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Muslim families making Chunri

प्रयागराज के इस गांव में पीढ़ियों से कलावा बना रहे हैं मुस्लिम लोग? वैष्णो देवी से लेकर बनारस तक के मंदिरों में होते हैं इस्तेमाल

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज जिले का एक गांव, जिसे शायद आप नाम से नहीं पहचानेंगे, लेकिन इस गांव के बारे में जानकर आपको हैरानी होगी। यहां मुस्लिम परिवारों द्वारा पीढ़ियों से कलावा बनाने का काम किया जा रहा है। यह कलावा खासतौर पर धार्मिक कार्यों में इस्तेमाल होता है और पूरे भारत में लोकप्रिय है।
Editorial
Updated:- 2025-03-25, 19:17 IST

चैत्र नवरात्रि का पर्व 30 मार्च से शुरू होने वाले हैं। इस दौरान माता दुर्गा की पूजा-अर्चना की जाती है। पूजा में कलवा और चुनरी का खास प्रयोग किया जाता है। वहीं बता दें कि जब नवरात्र का समय आता है, तो प्रयागराज जिले का नाम चर्चा में जरूर आता है। अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर वहां पर ऐसा क्या है, तो बता दें कि यह चुनरी और कलवा बनाने को लेकर दुनियाभर में मशहूर है। यह कस्बा जिला मुख्यालय से लगभग 55 किलोमीटर दूर, लखनऊ मार्ग पर स्थित है। इस जगह की खास बात यह है कि यहां के मुस्लिम परिवारों द्वारा मां दुर्गा को अर्पित की जाने वाली चुनरी और कलावा बनाने की परंपरा सदियों पुरानी है। आपको यह सोच भले ही थोड़ा अजीब लगे कि मुस्लिम लोग। लेकिन यह सच है। यह गांव हिंदू-मुस्लिम एकता का बेहतरीन उदाहरण है। इस विषय की जानकारी के लिए हमने प्रयागराज के रहने वाले सत्येन्द्र पटेल से इसके बारे में जानकारी ली।

लाल कपड़े में सजाकर बनाई जाती है चुनरी

Lalgopalganj town of Prayagraj

नवरात्र में आस्था से सजी माता की पूजा की थाली में रखी चुनरी को शक्ति का प्रतीक माना जाता है।  बता दें कि मुस्लिम लोगों द्वारा बनाई जाने वाली चुनरी देश के तमाम मंदिरों में भेजी जाती है। लालगोपालगंज में लाल कपड़े से तैयार होने वाली चुनरी को रंगीन सितारों और गोटे से बनाया जाता है।

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ब्रिटिश काल के समय से बन रही चुनरी

Muslim families making Chunri

प्रयागराज के लालगोपालगंज में चुनरी और कलावा बनाने की परंपरा ब्रिटिश काल से चली आ रही है। यहां के मुस्लिम परिवारों द्वारा बनाई गई चुनरी न केवल स्थानीय धार्मिक अनुष्ठानों में उपयोग होती है, बल्कि यह कई प्रमुख देवी-देवताओं के मंदिरों में अर्पित करने के लिए भेजी जाती है। यह कारीगरी पीढ़ियों से चली आ रही है और अब यह एक महत्वपूर्ण पेशा बन चुका है, जो परिवारों की आजीविका का मुख्य साधन है।

महाराष्ट्र से आता है कच्चा सूत और कपड़ा

Lalgopalganj Chunari Business

चुनरी बनाने वाले निसार उल्लाह बताते है कि नवरात्र आने के 15 दिन पहले से ही चुनरी और गोटा तथा नारियल चुनरी की मांग बढ़ गई है। मो इरशाद ने बताया कि मुंबई के भिवंडी और मालेगांव स्थित पावरलूम से वेस्ट लाया जाता है। धुलाई और प्रोसेसिंग के बाद रंग रोगन का काम किया जाता है। लालगोपालगंज में 21 से लेकर 700 रुपये तक की कीमत की चुनरी और कलावा बनाई जाती है। चुनरी में कारचोब डिजाइन का काम अधिक होने के कारण, कपड़े की क्वालिटी और साइज बढने पर दाम बढ़ जाता है।

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Image credit- Freepik

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