बॉडी शेमिंग की वजह से दी बैंक की कर्मचारी ने जान, आखिर इतना आसान क्यों है ऑफिस में लोगों का मजाक उड़ाना

प्राइवेट बैंक की एक कर्मचारी ने हाल ही में अपनी जान दे दी, वो लगातार हो रहे हैरेसमेंट से परेशान थी। आखिर ऑफिस में बॉडी शेमिंग को इतनी आसानी से क्यों रोका नहीं जाता?

How to deal with office body shaming

हम जागते हुए अपना सबसे ज्यादा समय ऑफिस में बिता देते हैं। ऑफिस तक पहुंचने, काम करने, बाहर जाने की परेशानी में हम यही भूल जाते हैं कि आखिर जीना कैसे है। जरा सोच कर देखिए, जहां आप अपने दिन का सबसे ज्यादा समय बिता रहे हैं, अगर वहीं आपको दिन भर ताने मिलें, आपके शरीर को लेकर ताने दिए जाएं, आपको कम अक्ल कहा जाए, बात-बात पर आपकी बेइज्जती की जाए, तो क्या होगा? रोज-रोज होते इस हैरेसमेंट को आप कितना झेल सकते हैं? शायद कुछ हफ्ते, शायद कुछ महीने या फिर एक-दो साल, लेकिन जब सब्र का बांध टूट जाए तब जिंदगी भी बेजार लगने लगती है।

कुछ ऐसा ही हुआ एक प्राइवेट बैंक की रिलेशनशिप मैनेजर शिवांगी त्यागी के साथ। शिवांगी नोएडा सेक्टर 128 प्राइवेट बैंक ब्रांच में काम करती थीं। शिवांगी ने ऑफिस में हो रहे हैरेसमेंट से तंग आकर अपनी जान दे दी। उन्होंने मरने से पहले एक सुसाइड नोट भी लिखा और बैंक के उन कर्मचारियों का नाम भी दिया जिन्होंने शिवांगी को हैरेस किया था। इतना ही नहीं, शिवांगी ने अपने साथ हुई सभी घटनाओं का जिक्र 5 पन्नों के उस सुसाइड नोट में किया और अपने भाई गौरव त्यागी को लीगल एक्शन लेने के लिए कहा।

शिवांगी की आत्महत्या के बाद पुलिस ने बाकायदा इसे लेकर स्टेटमेंट दिया है।

6 महीने से शिवांगी थी इस हैरेसमेंट से परेशान

शिवांगी की यह हालत 6 महीने से हो रही थी। शिवांगी को 'बंदरिया' बुलाया जाता था, उन्हें कम अक्ल कहा जाता था। यही नहीं, शिवांगी ने अपने सुसाइड नोट में एक महिला सीनियर का नाम भी लिखा है जो उन्हें फिजिकली एब्यूज भी कर चुकी है।

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पुलिस के स्टेटमेंट के मुताबिक, शिवांगी के भाई गौरव त्यागी ने पुलिस को बताया कि शिवांगी के ड्रेसिंग सेंस, खाने-पीने की आदतों और बोलने के अंदाज पर भी कमेंट किया जाता था।

शुरुआत में शिवांगी ने अपने साथ हो रही घटनाओं के बारे में किसी को नहीं बताया, लेकिन बाद में उसने घर पर सारी बातें बता दीं। एक बार इस महिला ने शिवांगी पर हाथ उठाने की कोशिश भी की जिसके बाद शिवांगी ने पलटवार किया।

toxic and office work culture

बैंक की तरफ से आए स्टेटमेंट में कहा गया है कि शिवांगी उनकी नहीं किसी थर्ड पार्टी फर्म की कर्मचारी थी जो अपनी सर्विसेज बैंक को दे रही थी।

मामला चाहे जो भी हो, अब शिवांगी इस दुनिया में नहीं हैं। एक हंसती-खेलती जिंदगी इस दुनिया को अलविदा कह गई है।

आखिर क्यों वर्क प्लेस हैरेसमेंट है इतना आसान?

यह पहला मामला नहीं है जब काम की जगह पर हैरेसमेंट के कारण किसी व्यक्ति ने अपनी जान दी हो। ऑफिस का कल्चर अगर टॉक्सिक हो जाए, तो जीना मुश्किल हो जाता है। हममें से कई लोग ऐसी जिंदगी जी रहे हैं जिसमें अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए कमाना जरूरी है। ऐसे में कई बार अपनी सेल्फ रिस्पेक्ट को दांव पर भी लगाना पड़ता है।

ऑफिस का टॉक्सिक वर्क कल्चर किस तरह से किसी इंसान पर असर कर सकता है यह जानने के लिए हमने फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हार्ट इंस्टीट्यूट की सीनियर चाइल्ड और क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट और हैप्पीनेस स्टूडियो की फाउंडर डॉक्टर भावना बर्मी से बात की। डॉक्टर भावना के मुताबिक, इसे कहीं ना कहीं मनोविज्ञान से जोड़कर देखा जा सकता है।

corporate toxic culture that needs to get handled quickly

डॉक्टर भावना का कहना है, "टॉक्सिक ऑफिस कल्चर के कारण इंसान की शारीरिक और मानसिक स्थिति खराब हो सकती है। बतौर साइकोलॉजिस्ट मैं ऐसे कई लोगों से मिलती हूं जो लगातार स्ट्रेस में हैं। काम के कारण उन्हें स्ट्रेस, एंग्जायटी, डिप्रेशन और बर्नआउट जैसी समस्याओं को झेलना पड़ता है। ऐसा नेगेटिव माहौल ना सिर्फ उनकी परफॉर्मेंस को खराब करता है, बल्कि इसके कारण उनका व्यवहार भी खराब होता चला जाता है। टॉक्सिक ऑफिस कल्चर कई बार इंसान की स्थिति को इतना खराब कर देता है कि उसे लोगों से मिलने और बात करने में भी दिक्कत महसूस होने लगती है।"

ऐसे मामलों में क्यों नहीं लगता पॉश?

आजकल प्रिवेंशन ऑफ सेक्शुअल हैरेसमेंट एक्ट (POSH) हर ऑफिस में लगाया जाता है, लेकिन जब मामला सेक्शुअल हैरेसमेंट का हो ही ना तब क्या किया जाए? शिवांगी के मामले में बॉडी शेमिंग की जा रही थी, शिवांगी थर्ड पार्टी ऑर्गेनाइजेशन की कर्मचारी थी और किसी और जगह काम कर रही थी। शिवांगी ने अपने सीनियर्स से इसकी शिकायत करने की कोशिश की, लेकिन उसकी जगह उन्हें टर्मिनेट कर दिया गया।

अभी इस मामले में आगे बहुत से खुलासे हो सकते हैं, लेकिन सबसे पहले सवाल यही उठता है कि आखिर क्यों पॉश का प्रावधान होने के बाद भी कर्मचारी इसका फायदा नहीं उठा सकते हैं।

यूएन वुमन की वर्ल्ड इकोनॉमिक्स एम्पावरमेंट कंट्री प्रोग्राम मैनेजर मिस सुहेला खान से हरजिंदगी ने पॉश कॉन्क्लेव में बात की थी। No means No फाउंडेशन की यह कॉन्क्लेव ऑफिस में होने वाले सभी हैरेमेंट्स का जिक्र करती थी। इस दौरान पॉश को लेकर कई बातें हुईं जिसमें यह सामने आया कि थर्ड पार्टी ऑर्गेनाइजेशन की कर्मचारी भी अगर किसी ऑफिस में काम कर रही है, तो उस ऑफिस की जिम्मेदारी है उसे सुरक्षित रखना।

work culture in toxic office

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अधिकतर लोग पॉश को लेकर आगे नहीं बढ़ते या अपनी बातों को नहीं बताते क्योंकि उन्हें डर लगता है। सुहेला खान का कहना है, "इस तरह की बातों की शुरुआत हमारी डिनर टेबल पर होनी चाहिए। सेक्शुअल हैरेसमेंट जैसा टॉपिक अगर डिनर टेबल पर डिस्कस किया जाएगा, तो यह बहुत बड़ा बदलाव ला सकता है।"

समस्या ये नहीं कि हमारे यहां कानून मौजूद नहीं है। समस्या यह है कि कानून का उपयोग नहीं होता है। ऑफिस में पॉश को लेकर ना जाने क्या-क्या बातें होती हैं, लेकिन खुद सोचिए कि अगर किसी सीनियर द्वारा किसी जूनियर के साथ कुछ गलत किया जाता है, तो उस सीनियर के खिलाफ कितनी रिपोर्ट दर्ज होती है। ऐसे कई ऑफिस होंगे जहां जूनियर को ही दबाने की कोशिश चलती रहती है। किसी को इस हद तक परेशान कर देना कि वह अपनी जान दे दे, इसे क्या कहा जाएगा?

बॉडी शेमिंग करना या किसी का मजाक उड़ा देना बहुत आसान है, लेकिन सही मायने में इसके कारण सामने वाले पर क्या असर होता है, यह वही जान सकता है।

आपका इस मामले में क्या ख्याल है? हमें अपने जवाब कमेंट बॉक्स में दें। अगर आपको यह स्टोरी अच्छी लगी है, तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी से।

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