
गुरुदेव के आज सुविचार का सही अर्थ जानते हैं। दुनिया में कोई भी इंसान या जीव दुख नहीं चाहता। हर कोई खुशी की तलाश में है, जैसे आग का काम जलाना है और पानी का काम बहना है, वैसे ही हर जीव का स्वभाव दुख से दूर भागना है। लेकिन सवाल यह है कि दुख से पीछा कैसे छुड़ाया जाए? इसका आसान और असरदार उपाय योग है। योग सिर्फ वर्कआउट नहीं, बल्कि दुख से मुक्त होने की कला है।
''अनुशासन से मन शांत और आत्मकेंद्रित होता है,
अंततः इसका फल परमानंद की प्राप्ति होता है।"
हमारे जीवन में जो कुछ भी अपने आप घट रहा है, वह प्रकृति का 'शासन' है। सूरज का निकलना, पृथ्वी का घूमना और जीवन में सुख-दुख का आना-जाना, ये सभी प्राकृतिक नियम हैं, लेकिन इन नियमों के बीच हम खुद को कैसे संभालते हैं, वह 'अनुशासन' है। जिस तरह बारिश होना बादलों का शासन है, लेकिन भीगने से बचने के लिए छाता लगाना हमारा अनुशासन है। आग का काम जलाना है, लेकिन सावधानी से इस्तेमाल करना अनुशासन है।
जीवन में हम जो कुछ भी हासिल करना चाहते हैं, इसके लिए हमें 'योग्य' बनना पड़ता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि 'योग्यता' शब्द की उत्पत्ति भी 'योग' से ही हुई है। काम करना हमारा स्वभाव है, लेकिन काम को पूरी कुशलता के साथ करना योग सिखाता है। योग जीवन में संतुलन लाता है।
अक्सर हम ऐसी चीजों की ओर भागते हैं, जो शुरुआत में तो बहुत मीठी लगती हैं, लेकिन इनका रिजल्ट कड़वा होता है। जैसे शुगर का मरीज मीठा खाते समय तो बहुत खुश होता है, लेकिन बाद में उसे दुख झेलना पड़ता है। असली और सच्चा आनंद वही है, जो अनुशासन से मिलता है। अनुशासन से मिलने वाली खुशी सात्विक होती है और लंबे समय तक साथ रहती है। जो सुख शुरू में अच्छा लगे और बाद में दुख दे, वह सच्चा आनंद नहीं हो सकता।
अनुशासन का असली मकसद आपको परेशान करना नहीं, बल्कि आपको प्रसन्न रखना है। अनुशासन की जरूरत हमें तब होती है, जब हमारा मन भटक रहा होता है। जब आप पूरी तरह शांत, खुश और खुद में स्थित होते हैं, तब किसी नियम की जरूरत नहीं रह जाती। लेकिन जब तक मन चंचल है, तब तक अनुशासन ही वह शक्ति है, जो हमें भटकने से बचाती है और परमानंद तक पहुंचाती है।

''अनुशासन एक ऐसा अटूट पुल है, जो आपके वर्तमान के संघर्ष को, सुनहरे कल की उपलब्धि से जोड़ता है।"
गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर जी इसका अर्थ बता रहे हैं कि छात्र के लिए अनुशासन का मतलब अपनी पढ़ाई और खेल के बीच संतुलन बनाना है। जब आप अनुशासित होते हैं, तब परीक्षा का डर खत्म हो जाता है, मन शांत रहता है और जब आप अपना लक्ष्य प्राप्त करते हैं, तब वह खुशी किसी परमानंद से कम नहीं होती।
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"ऑफिस पर अनुशासन सिर्फ नियमों का पालन नहीं, बल्कि अपने समय और ऊर्जा का सम्मान है, जो तनाव को मिटाकर काम को आनंद में बदल देता है।"
इसका अर्थ है कि जब ऑफिस में जब हम अनुशासित होकर अपने कार्यों को समय पर पूरा करते हैं, तो 'डेडलाइन' का प्रेशर नहीं रहता। इससे मन आत्मकेंद्रित और शांत रहता है, जिससे आपकी कार्यक्षमता बढ़ती है। जब काम का बोझ खत्म होता है और आप सुकून से घर लौटते हैं, वही असली परमानंद है।
अनुशासन के बिना खुशी अधूरी है। अगर हम खुद को अनुशासित करना सीख लें, तो हम दुखों से बच सकते हैं, बल्कि जीवन में अद्भुत कुशलता और शांति भी पा लेते हैं।
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