की बाती बना सकते हैं। खासतौर पर नवारात्रि के दिनों में माता रानी के आगे यदि आप मौली की बाती का दीपक जलाती हैं तो इससे देवी लक्ष्मी बहुत प्रसनन होती हैं और आपके जीवन को खुशियों से भर देती हैं। ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री बताते हैं,
‘ब्रम्हवर्तक पुराण, देवी पुराण, उपनिषदों तथा वेदों में में इस बात का वर्णन है कि पूजा के समय गाय के देसी घी और तिल के तेल का ही इस्तेमाल करना शुभ माना गया है।’
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