'मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर करना...' ये लाइन बहुत फेमस है और धर्म का सार बताती है। पर धर्म है क्या? फिल्म 'OMG (ओह माय गॉड)' में परेश रावल ने एक बात कही थी, 'मजहब इंसानों के लिए बनता है, इंसान मजहब के लिए नहीं बनते...', मेरी मानें तो धर्म इंसान को सही दिशा दिखाने के लिए होता है ना कि उसपर किसी तरह की बंदिश लगाने के लिए। धर्म के नाम पर कमजोरों के साथ अत्याचार करना और अपनी रूढ़िवादी मानसिकता को थोपना सही नहीं है। हाल ही में मैंने एक खबर पढ़ी जिसने न सिर्फ मुझे चौंका दिया बल्कि धर्म को लेकर सोचने पर मजबूर भी कर दिया।
इससे पहले कि आप अपनी राय दें और ये सोचें कि मैं किसी एक धर्म को लेकर टिप्पणी कर रही हूं पहले मैं उस खबर के बारे में आपको बता देती हूं। ईरान के डिप्टी मिनिस्टर ने हाल ही में एक खुलासा किया है जिसमें उन्होंने बताया कि ईरान के कुओम (Qom) शहर में स्कूल जाने वाली लड़कियों को जहर दिया जा रहा है। ये सिर्फ इसलिए है ताकि लड़कियों का स्कूल जाना बंद हो सके।
क्या है पूरा मामला?
ईरान के स्थानीय मीडिया की रिपोर्ट के मुताबिक कुओम के पवित्र शहर में नवंबर से ही स्कूल गर्ल्स के बीच रेस्पायरेटरी पॉइजनिंग के मामले काफी बढ़ गए थे। ये शहर ईरान की राजधानी तेहरान से दक्षिण की ओर है और इसे इबादत का शहर माना जाता है। शहर के हॉस्पिटल्स पॉइजनिंग के मामलों से भरे हुए हैं। हेल्थ मिनिस्टर यूनेस पनाही ने भी इस बात की पुष्टि कर दी है। स्टेट न्यूज एजेंसी IRNA की रिपोर्ट के मुताबिक शहर के कई ऐसे लोग हैं जो लड़कियों का स्कूल जाना बंद करवाना चाहते हैं।
इसे जरूर पढ़ें- दिल्ली के ये गर्ल्स स्कूल आपकी बेटी के भविष्य के लिए हो सकते हैं बेहतर
इस मामले को लेकर 14 फरवरी को बीमार पड़ी लड़कियों के माता-पिता ने इसे लेकर एक प्रोटेस्ट भी किया था। सरकारी प्रवक्ता अली बाहादोरी जेहरोमी ने भी इस बात की पुष्टि कर दी है और बात की तह तक जाने का आश्वासन दिया है।
कैसा है ईरान में स्कूल गर्ल्स का हाल?
कुओम में एक के बाद एक स्कूल गर्ल्स अस्पताल में एडमिट हो रही हैं। उन्हें सांस के जरिए जहर दिया जा रहा है और इससे जी मिचलाना, उल्टी, सिरदर्द, सांस लेने में तकलीफ आदि बहुत कुछ हो रहा है। इसका कारण सिर्फ ये है कि वहां धर्म के सिपाही ये मानते हैं कि लड़कियों का पढ़ना सही नहीं है।
हिजाब बैन के बीच स्कूल गर्ल्स को जहर देना क्या आम बात है?
ईरान में पिछले साल से ही प्रोटेस्ट चल रहा है। प्रोटेस्ट के दौरान स्टूडेंट माहसा अमीनी की पुलिस कस्टडी में मौत हो गई थी और उसके बाद से इस मामले ने तूल पकड़ लिया। ईरान में 1970 से ही महिलाओं के लिए हिजाब पहनना जरूरी माना जाता है। अमीनी को वहां की मोरैलिटी पुलिस ने गिरफ्तार किया था क्योंकि उन्होंने हिजाब ठीक से नहीं पहना था।
एक तरफ महिलाओं को हिजाब पहनने को मजबूर किया जा रहा है और दूसरी तरफ स्कूल गर्ल्स को जहर दिया जा रहा है। इतना बड़ा मामला होने के बाद भी वहां की सरकार सिर्फ यही कह रही है कि इस मामले की सही से जांच होगी।
इसे जरूर पढ़ें- जानें भारत के बेस्ट सरकारी बोर्डिंग स्कूलों के बारे में
क्या ये इतनी आम बात है कि 200 से ज्यादा लड़कियों को जहर दिया गया है और फिर भी सिर्फ जांच ही हो रही है कोई गिरफ्तारी नहीं? आपको मलाला यूसुफजई की कहानी तो पता ही होगी। नोबेल प्राइज विजेता मलाला को गोलियां मारी गई थीं क्योंकि वो लड़की होने के बाद भी पढ़ना चाहती थीं। मलाला ने धर्म ने नाम पर दिए गए फतवे को नहीं माना था और अपने पिता के साथ लड़कियों की पढ़ाई को लेकर आंदोलन भी छेड़ा था। मलाला स्कूल जा रही थीं तभी उन पर हमला हुआ था और उन्हें खत्म करने की कोशिश की गई थी।
मैं ये नहीं समझती कि दुनिया का कोई भी धर्म लड़कियों का पढ़ना गलत मानता होगा। कुंठित सोच को किसी धर्म के नाम पर लड़कियों पर थोपना जन्नत का रास्ता तो नहीं माना जा सकता। पढ़ लिखकर एक बेहतर समाज की कल्पना करने वाली लड़कियों को जहर देना और स्कूल जाने से रोकना धर्म नहीं पाप ही है और सिर्फ इस तथ्य की निंदा करना ही काफी नहीं है। किसी मासूम को धर्म के नाम पर बलि चढ़ाना सिर्फ पाप ही हो सकता है और इसके लिए कड़ी से कड़ी सजा होनी चाहिए।
इस मामले में आपकी क्या राय है ये हमें आर्टिकल के नीचे दिए कमेंट बॉक्स में बताएं। अगर आपको ये स्टोरी अच्छी लगी है तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से।