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आसाराम बापू से लेकर स्वामी चैतन्यानंद सरस्वती तक कोई Rape Case में अंदर, तो किसी को बार-बार मिल जाती है राहत.. आखिर पीड़िताओं को कब मिलेगा सच्चा न्याय?

आसाराम बापू से लेकर स्वामी चैतन्यानंद सरस्वती तक कई धार्मिक गुरुओं पर यौन अपराध के गंभीर आरोप हैं। जानिए क्यों पीड़िताओं को न्याय मिलने में वर्षों लगते हैं, समाज और न्याय प्रणाली की क्या कमियाँ हैं, और सच्चा न्याय पाने के लिए क्या बदलाव जरूरी हैं।
Editorial
Updated:- 2025-11-10, 21:18 IST

कितनी शर्मनाक बात है कि जिन धार्मिक गुरुओं पर देश में धर्म की स्थापना और अनुयायियों को सही मार्ग दिखाने की जिम्मेदारी है, उनमें से कुछ यौन अपराधों में लिप्त पाए जाते हैं। अब तो इन धार्मिक गुरुओं के खिलाफ आए दिन ऐसी खबरें सुनने को मिल जाती हैं। लेकिन इसकी शुरुआत वास्तव में आसाराम बापू के साथ हुई थी। वर्ष 2000 में उनके खिलाफ पहली बार यौन उत्पीड़न का मामला दर्ज हुआ था, जिससे उनके भक्तों में भारी आक्रोश था और कोई भी इस पर विश्वास नहीं कर पा रहा था।

हालांकि, वर्ष 2013 में महाराष्ट्र के अहमदनगर और इंदौर में पीड़िताओं द्वारा उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की गई, और न्यायिक प्रक्रिया ने भी कठोरता दिखाई। परिणामस्वरूप, वर्ष 2018 में आसाराम बापू को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। तब से वे जेल में सजा काट रहे हैं, लेकिन उन्‍हें मिल रही विशेष सुरक्षा में रखे जाने और अंतरिम जमानत मिलने जैसी सुविधाओं ने लोगों के मन में कई सवाल खड़े कर दिए हैं।

अभी भी 6 महीने के लिए अंतरिम जमानत पाकर आसाराम बापू जमान पर जेल से बाहर हैं। ऐसे 6-6 महीने के लिए जेल से बाहर आने की व्यवस्था ने आम जनता में यह सवाल पैदा कर दिया है कि आखिर कैसे किसी रेप केस के दोषी को इस तरह की छूट दी जा सकती है।

क्‍या है सामाजिक और न्यायिक प्रणाली में कमी?

आराम बापू ही क्‍यों, इस फहरिस्‍त में कई साधू-संतों का नाम दर्ज हो चुका, जिसमें स्वामी नित्यानंद, बाबा गुरमीत राम रहीम, स्वामी चैतन्यानंद सरस्वती आदि कुछ बेहद चर्चित नाम हैं। किसी पर रेप केस दर्ज है तो, कोई यौन उत्‍पीड़न के मामले में सजा काट रहा है। लेकिन सवाल यह उठता है कि जब अपराध स्पष्ट है, तो फिर पीड़िताओं को न्याय क्यों नहीं मिल पाता? क्यों कुछ अपराधी को वर्षों तक कानूनी ढांचा उनके पक्ष में काम करने देता है और पीड़िताओं को बार-बार असहाय महसूस कराता है?

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Sexual abuse by saints in India

पीड़िताओं के साथ मानसिक और सामाजिक दबाव

सबसे पहली बात तो है कि हम सभी सैक्‍शुअल हैरेस्‍मेंट से कैसे महिलाओं को बचाया जाए, इस पर बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, मगर जब वास्‍तव में एसा कोई मामला सामने आता है और उसमें भी किसी बड़े लोकप्रिय व्‍यक्ति के लिप्‍त होने की संभावना होती है, तो उल्‍टा पीडि़ता पर ही संदेह करने लग जाते हैं। पीडि़ता को बार-बार सवालों के घेरे में लाया जाता है। "क्यों देर से शिकायत की?", "क्या आप पूरी तरह सुनिश्चित हैं?" जैसे सवाल पीड़िताओं की मानसिक स्थिति को और कमजोर कर देते हैं। इस प्रक्रिया में अक्सर दोषी उच्च पदस्थ व्यक्ति का दबाव और संरक्षण पीड़िता की आवाज को दबा देता है।

अंधश्रद्धा और सम्मान की भावना

दूसरा बड़ा कारण धार्मिक और आध्यात्मिक नेताओं के प्रति अंधश्रद्धा और सम्मान की भावना है, जो न्याय प्रक्रिया को प्रभावित करती है। कई बार समाज इस तरह के अपराधों को नजरअंदाज करता है क्योंकि आरोपी का आध्यात्मिक पद समाज में प्रतिष्ठा से जुड़ा होता है। यही वजह है कि दोषी बार-बार कानूनी ढांचा का फायदा उठाते हैं।

पीड़िताओं के लिए सच्चा न्याय तभी संभव होगा जब कानून और समाज सभी एक सकारात्मक भूमिका निभाएं। वहीं कानून को अधिक तेज और प्रभावी होना पड़ेगा। इस दिशा में विशेष अदालतों का गठन और मामले की समयबद्ध सुनवाई बेहद जरूरी है। साथी ही पीड़िताओं को मानसिक और कानूनी सहायता उपलब्ध कराना अनिवार्य होना चाहिए।

अत: समाज को भी अपने दृष्टिकोण में बदलाव लाना होगा। किसी व्यक्ति का पद, प्रभाव या धर्म उसे अपराध से मुक्त नहीं कर सकता। हमें यह समझना होगा कि यदि हम पीड़िताओं की आवाज को दबाते हैं और अपराधियों को संरक्षण देते हैं, तो हम समाज को असुरक्षित बना रहे हैं। हो सकता है कि अगला नंबर हमारे ही किसी करीबी और प्रिय का हो।

rape cases india

इतना ही नहीं, सामाजिक शिक्षा भी जरूरी है। हमें अपने बच्चों और समाज को यह सिखाना होगा कि किसी भी प्रकार का यौन उत्पीड़न गंभीर अपराध है। धर्म, पद या प्रतिष्ठा देखकरअपराध को माफ नहीं किया जा सकता है। जब समाज का दृष्टिकोण बदलता है, तभी अपराधियों पर दबाव बनता है और न्याय तंत्र प्रभावी होता है।

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यह केवल न्यायिक मामला नहीं है, बल्कि समाज की नैतिक जिम्मेदारी भी है। पीड़िताओं की आवाज को दबाना या अपराधियों को संरक्षण देना न केवल उनके लिए अपमानजनक है, बल्कि समाज के लिए भी खतरा है। समय आ गया है कि हम यह समझें कि धर्म या प्रतिष्ठा अपराध को नहीं बचा सकती और सच्चा न्याय हर पीड़िता का हक है। यह ओपीनियन आपको पसंद आया हो, तो लेख को शेयर और लाइक जरूर करें। इसी तरह और भी आर्टिकल्‍स पढ़ने के लिए हरजिंदगी को फॉलो करें।

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