अगर आपको खाना बनाने का शौक है और आप सालों से खाना बनाते आ रहे हैं, लेकिन अचानक से कोई इंसान आकर आपको आपकी ही डिश को बनाने के लिए इंस्ट्रक्शन देने लगे, तो क्या होगा? आपको पक्का गुस्सा आएगा और आपको चिढ़ होने लगेगी। ठीक, ऐसे ही वर्कप्लेस पर अगर आप किसी सीनियर पोस्ट पर हैं और आपको अपना काम बखूबी आता है, लेकिन अचानक से कोई व्यक्ति आपसे ऊंची पोस्ट पर लाया जाता है और वह आपको आपके ही काम के बारे में छोटी-छोटी चीजें बताता है और आपको कंट्रोल करने की कोशिश करता है, तो इसे माइक्रोमैनेजमेंट कहते हैं।
आमतौर पर माइक्रोमैनेजमेंट एक निगेटिव टर्म है, जो मैनेजमेंट स्टाइल को बताता है। जब कोई मैनेजर अपने कर्मचारियों की बहुत बारीकी से निगरानी करता है और कर्मचारी के काम को कंट्रोल करने की कोशिश करता है, उसे माइक्रोमैनेजर कहते हैं। एक माइक्रोमैनेजर अक्सर अपने कर्मचारी को काम सौंपते हैं और लगातार उनसे प्रोग्रेस रिपोर्ट मांगते रहते हैं। वह काम के हर हिस्से को मैनेज करने की कोशिश करते हैं। हालांकि, ऐसे मैनेजर कंपनी के कल्चर, मोरल और प्रोडक्टिविटी के लिए हानिकारक होते हैं और क्रिएटिविटी को भी बाधित करते हैं। कई बार तो माइक्रोमैनेजमेंट कर्मचारियों को कंपनी छोड़ने पर भी मजबूर कर देता है और कर्मचारी दूसरी नौकरी की तलाश करने लग जाते हैं।
सवाल उठता है कि आखिर कैसे पता किया जाए कि आपका मैनेजर या बॉस आपको माइक्रो मैनेज कर रहा है? आज हम इस आर्टिकल में आपको कुछ ऐसे संकेतों के बारे में बताने वाले हैं, जो माइक्रोमैनेजमेंट को दर्शाते हैं।
काम सौंपने का विरोध करना
माइक्रोमैनेजर कंट्रोल करना पसंद करते हैं और उन्हें काम सौंपना मुश्किल लगता है। ऐसे में कर्मचारी अक्सर सोचते हैं कि क्या वे बिना इंस्ट्रक्शन के काम कर सकते हैं। इसके अलावा, माइक्रोमैनेजर के पास बहुत अधिक कार्यभार होता है, क्योंकि वे दूसरों पर करीबी निगरानी के साथ काम करने पर भरोसा करते हैं।
कर्मचारियों के काम में ज्यादा शामिल होना
माइक्रोमैनेजर अपने कर्मचारियों के वर्कफ्लो के हर डिटेल में ज्यादा बिजी रहता है। ये मैनेजर बहुत कम ऑटोनॉमी प्रदान करते हैं और हायर लेवल पर रणनीति को लागू करने के बजाय निरीक्षण करने और निर्देश देने में काफी समय खर्च करते हैं।
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स्वतंत्र निर्णय लेने नहीं देना
माइक्रोमैनेजर अपने कर्मचारियों को कंट्रोल करना पसंद करते हैं और निर्णय लेने के लिए सेंट्रलाइज्ड अप्रोच अपनाते हैं। माइक्रोमैनेजर कर्मचारियों को टीम ऑपरेट करने के तरीके के बारे में फैसले लेने में शामिल नहीं करते हैं, क्योंकि उन्हें दूसरों के इनपुट को सुनने में दिलचस्पी नहीं होती है। इसकी वजह से क्रिएटिविटी, स्वतंत्र विचार और नॉलेज शेयरिंग करने को वह बाधित कर देते हैं।
लगातार अपडेट मांगना
प्रोसेस को कंट्रोल करने के अलावा, माइक्रोमैनेजर को लगातार अपडेट की भी जरूरत होती है। हमेशा अपडेट मांगने पर कर्मचारियों का काम बाधित होता है और उन्हें स्ट्रेस भी महसूस होने लगता है।
बड़े Perspective के बजाय डिटेल्स पर ध्यान देना
एक माइक्रोमैनेजर अक्सर कंपनी के गोल्स और स्ट्रेटजी के संदर्भ में कर्मचारियों को क्या करने की जरूरत है, के बजाय छोटी-छोटी डिटेल्स और माइक्रो-स्टेप्स को देखता है।
टीम की टर्नओवर रेट अधिक करना
जिस टीम में माइक्रोमैनेजर होता है, वहां कर्मचारी काफी निराश, अविश्वसनीय और शक्तिहीन महसूस करते हैं। परिणामस्वरूप, वह नौकरी छोड़कर कहीं और जाना सही समझने लगते हैं।
डिलीवरेबल्स से शायद ही कभी संतुष्ट होना
माइक्रोमैनेजर कर्मचारियों को प्रोत्साहित करने और उनको गाइड करने के बजाय उनकी परफॉर्मेंस की जांच करते हैं, जिससे कर्मचारियों का मोटिवेशन और कॉन्फिडेंस कम हो जाता है।
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कठोर समय सीमा निर्धारित करना
माइक्रोमैनेजर कर्मचारियों को टास्क पूरा करने के लिए बिना विचार किए ही Unrealistic Deadlines दे देते हैं।
हर काम को मॉनिटर करना
माइक्रोमैनेजर कर्मचारियों के हर काम को मॉनिटर करने की कोशिश करते हैं। मॉनीटरिंग का यह तरीका वर्कफोर्स टास्क का कारण बनता है।
अपनी स्किल्स और नॉलेज को दूसरों को नहीं देना
माइक्रोमैनेजर जूनियर्स को सिखाने में कोई दिलचस्पी नहीं रखते हैं बल्कि उन्हें हमेशा कठिन टास्क देकर रखते हैं। ऐसे में जूनियर्स कुछ नया नहीं सीख पाते हैं और उन्हें हमेशा डांट का सामना करना पड़ता है।
माइक्रोमैनेजमेंट कंपनी की ग्रोथ के लिए हमेशा हानिकारक होता है, जिससे कर्मचारियों का मनोबल गिरता है और ग्रोथ रुक जाती है। इन संकेतों को पहचानकर और उनसे निपटने के लिए रणनीतियों को बनाना और लागू करना जरूरी है।
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Image Credit- freepik
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