सभी जगह एवं धर्म में अलग अलग रीति रिवाज से शादी मनाई जाती है। सभी के रस्मो रिवाज अलग अलग होते हैं। जहां एक राज्य बदलता है वहीं शादी ब्याह के रस्मो रिवाज भी बदल जाते हैं। आज के इस लेख में आपको एक ऐसे रस्म के बारे में बताने वाले हैं, जिसमें दुल्हन के घुटनों को आग से दागा जाता है। यह खास रस्म बिहार के मिथिला क्षेत्र में मशहूर है। रस्मों-रिवाज और खानपान के अलावा मिथिला माता सीता के मायके और मधुबनी कला के लिए जाना जाता है। ऐसे में चलिए जानते हैं कि क्या है टेमी दागने की ये खास रस्म जिसमें दुल्हन के घुटनों को दागा जाता है।
क्या है टेमी दागने की रस्म
मिथिलांचल क्षेत्र में सावन के महीने में नवविहाहित दुल्हन और दुल्हे के द्वारा टेमी दागने की इस खास रस्म को मनाया जाता है। टेमी दागने की रस्म में दुल्हे का साथ होना बहुत जरूरी है। इस रस्म में महिलाएं इकट्ठा होकर हास-परिहास करती हैं और विवाह गीत एवं सोहर गीत गाती हैं। यह विशेष रस्म सावन के महीने में मधुश्रावणी का त्योहार के दौरान मनाया जाता है, जो कि नागपंचमी के दिन शुरू होकर अगले तेरह दिन तक चलता है। मधुश्रावणी के अंतिम दिन के पूजा में नव विवाहित दुल्हा-दुल्हन का होना बहुत जरूरी है। इस रस्म में मां गौरी और नाग देवता की विधिवत पूजा के बाद दूल्हा दुल्हन की आंखों को हाथों से बंद करता है और दुल्हन के घुटनों पर छेद किया हुआ आम का पत्ता रखा जाता है।
फिर महिलाएं दुल्हन के घुटनों को रूई जलाकर दागती हैं। दागने के तुरंत बाद दागे हुए जगह पर महिलाएं चावल आटे का घोल लगाती हैं। बता दें कि टेमी दागने की इस रस्म के दौरान दुल्हन को अपने जुबान से उफ्फ करने की इजाजत नहीं होती है, यानी जलने के बाद दुल्हन आवाज नहीं निकाल सकती ।
इस रस्म के पीछे की वजह क्या है
मिथला वासियों का मानना है कि इस रस्म के माध्यम से दुल्हन की सहनशीलता कितनी है, इसे भांपा जाता है। इस रस्म को लेकर यह भी मान्यता है कि टेमी दागने के बाद घुटने में जितना ज्यादा फोड़ा या जलने का निशान होगा उसका पति उससे उतना अधिक प्यार करेगा।
ससुराल से आती है ये चीजें
बता दें कि यह रस्म दुल्हन के मायके में होती है, इसलिए वधु के ससुराल से खाने पीने की चीजें और सोलह श्रृंगार और कपड़े गहने आते हैं। जिसे पहनकर दुल्हन टेमी दागने की रस्म को पूरा करती है और शाम में पूजा के बाद व्रत खोलती है।
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