होली के सात दिन बाद शीतला सप्तमी और शीतला अष्टमी का पर्व मनाया जाता है। इसे बसौड़ा या बसोड़ा भी कहा जाता है। इस दिन विशेष रूप से मां दुर्गा के एक अन्य रूप, माता शीतला की पूजा-अर्चना की जाती है। शीतला सप्तमी और अष्टमी हर साल चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी और अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन शीतला माता को बासी खाने का भोग अर्पित किया जाता है।
शीतला माता सभी रोग और कष्ट रूपी असुरों का नाश करती हैं। शीतला सप्तमी और अष्टमी तिथियां देश के विभिन्न हिस्सों में शुक्ल और कृष्ण पक्ष के अनुसार अलग-अलग तिथियों को मनाई जाती हैं, लेकिन इन दोनों का मूल उद्देश्य और महत्व एक ही होता है। इस अवसर पर ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से जानें कि इस साल शीतला अष्टमी या बासोड़ा कब है, इस दिन पूजा का शुभ मुहूर्त क्या होगा और इस पर्व का विशेष महत्व क्या है।
बसोड़ा या शीतला सप्तमी 2025 कब है? (Basoda Kab Hai 2025)
हिंदू पंचांग के अनुसार, सप्तमी तिथि का प्रारंभ 21 मार्च, शुक्रवार के दिन सुबह 2 बजकर 45 मिनट पर होगा और इसका समापन 22 मार्च शनिवार को सुबह 4 बजकर 23 मिनट पर होगा। उदया तिथि को ध्यान में रखते हुए, जो लोग शीतला सप्तमी या बसौड़ा का पर्व मनाते हैं, उन्हें 21 मार्च शुक्रवार को शीतला माता की पूजा करनी चाहिए।
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शीतला अष्टमी 2025 कब है? (Sheetala Ashtami Kab Hai 2025)
हिंदू पंचांग के अनुसार, अष्टमी तिथि का प्रारंभ 22 मार्च, शनिवार के दिन सुबह 4 बजकर 23 मिनट पर होगा और इसका समापन 23 मार्च रविवार को सुबह 5 बजकर 23 मिनट पर होगा। उदया तिथि को ध्यान में रखते हुए, जो लोग अष्टमी तिथि को शीतला माता की पूजा करते हैं, उन्हें 22 मार्च शनिवार को पूजा-अर्चना करनी चाहिए।
बसोड़ा या शीतला अष्टमी 2025 शुभ मुहूर्त (Basoda Puja Muhurat 2025)
सप्तमी के दिन माता शीतला की पूजा एवं बसोड़े का व्रत रखने वाली महिलाओं के लिए पूजा का शुभ मुहूर्त 21 मार्च को सुबह 5 बजकर 37 मिनट शुरू होगा और इस मुहूर्त का समापन सुबह 6 बजकर 40 मिनट पर होगा, वहीं, अष्टमी के दिन पूजा का शुभ मुहूर्त 22 मार्च को सुबह 5 बजकर 20 मिनट से सुबह 6 बजकर 33 मिनट तक है।
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बसोड़ा या शीतला अष्टमी 2025 महत्व
शीतला सप्तमी और अष्टमी तिथि को शीतला माता को बासी खाने का भोग अर्पित किया जाता है और घर के सभी सदस्य पूरे दिन बासी खाना खाते हैं, इसलिए इसे बसौड़ा या बसोड़ा कहा जाता है। यह पर्व शीत ऋतु के अंत और ग्रीष्मकाल की शुरुआत का प्रतीक है। मान्यता है कि जो भक्त सच्चे मन से शीतला माता की पूजा करता है, उसके सभी रोग और कष्ट दूर हो जाते हैं, और उसे सुख, शांति, समृद्धि और आरोग्य मिलता है। शीतला माता की पूजा से चिकन पॉक्स, खसरा, चेचक, और अन्य रोग खत्म होते हैं और शरीर को शीतलता मिलती है।
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