herzindagi
SUPREME COURT ON SABRIMALA main

सबरीमाला में महिलाओं के जाने पर रोक पुरुषवादी सोच को दर्शाता है- सुप्रीम कोर्ट

जस्टिस डी वाई चंद्रचूड ने कहा कि महिलाओं के सबरीमाला मंदिर में प्रवेश निषेध की परंपरा को स्वीकार करने की वजह उनकी सोशल कंडिशनिंग और पुरुषवादी समाज में उनका पैदा होना है।&nbsp; <div>&nbsp;</div>
Her Zindagi Editorial
Updated:- 2018-07-25, 16:58 IST

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक पुरुषवादी सोच के तहत है, जिसमें माना जाता है कि पुरुषों का डॉमिनेंट स्टेटस उन्हें कठोर नियमों का पालन करने के योग्य बनाता है, वहीं महिलाएं सिर्फ 'पुरुषों की संपत्ति' है और 41 दिनों तक वह तीर्थयात्रा के दौरान पवित्र नहीं रह सकती। दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने कहा कि अदालत  पुरुषवादी सोच और शॉविनिज्म को स्वीकार नहीं करती।

  SUPREME COURT ON SABRIMALA inside

त्रावणकोर बोर्ड ने ये कहा

त्रावणकोर बोर्ड, जो 10-51 साल की महिलाओं के मंदिर में प्रवेश करने के खिलाफ है, ने कहा कि पहले के समय से हर धर्म पुरुषवादी सोच पर आधारित है। बोर्ड की तरफ से वरिष्ठ वकील ए एम सिंघवी ने कहा, 'महिलाओं के मंदिर में जाने पर रोक पुरुषवादी सोच की वजह से नहीं है। इसे तपस्या और देवता के चरित्र से जोड़ा गया है। महिलाएं इस निषेध को स्वीकार करती हैं। उन पर यह थोपा नहीं गया है।' 

Read more : सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद खाप पंचायत को दो व्यस्कों की शादी को रोकना गैरकानूनी

सोशल कंडिशनिंग 

जस्टिस डी वाई चंद्रचूड ने कहा कि महिलाओं का इस परंपरा को स्वीकार करने की वजह उनकी सोशल कंडिशनिंग और पुरुषवादी समाज में उनका पैदा होना है। महिलाओं ने इसे बिना किसी तरह के सवाल खड़ा किए ही स्वीकार कर लिया होगा, क्योंकि 'महिलाओं को हमेशा से ही बताया गया है कि उन्हें क्या करना है और क्या नहीं करना है।'

 

धर्म से जुड़े मामले संवेदनशील

सिंघवी ने कहा, 'मेरी सोच यहां संकीर्ण हो सकती है, लेकिन यहां आप तर्क ना खोजें। ये धर्म से जुड़े संवेदनशील मामले हैं।' सिंघवी ने शियाओं में प्रचलित खुद अपनी आलोचना किए जाने का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा, 'आप कह सकते हैं कि यह परंपरा बर्बरतापूर्ण है या फिर आप कह सकते हैं कि यह धार्मिक है। लेकिन सच यह है कि लोग इसमें यकीन करते हैं, जबकि यह साल 2018 की आधुनिक सोच से मेल नहीं खाता।' सिंघवी ने महिलाओं (चाहें उनकी मासिक धर्म वाली उम्र हो या ना हो) के मस्जिदों में प्रवेश ना किए जाने का भी जिक्र किया। इस पर जस्टिस चंद्रचूड ने कहा कि अदालत अधिकारों के सवाल पर आधुनिक सोच पर निर्भर नहीं है। 

यह विडियो भी देखें

सिंघवी ने कहा कि अदालत आर्टिकल 32 के आधार पर प्रचलित परंपराओं से मुंह नहीं मोड़ सकती। 'मैं या आप यह कहने वाले कोई नहीं हैं कि यह चलन अतार्किक है। यह सोच अयप्पा स्वामियों की दी हुई है।'

 

Disclaimer

हमारा उद्देश्य अपने आर्टिकल्स और सोशल मीडिया हैंडल्स के माध्यम से सही, सुरक्षित और विशेषज्ञ द्वारा वेरिफाइड जानकारी प्रदान करना है। यहां बताए गए उपाय, सलाह और बातें केवल सामान्य जानकारी के लिए हैं। किसी भी तरह के हेल्थ, ब्यूटी, लाइफ हैक्स या ज्योतिष से जुड़े सुझावों को आजमाने से पहले कृपया अपने विशेषज्ञ से परामर्श लें। किसी प्रतिक्रिया या शिकायत के लिए, compliant_gro@jagrannewmedia.com पर हमसे संपर्क करें।