'अनुपमा' शो में रुपाली गांगुली का किरदार अपने आत्मसम्मान और अपने करियर के लिए लड़ता है। वह एक जिम्मेदार पत्नी, एक प्यार करने वाली मां, एक आदर्श बहू और एक हंसमुख सहेली है जिसे लोग पसंद करते हैं। इस शो ने पिछले कुछ महीनों में रेटिंग्स का रिकॉर्ड तोड़ दिया है और ना जाने कितनी बार इस शो को लेकर मीम्स भी बन चुके हैं। सीरियल की शुरुआत में एक मां को दिखाया गया था जो अपने अस्तित्व को खोज रही है और अपना करियर उस उम्र में बना रही है जब लोग रिटायरमेंट के बारे में सोचने लगते हैं। उसके बच्चे भी उसका साथ नहीं दे रहे हैं, लेकिन फिर भी वो आगे बढ़ रही है।
पर धीरे-धीरे इस शो की असलियत बदल सी गई है। अब वह मां वही घिसे-पिटे ढर्रे पर चल रही है। वह अपने अस्तित्व को खोकर त्याग की मूर्ति बन गई है।
अब यह शो प्रोग्रेसिव नहीं रहा और परिवार के लिए त्याग की मूर्ति बनी 'अनुपमा' के दुखों के बारे में हो गया है।
एक भारतीय मां अपना तन-मन-धन लगा दे और उसके रास्ते में बहुत सारी कठिनाइयां आएं। वह पूरी कोशिश करे जिससे चीजें ठीक हों, लेकिन फिर भी सब उसी को ब्लेम करें। ऐसे में 'अनुपमा' एक आइडियल भारतीय मां नहीं है, बल्कि उसकी कुछ ऐसी बातें हैं जिससे हर महिला की जिंदगी में परेशानियां आ सकती हैं। इन बातों को 'अनुपमा' से कभी नहीं सीखना चाहिए।
1. बार-बार कोई बेइज्जती करे फिर भी उसके बारे में सोचते रहना
'अनुपमा' सीरियल में बा, परितोष, वनराज, काव्या, अनुपमा के जेठ-जेठानी और उसकी प्यारी बेटी स्वीटी उर्फ पाखी हमेशा ही उसकी बेइज्जती करते रहते हैं। किसी भी परिवार में इतनी बेइज्जती सहना और फिर भी उनके बारे में अच्छा सोचना सही हो सकता है। यह दिखाता है कि आप अच्छे इंसान हैं, लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं कि सालों से बेइज्जती सहने के बाद भी उनके एक आंसू पर पलके बिछा दें और अपनी खुशी के बारे में बिल्कुल ही ना सोचें। एक कहावत है कि 'अगर आप खुद से प्यार नहीं करेंगे, तो लोग भी आपसे प्यार नहीं करेंगे' यह अनुपमा सीरियल में साफ दिखाया जाता है।
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देखिए प्यार बांटना और दूसरों के बारे में गलत ना सोचना सही है, लेकिन इन सभी चीजों की एक लिमिट होती है जिसके बारे में सोचना भी जरूरी है।
2. दूसरों के लिए अपने करियर से समझौता करना
'अनुपमा' अपनी डांस अकादमी भी समर और डिंपी के नाम करके चली जाती है। अनुज की कंपनी ने जॉब मिलती है उसे भी किसी और के बारे में सोचकर छोड़ देती है। उसका अपना करियर कुछ मायने नहीं रखता है और बस दूसरों के बारे में सोचकर दर-दर की ठोकरें खाती रहती है। हां, यह टीवी सीरियल है और क्रिएटिव लिबर्टी भी ली जाती है, लेकिन अगर कोई ऐसा व्यक्तित्व असल जिंदगी में दिखाने की कोशिश करे, तो उसका काम ना के बराबर हो पाता है।
जिंदगी में अपना करियर और सुविधा भी उतनी ही जरूरी है जितनी परिवार की सुविधा।
3. बड़े जो भी कहें सही या गलत उसे मानने की आदत
हो सकता है आप में से कुछ लोगों को मेरी यह बात थोड़ी बुरी लगे, लेकिन इस बात पर गौर करना भी जरूरी है। आप सोचिए कि दिन भर घर का काम करने वाली बहू, अपने बारे में कभी ना सोचने वाली बहू, खुद की जिंदगी से समझौता करने वाली बहू सास की हर बात को सुनती है। सास उसकी कितनी भी बेइज्जती कर ले, उसकी जगह उसकी सौतन को घर में ले आए, उसके काम को कभी महत्व ना दे, लेकिन बहू का फर्ज है सास की बातों को सुनना।
मैं मानती हूं हर बात के लिए बड़ों को जवाब देना गलत है, बड़ों की दो बातें एक्स्ट्रा सुन लेना भी सही है, लेकिन अगर बड़ों की इज्जत होती है, तो छोटों की भी होती है। बड़ों की हर सही और गलत बात को मान लेना हर वक्त सही नहीं होता।
4. बच्चा चाहे जितना भी गलत हो उसकी हर गलती को माफ कर देना
'अनुपमा' सीरियल की पाखी और परितोष दोनों ही अपनी मां की हमेशा बेइज्जती करते रहते हैं। दोनों का जिस तरह का व्यवहार शो में दिखाया गया है वह देखकर आपको भी उनके किरदार पर गुस्सा आ जाएगा। पर अनुपमा अपने बच्चों से इतना प्यार करती है कि उनकी हर अच्छी बुरी बात को सही मान लेती है। वह किसी भी हालत में बच्चों के खिलाफ नहीं जाती है और उन्हें गलत नहीं समझ पाती है। गुस्सा आने के बाद भी बच्चों को एक बार में माफ कर देती है।
मां को सिर्फ प्यार करना है यह जरूरी नहीं है। उसे बच्चों को डांटना और उनकी गलत बातों पर उन्हें सजा देना भी जरूरी है, लेकिन अनुपमा यह भूल ही जाती है।
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5. पति की दूसरी शादी के बाद भी पति के घर में कई दिन तक रहना
अगर आपको अपनी मेंटल हेल्थ की थोड़ी भी फिक्र है, तो आप कभी यह काम नहीं करेंगी कि अपनी सौतन के साथ अपने एक्स पति के घर रह लें। इसलिए अनुपमा से यह सीख तो बिल्कुल ना लें।
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