अभी तक दहेज उत्पीड़न के मामले सामने आने पर पति और उसके परिवार को नियमों के तहत जो सुरक्षा कवच मिला हुआ था, वह सुप्रीम कोर्ट के नए फैसले के साथ खत्म हो गया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने पहले के फैसले में अहम बदलाव करते हुए पति और उसके परिवार की गिरफ्तारी का रास्ता भी साफ कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि शिकायतों के निपटारे के लिए परिवार कल्याण कमेटी की रिपोर्ट की जरूरत नहीं है। जाहिर है इस नए प्रावधान के जरिए मामले में आरोपियों की तुरंत गिरफ्तारी पर लगी रोक सुप्रीम कोर्ट ने हटा दी है। शीर्ष अदालत का कहना है कि पीड़ित महिला की सेफ्टी के लिए ऐसा करना जरूरी है। कोर्ट ने आरोपियों के लिए कानूनी प्रावधान के बारे में कहा कि वे अग्रिम जमानत का विकल्प अपना सकते हैं। अदालत ने कहा कि पुलिस दहेज उत्पीड़न के मामले में सीधे कार्रवाई करेगी। अब पुलिस मामले की गंभीरता को देखते हुए सीआरपीसी की धारा 41 के तहत काम करेगी, जिसमें आरोपी के खिलाफ पर्याप्त आधार होने पर ही गिरफ्तारी का प्रावधान है।
दहेज प्रताड़ना मामले में सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच ने पिछले साल दिए अपने फैसले में कहा था कि दहेज प्रताड़ना के केस में सीधे गिरफ्तारी नहीं होगी लेकिन इस फैसले के बाद चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुआई वाली तीन जजों की बेंच ने कहा था कि दहेज प्रताड़ना मामले में दिए फैसले में जो सेफगार्ड दिया गया है उससे वह सहमत नहीं हैं। दो जजों की बेंच के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस की अगुआई वाली तीन जजों की बेंच ने दोबारा विचार करने का फैसला किया था और सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था।
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इससे पहले 27 जुलाई 2017 को सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने अपने फैसले में कहा था कि आईपीसी की धारा-498 ए यानी दहेज प्रताड़ना मामले में सीधे गिरफ्तारी नहीं की जाएगी। उस समय में शीर्ष अदालत ने कहा था कि दहेज प्रताड़ना मामले की जांच के लिए हर जिले में एक परिवार कल्याण समिति गठित की जाएगी और समिति की रिपोर्ट के आधार पर ही गिरफ्तारी होगी। सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए दहेज उत्पीड़न मामले में कानून के बढ़ते दुरुपयोग पर चिंता जाहिर की। सुप्रीम कोर्ट ने तब लीगल सर्विस अथॉरिटी से प्रत्येक जिले में परिवार कल्याण समिति का गठन करने के लिए कहा था।
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पहले की रूलिंग में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस ए के गोयल और जस्टिस यू यू ललित की बेंच ने कहा था कि राजेश शर्मा बनाम स्टेट ऑफ यूपी के केस में गाइडलाइंस जारी की थी और इसके तहत दहेज प्रताड़ना के केस में सीधे गिरफ्तारी से सुरक्षा दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने अरनेश कुमार बनाम बिहार स्टेट के मामले में फैसला सुनाया था कि बिना किसी ठोस कारण के गिरफ्तारी नहीं होनी चाहिए। तब विशेषज्ञों ने कहा था कि निर्दोष लोगों के ह्यूमन राइट्स को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इसी के आधार पर अनचाही गिरफ्तारी और बिना पर्याप्त आधार के छानबीन से सुरक्षा की जरूरत का हवाला दिया गया था।
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