
साल 2025 में 7 नवंबर यानी आज राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम की रचना के 150 साल पूरे हो गए हैं। यह मात्र एक गीत नहीं है बल्कि हमारे सामने स्वतंत्रता संग्राम की गाथा भी गाता है। इस गीत ने न केवल आजादी की लड़ाई में नई जान फूंकी बल्कि हम सबके दिलों में देशभक्त के बलिदानों को आज तक ताजा भी रखा है। 7 नवंबर 1874 को बंकिम चंद्र चटर्जी ने इसकी रचना की थी। उस दिन अक्षय नवमी का पावन पर्व भी था। तभी से यह अमर गीत बन गया और इसे आज देश के राष्ट्रगीत के नाम से जाना जाता है।
देश के प्रधानमंत्री मोदी ने इस खास दिन पर इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम में साल भर चलने वाले समारोह की शुरुआत की है और स्मृति डाक टिकट और सिक्का भी जारी किया है। वंदे मातरम अमर गीत को हमें देकर रचनाकार और स्वतंत्रता सेनानी बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय उर्फ बंकिम चंद्र चटर्जी अमर हो गए। आज लोग वंदे मातरम को न केवल एक गीत के रूप में जानते हैं बल्कि इसका नारा भी हमारे रग-रग में जोश पैदा कर देता है। ऐसे में इसके पीछे की कहानी और बंकिम चंद्र के जीवन के संघर्ष के बारे में पता होना जरूरी है। आज का हमारा लेख इसी विषय पर है। आज हम आपको अपने इस लेख के माध्यम से बताएंगे कि कौन थे बंकिम चंद्र चटर्जी और कैसे मिला हमें यह गीत। जानते हैं, इस लेख के माध्यम से...
पश्चिम बंगाल के 24 परगना जिले के कांठालपाड़ा गांव में बंकिम चंद्र का जन्म 26 जून 1838 को हुआ था। इन्हें बंगला भाषा के शीर्षस्थ व ऐतिहासिक उपन्यासकार के रूप में भी जाना जाता था।

इन्होंने अपना पहला बांग्ला उपन्यास सन 1865 में लिखा, जिसका नाम था दुर्गेश नंदिनी। उस वक्त इनकी आयु मात्र 27 वर्ष थी। सन 1857 में बंकिम चंद्र ने बीए पास कर ली थी। उसी के साथ यह पहले भारतीय बने, जिनके पास प्रेसीडेंसी कॉलेज की बीए की डिग्री थी। इसके बाद इन्होंने कानून की डिग्री को अपना बनाया फिर डिप्टी मजिस्ट्रेट के पद में नियुक्त हुए। सन 1874 में इन्होंने वंदे मातरम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान गीत वंदे मातरम लिखा।
कहते हैं कि जिस वक्त अंग्रेजों का हुक्म चलता था, उस वक्त उन्होंने इंग्लैंड की महारानी के सम्मान वाले गीत गॉड सेव द क्वीन को हर कार्यक्रम में गाना जरूरी कर दिया था।
-1762495352315.jpg)
इससे बंकिम चंद्र चटर्जी के साथ-साथ भारतवासी भी बेहद आहत हुए। ऐसे में उन्होंने साल 1874 में वंदे मातरम शीर्षक से एक गीत बनाया और उसमें लिरिक्स के रूप में भारत भूमि को माता कहकर संबोधित किया। वहीं इस गीत को सन 1882 में उपन्यास आनंद मठ में शामिल किया।
बता दें कि कोलकाता में साल 1896 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का एक अधिवेशन हुआ था, जहां वंदे मातरम गीत पहली बार गाया गया।
इसे भी पढ़ें - कौन हैं मशहूर लावणी डांसर विठाबाई नारायणगांवकर, जिनकी बायोपिक कर रही हैं श्रद्धा कपूर
आपको यह स्टोरी अच्छी लगी हो तो इसे फेसबुक पर शेयर और लाइक जरूर करें। इसी तरह के अन्य आर्टिकल पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी से।
Images: Freepik/pinterest/shutterstock
हमारा उद्देश्य अपने आर्टिकल्स और सोशल मीडिया हैंडल्स के माध्यम से सही, सुरक्षित और विशेषज्ञ द्वारा वेरिफाइड जानकारी प्रदान करना है। यहां बताए गए उपाय, सलाह और बातें केवल सामान्य जानकारी के लिए हैं। किसी भी तरह के हेल्थ, ब्यूटी, लाइफ हैक्स या ज्योतिष से जुड़े सुझावों को आजमाने से पहले कृपया अपने विशेषज्ञ से परामर्श लें। किसी प्रतिक्रिया या शिकायत के लिए, compliant_gro@jagrannewmedia.com पर हमसे संपर्क करें।