हर साल मार्गशीर्ष मास के अष्टमी तिथि को काल भैरव जयंती मनाई जाती है। इस दिन दुनियाभर में तंत्र मंत्र के देवता काल भैरव भगवान की पूजा की जाती है। मान्यता है कि जो कोई भी काल भैरव भगवान को पूजते हैं उनकी कभी अकाल मृत्यु नहीं होती साथ ही, रोग, दोष और भय से परेशान नहीं रहते। शास्त्रों की मानें तो काल भैरव को रूद्र अवतार माना गया है, ये भगवान शिव के ही स्वरूप हैं। काल भैरव को भगवान शिव का सबसे उग्र रूप कहा गया है, लेकिन ये अपने भक्तों की सदैव रक्षा करते हैं और बुरे कर्म करने वालों को दंड भी देते हैं। यदि काल भैरव भगवान शिव के स्वरूप हैं, तो चलिए जानते हैं की उनकी उत्पत्ति कैसे हुई है।
कौन हैं इस संसार के अविनाशी
भगवान शिव का काल भैरव के रूप में प्रकट होने की बहुत ही अद्भुत घटना है। एक समय सुमेरु पर्वत पर सभी देवता ब्रह्मा देव से पूछते हैं कि इस संसार में अविनाशी तत्व कौन है, जिनका आदि और अंत किसी को पता न हो, इसके बारे में हमें बताएं। इस प्रश्न का उत्तर देते हुए ब्रह्मा जी कहते हैं कि इस संसार का अविनाशी तत्व मैं ही हूं क्योंकि यह सृष्टि मेरे द्वारा ही सृजित हुई है। मेरे बिना इस सृष्टि की कल्पना नहीं किया जा सकता है।
इसके बाद सभी देवता विष्णु भगवान (विष्णु भगवान पूजा विधि) के पास जाते हैं और उनसे भी वही प्रश्न करते हैं, तो भगवान विष्णु कहते हैं इस संसार का भरण पोषण में करता हूं, तो अविनाशी तो मैं ही हूं। ब्रम्ह देव और विष्णु भगवान की बात सुनने के बाद इस तथ्य को परखने के लिए चारों वेदों को बुलाया गया। चारों वेदों ने इसका जवाब देते हुए कहा कि जिनके भीतर चराचर जगत यानी भूत, भविष्य और वर्तमान ये तीनों काल समाया हुआ है और जिसका न कोई आदि है और न अंत, जो अजन्मा है, जो इस संसार में जीवन-मरण, सुख-दुख से परे हैं, देव और दानव को समान रूप से पूजते हैं, वही अविनाशी भगवान रूद्र हैं।
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भगवान शिव से ही उत्पन्न हुए काल भैरव जी
चारों वेदों की बाते सुन ब्रह्म देव के पांचवे मुख से शिव जी के लिए अपमानजनक शब्द निकलते हैं, जिसे सुनकर चारो वेद दुखी हो जाते हैं। इस बीच एक दिव्य ज्योति के रूप में देव आदि देव महादेव यानी रुद्र देव प्रकट होते हैं। जिसके बाद ब्रम्ह देव रुद्र से कहते हैं, कि तुम मेरे शरीर से पैदा हुए हो अधिक रुदन के कारण ही मैंने तुम्हारा नाम रूद्र रखा है, अतः आप मेरी सेवा में लग जाओ, ब्रह्मा जी के ऐसी बातों को सुन शिव जी क्रोधित हो जाते हैं और ब्रह्मा जी के अहंकार को खत्म करने के लिए उन्होंने अपने शरीर से भैरव नामक पुरुष को उत्पन्न किया और कहा कि तुम ब्रह्मा पर शासन करो।
भगवान भैरव को क्यों लगा ब्रह्महत्या का पाप?
दिव्य शक्ति से संपन्न भगवान भैरव अपने बाएं हाथ की सबसे छोटी उंगली के नाखून से शिव जी के प्रति अपमानजनक शब्द निकालने वाले ब्रम्ह देव के पांचवे मुख को काट दिया, ब्रह्म देव के पांचवे मुख को काटने के बाद भैरव जी को ब्रह्महत्या का पाप लगा। जिसके बाद शिव जी भैरव देव को काशी जाने के लिए कहा, जहां उन्हें ब्रह्महत्या से मुक्ति मिलेगी। रूद्र ने भैरव देव को काशी का कोतवाल बनाया गया, जो आज भी काशी के कोतवाल के रूप में पूजे जाते हैं। काशी जाने पर यदि कोई उनके दर्शन नहीं करता है तो उन्हें भगवान विश्वनाथके दर्शन को अधूरा माना गया है।
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