
चैत्र नवरात्रि का पर्व 30 मार्च से शुरू होने वाले हैं। इस दौरान माता दुर्गा की पूजा-अर्चना की जाती है। पूजा में कलवा और चुनरी का खास प्रयोग किया जाता है। वहीं बता दें कि जब नवरात्र का समय आता है, तो प्रयागराज जिले का नाम चर्चा में जरूर आता है। अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर वहां पर ऐसा क्या है, तो बता दें कि यह चुनरी और कलवा बनाने को लेकर दुनियाभर में मशहूर है। यह कस्बा जिला मुख्यालय से लगभग 55 किलोमीटर दूर, लखनऊ मार्ग पर स्थित है। इस जगह की खास बात यह है कि यहां के मुस्लिम परिवारों द्वारा मां दुर्गा को अर्पित की जाने वाली चुनरी और कलावा बनाने की परंपरा सदियों पुरानी है। आपको यह सोच भले ही थोड़ा अजीब लगे कि मुस्लिम लोग। लेकिन यह सच है। यह गांव हिंदू-मुस्लिम एकता का बेहतरीन उदाहरण है। इस विषय की जानकारी के लिए हमने प्रयागराज के रहने वाले सत्येन्द्र पटेल से इसके बारे में जानकारी ली।

नवरात्र में आस्था से सजी माता की पूजा की थाली में रखी चुनरी को शक्ति का प्रतीक माना जाता है। बता दें कि मुस्लिम लोगों द्वारा बनाई जाने वाली चुनरी देश के तमाम मंदिरों में भेजी जाती है। लालगोपालगंज में लाल कपड़े से तैयार होने वाली चुनरी को रंगीन सितारों और गोटे से बनाया जाता है।
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प्रयागराज के लालगोपालगंज में चुनरी और कलावा बनाने की परंपरा ब्रिटिश काल से चली आ रही है। यहां के मुस्लिम परिवारों द्वारा बनाई गई चुनरी न केवल स्थानीय धार्मिक अनुष्ठानों में उपयोग होती है, बल्कि यह कई प्रमुख देवी-देवताओं के मंदिरों में अर्पित करने के लिए भेजी जाती है। यह कारीगरी पीढ़ियों से चली आ रही है और अब यह एक महत्वपूर्ण पेशा बन चुका है, जो परिवारों की आजीविका का मुख्य साधन है।

चुनरी बनाने वाले निसार उल्लाह बताते है कि नवरात्र आने के 15 दिन पहले से ही चुनरी और गोटा तथा नारियल चुनरी की मांग बढ़ गई है। मो इरशाद ने बताया कि मुंबई के भिवंडी और मालेगांव स्थित पावरलूम से वेस्ट लाया जाता है। धुलाई और प्रोसेसिंग के बाद रंग रोगन का काम किया जाता है। लालगोपालगंज में 21 से लेकर 700 रुपये तक की कीमत की चुनरी और कलावा बनाई जाती है। चुनरी में कारचोब डिजाइन का काम अधिक होने के कारण, कपड़े की क्वालिटी और साइज बढने पर दाम बढ़ जाता है।
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