
ऐसा कहा जाता है कि जीवनसाथी पहले से ही तय हो चुका होता है और विवाह उन्हें जोड़ने की भूमिका मात्र निभाता है। हमारा देश हमेशा से ही अपनी संस्कृति और परंपराओं के लिए लोकप्रिय रहा है और विवाह भारतीयों के सबसे बड़े समारोहों में से एक है। पति और पत्नी के बीच का एक ऐसा बंधन जो मानवीय रिश्तों में सबसे पवित्र होता है। शादी एक बहुत शुभ अवसर माना जाता है और अत्यंत उत्साह के साथ किया जाता है। यह दो परिवारों के बीच का मिलन माना जाता है जो पारंपरिक मानसिकता से बना होता है। ऐसे ही मिथिला में शादी की अपनी परंपराएं और रीति-रिवाज हैं जो हजारों सालों से चले आ रहे हैं। मिथिला क्षेत्र में कई समुदाय हैं और सभी की अपनी शादी की रस्में हैं, लेकिन मैथिली शादी कुछ ऐसी है जो अपनी विशेषता और विशिष्टता के कारण सभी के बीच लोकप्रिय मानी जाती है। जहां कोई भी अन्य शादी एक या दो दिनों तक चलती है वहीं मैथिली शादी पूरे चार दिनों तक चलती है। यही नहीं इसमें सिंदूर की भी अलग रस्म होती है। आइए जानें मैथिली शादी की कुछ ऐसी ही रस्मों के बारे में इसे अन्य शादियों से अलग बनाती हैं।
मैथिली शादी 'पहले दिन विवाह और दूसरे दिन विदाई' वाला समारोह नहीं होता है। यह चार दिनों का समारोह होता है। ऐसे में दूल्हे को चार दिनों तक दुल्हन के घर रहना पड़ता है, कई रस्में पूरी करनी होती हैं और फिर वह दुल्हन को विदा करके साथ ले जाता है। कई बार परंपरागत रूप से, दुल्हन चतुर्थी के बाद भी अपने ससुराल नहीं जाती और कुछ दिनों बाद गौने की रस्म होती है जिसमें दुल्हन को मायके से विदा करके ससुराल भेजा जाता है। हालांकि यह केवल द्विरंगमन विदाई में होता है जो लड़के-लड़कियों की कम उम्र के कारण विवाह के किसी विषम वर्ष जैसे पहला, तीसरा, पांचवां या सातवां में होता है। आजकल द्विरंगमन चतुर्थी के तुरंत बाद आमतौर पर 15 दिनों के भीतर किया जाता है, क्योंकि 15 दिनों के भीतर किसी विशेष मुहूर्त की तलाश करने की आवश्यकता नहीं होती है और किसी भी दिन दुल्हन को विदा किया जा सकता है।
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मैथिली विवाह की सबसे अनोखी और भावनात्मक रस्मों में से एक है भखरा सिंदूर की परंपरा है। इस रस्म में दुल्हन की मांग में साधारण सिंदूर नहीं, बल्कि विशेष रूप से तैयार किया गया गाढ़ा लाल रंग का सिंदूर भरा जाता है, जिसे भखरा सिंदूर कहा जाता है। यह सिंदूर न केवल वैवाहिक बंधन का प्रतीक होता है, बल्कि पति-पत्नी के बीच निष्ठा, समर्पण और अखंडता का भी प्रतीक माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि भखरा सिंदूर का गहरा लाल रंग अमर प्रेम और अटूट संबंध का संकेत देता है।
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शादी में सिंदूरदान की रस्म करने से पहले दुल्हन के बालों को दो भागों में बांटकर बीच की मांग निकाली जाती है और इसके बाद महिलाएं दुल्हन की पूरी मांग पर घी का लेप लगा देती हैं। आमतौर पर ये रस्म घर की कोई बुजुर्ग महिला करती है। इस रस्म की मान्यता है कि घी का लेप करने से दुल्हन को किसी भी तरह की बुरी नजर नहीं लगती है और सेहत भी अच्छी बनी रहती है।

मैथिली शादी में दुल्हन की मांग में दूल्हा 5 बार सिंदूर भरता है और यह रस्म सिक्के या अंगूठी से निभाई जाती है। दूल्हा दुल्हन की मांग में भखरा सिंदूर से मांग भरता है। इस दौरान घर की बड़ी महिलाएं दुल्हन का चेहरा कपड़े से ढकती हैं जिससे कोई उसे देख न पाए। मुख्य रूप से सिंदूर की रस्म दुल्हन की मां नहीं देखती है।
मैथिली शादी की कुछ रस्में ऐसी होती हैं जो दूसरी शादियों से अलग होती हैं और ये शादी को कुछ अलग बनाती हैं।
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