हिंदू धर्म में छठ पूजा का पर्व सुख-समृद्धि और आरोग्य प्राप्ति का पर्व माना जाता है। इस पर्व में सूर्यदेव की उपासना की जाती है और 36 घंटे तक बिना जल और अन्न के यह पर्व व्रती महिलाएं पूरे विधि-विधान के साथ करती हैंष यह केवल परेव ही नहीं है। यह शक्ति का पर्व भी माना जाता है। आपको बता दें, छठ पूजा में खरना के बाद अगले दिन सूर्यदेव को संध्या अर्घ्य देने का महत्व है। उसके बाद घर आकर परिवार के सभी लोग एकत्रित होते हैं, फिर गन्ने से घेरा बनाकर कोसी भरी जाती है। अब ऐसे में कोसी भराई का महत्व क्या है। इसके बारे में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं।
छठ पूजा की शाम को क्यों भरी जाती है?
कोसी भरने की परंपरा प्राचीन समय से चलती आ रही है। ऐसा कहा जाता है कि सबसे पहले सीता मईया ने छठ पूजा की थी और कोसी भराई की थी। छठ पूजा के तीसरे दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और फिर व्रती महिलाएं घर आकर परिवार के साथ कोसी भरती हैं। ऐसा कहा जाता है कि कोसी भराई मन्नत का प्रतीक है। अगर किसी दंपत्ति को संतान नहीं है, तो छठ पूजा का व्रत बेहद शुभ फलदायी माना जाता है। वहीं जब भक्तों की पूरी हो जाती है, तो पूरे परिवार के सुखी जीवन और अच्छे स्वास्थ्य के लिए कोसी भरते हैं। कोसी मुख्य रूप से भक्त अपने घर के छत पर या फिर घाट के किनारे भी करते हैं।
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कोसी भराई कैसे की जाती है?
कोसी भराई के लिए सबसे पहले 5, 11 या 21 गन्ने लिए जाते हैं, फिर गन्ने को चारों तरफ बांधा जाता है। उसके बाद आटे से पारंपरिक रगोई बनाई जाती है और मिट्टी के हाथी को रखा जाता है। इसके बाद सिंदूर चढ़ाया जाता है। उसके बाद 12 या 24 दीए जलाए जाते हैं। पश्चात कलश स्थापित करते हैं, जिसमें कलश पर फल, ठेकुआ और बाकी पूजा सामग्री रखी जाती है।
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इसके बाद कोसी पर और फिर उसके अंदर दीपक जलाया जाता है। फिर सूर्यदेव को अर्घ्य देने वाली सामग्री से भरे सूप पर भी दीपक जलाया जाता है। कोसी भरने के दौरान शुद्धता और पवित्रता का विशेष ध्यान रखना होता है।
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Image Credit- HerZindagi
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