अगर आपसे कोई पूछे कि भारत का सबसे पुराना साबुन कौन-सा है, तो यकिनन आप लक्स या ब्रिज बताएंगे, लेकिन आपको बता कि देश का सबसे पुराना साबुन किसी विदेशी कंपनी ने नहीं बल्कि भारत के एक राजा की मदद से बनना शुरू हुआ था और इसका नाम मैसूर सैंडल साबुन है। यह साबुन इतना मशहूर हुआ कि सिर्फ देसी लोग ही नहीं, विदेशों के कई रॉयल फैमली में भी इसका इस्तेमाल किया जाने लगा।
आज भले ही लोगों के बाथरूम में कई फ्रग्नेंस के साबुन महकते हों, लेकिन एक वक्त ऐसा था जब लोगों की पहली पसंद मैसूर सैंडल साबुन हुआ करती थी, तो आइए जानते हैं भारत का इतिहास रचने वाले इस साबुन की दिलचस्प कहानी-
आपको बता दें कि मैसूर सैंडल साबुन का इतिहास मैसूर के एक शाही परिवार से जुड़ा हुआ है। राजशाही परिवार की वजह से ही यह साबुन लोगों तक पहुंच पाया। इसे शुद्ध चंदन की लकड़ियों से बने तेल से तैयार किया जाता है। मैसूर सैंडल साबुन शाही लोगों की पसंद होने की वजह से आज भी लोगों की पहली पसंद बना हुआ है। इसका इतिहास लगभग 106 साल पुराना है।
इतिहास-
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान चंदन की लकड़ियों का व्यापार थम सा गया था और इस वजह से इन लकड़ियों का ढेर लगने लगा था। तब 1916 में मैसूर के राजा कृष्णा राजा वाडियार- 4 और उनके दीवान मोशगुंडम विश्वेश्वरैया के दिमाग में इससे साबुन बनाने का आइडिया आया। फिर राजा ने ये काम पूरी तरह से विश्वेश्वरैया को सौंपा और उन्होंने एक ऐसे साबुन बनाने की ठानी, जिसमें मिलावट ना हो और सस्ता भी रहे। इन्होंने फिर मैसूर में चंदन की लकड़ी से तेल (चंदन तेल) निकालने की एक फैक्ट्री की शुरुआत की। इनके फैसले ने भारत को एक नया आयाम दिया और इस तरह से देश के पहले साबुन मैसूर सैंडल साबुन का सफर शुरू हुआ था। तब से लेकर आज भी यह साबुन लग्जरी ब्यूटी सेगमेंट में आता है और लोगों की पसंद में शामिल है।
साबुन को बनाने के लिए इंडस्ट्रियल डेवलेपमेंट जरूरी था इसलिए आईआईएससी के एक युवा केमिस्ट स्टूडेंट गरलपुरी शास्त्री जी को साबुन बनाने की प्रक्रिया जानने के लिए इंग्लैंड भेजा गया। फिर साबुन बनाने की तकनीक को जानकर शास्त्री जी भारत लौटे और 10 मई 1916 से साबुन बनने की शुरुआत हुई।
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मार्केटिंग-
पूरे भारत में इसकी लोकप्रियता बढ़े, इसके लिए उस समय भी काफी जबरदस्त मार्केटिंग की गई थी। ट्राम टिकट से लेकर माचिस की डिब्बियों पर भी इस साबुन का प्रचार किया गया था। इतना ही नहीं आजादी से पहले अभी पाकिस्तान के कराची में इस साबुन के प्रचार के लिए ऊंटों का जुलूस भी निकाला गया था।
1990 में मल्टी नेशनल कंपनियों की वजह से इस साबुन की ब्रिकी पर असर हुआ था, लेकिन फिर मार्केट में काफी मुनाफा भी कमाया। आज भी ज्यादातर साउथ इंडिया में और विदेशों के कई हिस्सो में इस साबुन की खुशबू बरकरार है।
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मैसूर सैंडल साबुन ने 2003 से 2006 के बीच खूब कमाई की। 2006 में भारत के पूर्व क्रिकेट कप्तान महेंद्र सिंह धोनी को इस ब्रांड का एंबेसडर बनाया गया था। इस साबुन की गुणवत्ता ही इसकी पहचान है। इसलिए इतने वर्षों के बाद भी यह अपनी खुशबू देश ही दुनिया में बिखेर रहा है।
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