रामायण की कथा आप सभी ने सुनी या देखी होगी और ये रामायण प्रभु श्री राम और माता सीता के अटूट प्रेम और विशवास की कहानी बयां करती है। रामायण की कथा के अनुसार भगवान श्री राम को चौदह साल का वनवास मिला था और इस वनवास के दौरान माता सीता और लक्ष्मण भी उनके साथ थे। वनवास के कठिन समय के दौरान लंका पति रावण ने माता सीता को अपहरण करके बंदी बना लिया था और इसी वजह से राम और रावण के बीच युद्ध हुआ था। रामायण की न जाने कितनी कथाएं प्रचलित हैं और इनमें से एक प्रमुख कथा है सीता माता की अग्नि परीक्षा की कथा।
वास्तव में ये बात थोड़ी सोचने पर मजबूर करती है कि आखिर माता सीता और प्रभु श्री राम के बीच के अटूट प्रेम के बावजूद भी अग्नि परीक्षा क्यों देनी पड़ी। इस बात को लेकर भी कई कथाएं सुनने में आती हैं। लेकिन हमने इस बात को गहराई से जानने के लिए हमने नई दिल्ली के जाने माने पंडित, एस्ट्रोलॉजी, कर्मकांड,पितृदोष और वास्तु विशेषज्ञ प्रशांत मिश्रा जी से बात की। उन्होंने हमें इस अग्नि परीक्षा की सिर्फ एक वजह बताई जानें क्या है वो वजह।
अग्नि परीक्षा को लेकर प्रचलित कथा
प्रजा का मान रखने के लिए ली थी अग्निपरीक्षा
पौराणिक कथाओं के अनुसार प्रभु श्री राम को मर्यादा पुरुषोत्तम के नाम से भी जाना जाता है और एक राजा की तरह श्री राम के लिए अपनी प्रजा के लिए समर्पण सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण था। ऐसे में जब लंबे समय तक रावण की कैद में रहने के बाद माता सीता, श्रीराम के साथ आयोध्या लौटीं तब उनकी पवित्रता को लेकर समाज के एक वर्ग में संदेह होने लगा। इस पर एक वृद्धा ने उन पर कटाक्ष करते हुए ये भी कहा कि ये भला कैसे मर्यादा पुरुषोत्तम हैं जो ऐसी माता सीता को अयोध्या वापस ले आये जो तक रावण के पास थीं और उनकी पवित्रता का कोई प्रमाण ही नहीं है। जब श्री राम को ये बात पता चली तो उन्होंने प्रजा के कल्याण के लिए माता सीता को अग्नि परीक्षा देकर अपनी पवित्रता को सिद्ध करने के लिए कहा। प्रभु श्री राम की बात सुनकर माता सीता अग्नि में समा गयीं।
इसे जरूर पढ़ें:इस श्राप की वजह से नहीं हो पाया था राधा-कृष्ण का विवाह
अग्नि परीक्षा की ये थी एक वजह
पंडित प्रशांत मिश्रा जी बताते हैं कि पद्म पुराण के अनुसार रामायण में एक नहीं बल्कि दो सीता थी, पहली असली और दूसरी माया की सीता। इसकी कथा के अनुसार एक बार लक्ष्मण जी जब कंदमूल फल लेने वन को गए हुए थे तब प्रभु श्री राम ने माता सीता से कहा कि "अब मैं नर लीला करूंगा और जब तक मैं राक्षसों का विनाश करूंगा तब तक आप अग्नि में निवास करें।" ऐसा कहकर श्री राम ने माता सीता को अग्नि देव को सौंप दिया। इसके बाद असली सीता जी की जगह माया की सीता प्रकट हुईं। इस तरह जब सीता जी का अपहरण हुआ तब वो माया की ही सीता थीं। जब युद्ध समाप्त हो गया और राक्षसों का विनाश हो गया तब भगवान् श्री राम ने माता सीता को अग्नि परीक्षा के लिए कहा और माया की सीता अग्नि कुंड में समा गईं। माया की सीता के अग्नि में समाते ही असली माता सीता अग्नि से बाहर आ गयीं और इस पूरी अग्नि परीक्षा का सिर्फ एक यही कारण था।
Recommended Video
माता सीता करती थीं अग्नि देव की पूजा
पद्म पुराण की कथाओं के अनुसार असली माता सीता को कोई अग्नि परीक्षा नहीं देनी पड़ी थी और ना ही उन्हें वनवास जाना पड़ा था। भगवान राम भी माता सीता के इन दोनों रुपों के बारे में जानते थे क्योंकि ये उन्हीं के द्वारा रचित थे। माता सीता अग्नि देव की पूजा करती थीं और त्रेतायुग में ये धारणा थी कि अगर कोई व्यक्ति सच्चा है तो उसे अग्नि कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकती है। इसी वजह से असली माता सीता अग्नि देव की शरण में सुरक्षित हो गई थीं और सीता अपहरण से लेकर अग्नि परीक्षा तक के समय में माया की सीता ही थीं। राम चरित मानस के अरण्य कांड में दोहा 23 और लंका कांड में दोहा 108 से 109 तक में इस प्रसंग का वर्णन है किया गया है।
इसे जरूर पढ़ें:Tuesday Special: घर में सुख समृद्धि लानी है तो मंगलवार के दिन हनुमान जी को जरूर अर्पित करें ये चीज़ें
अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो इसे शेयर जरूर करें व इसी तरह के अन्य लेख पढ़ने के लिए जुड़ी रहें आपकी अपनी वेबसाइट हरजिन्दगी के साथ।
Image Credit: pintrest