भारत में अलग-अलग जाति धर्म के लोग रहते हैं। इन लोगों की न सिर्फ बोली-भाषा अलग बल्कि रहन-सहन खान-पान सब अलग है। यही कारण है कि हर संस्कृति में आपको भिन्नता देखने को मिलती है। ये झलक न सिर्फ भौगोलिक स्तर पर है बल्कि सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी अलग है। इसका जीता-जागता उदाहरण लोकगीत, नाटक, नृत्य इत्यादि है। बता दें कि पुराने लोकगीत की मधुर ध्वनि में हर राज्य का कल्चर दिखाई देता है। जहां एक तरफ टेक्नोलॉजी और गीतों में बदलाव हुए वहां ये लोकगीत धीरे-धीरे गायब होते नजर आ रहे हैं। इस आर्टिकल में आज हम अलग-अलग राज्यों को हिसाब गीतों के बारे में बताने जा रहे हैं।
हर क्षेत्र का अपना एक गीत हुआ करता था। जब किसी क्षेत्र का कोई गायक दूसरे शहर जाकर गीत गाता था तो वह उसके राज्य की पहचान को दर्शाता करता था। अलग-अलग राज्यों के हिसाब से लोगों के लोकगीत भी भिन्न और कई प्रकार के हैं, जो अपने भीतर भारत की सांस्कृतिक विरासत को संजोकर रखे हुए हैं। उत्तर प्रदेश के मशहूर लोकगीतों सोहर, चनैनी, नौका झक्कड़, कजरी, सावन आदि है। इन गीतों को अक्सर महिलाएं व पुरुष खुशी के खास मौके जैसे शादी-विवाह,मुंडन, त्योहार आदि में गाया करती थी।
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बिहू गीत लोक संगीत असम में प्रसिद्ध बिहू त्योहार के दौरान गाया बजाया जाता है। इस संगीत के साथ आमतौर पर नृत्य प्रदर्शन होता है; इसे साल में तीन बार बजाया जाता है। बिहू गीत असम के सबसे प्रसिद्ध लोकगीतों में से एक है और यह उत्तर-पूर्वी भारत के कुछ हिस्सों में भी लोकप्रिय है।
इस संगीत को खासतौर से उत्तराखंड राज्य में त्योहारों और धार्मिक कार्यक्रमों के दौरान बजाया जाता है। यह गीत आमतौर पर प्रकृति के महत्व, ऐतिहासिक लोगों की बहादुरी,कहानियों और राज्य की महत्वपूर्ण सांस्कृतिक प्रथाओं को व्यक्त करते हैं।
लावणी महाराष्ट्र का एक लोकप्रिय लोक संगीत है और मूल रूप से सैनिकों के मनोरंजन के लिए गाया जाता था। यह गीत आमतौर पर महिलाओं द्वारा गाया जाता है और यह समाज और राजनीति से संबंधित जानकारी देता है।
पंडवानी लोकगीत में महाभारत के पात्रों की वीरता का वर्णन करता है। यह लोकसंगीत छत्तीसगढ़, उड़ीसा, मध्य प्रदेश और आंध्र प्रदेश में लोकप्रिय है।
उत्तर प्रदेश में हर एक गीत का अपना एक अलग अर्थ है। यहां पर रसिया, बिरहा, कजरी,सोहर , कव्वाली, कहारवा, चानाय्नी, जैसे लोकगीत शामिल है। इसके अलावा सभी राज्यों के अपना-अपना लोकगीत है।
यह लोकगीत नाई समुदाय में बहुत लोकप्रिय है। इस गीत को नाई लोकगीत के नाम से भी जाना जाता है।
बनजारा गीत को शादी-विवाह वाले घर में संगीत वाले दिन गाया जाता है। अगर बात इस खास समुदाय की करें तो यह तेली समुदाय द्वारा गाया जाता है।
इस गीत को महिलाएं ज्यादातर सावन के महीने में झूला झूलते वक्त गाती हैं। यह अर्द्ध शास्त्रीय गायन के रूप में भी विकसित हुआ है और इसकी गायन शैली बनारस घराने से मिलती है।
इस तरह के लोक संगीत लोक उद्देश्य स्थापना (Folk Stones) के लिए गाये जाते हैं।
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