
मदर्स डे पर हम मां के हर रूप को सेलिब्रेट करने की कोशिश करते हैं। वैसे तो मां के प्यार को किसी एक खास दिन की जरूरत नहीं होती है, लेकिन ये वो दिन है जहां हम मां को स्पेशल फील करवाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। मां के लिए उसके सभी बच्चे बराबर होते हैं और उनका प्यार कभी नहीं बटता है। कहते हैं जिसके पास मां का दिल होता है वो दुनिया की हर चीज़ से प्यार कर सकती है।
ऐसी ही एक मां हैं सालुमारदा थिममक्का। इन्हें प्यार से मदर ऑफ ट्री कहा जाता है क्योंकि इन्होंने अपना पूरा जीवन पेड़-पौधों के लिए दे दिया। कर्नाटक में रहने वाली सालुमारदा किसी लेजेंड से कम नहीं हैं। उन्हें 107 साल की उम्र में 2017 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था।
एक मीडिया रिपोर्ट के हिसाब से 2017 में वो 107 साल की थीं। 2020 में उन्हें कर्नाटक सेंट्रल यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट की उपाधि भी मिली है। हालांकि, उनकी मौत का कहीं कोई जिक्र नहीं है और मौजूदा जानकारी के हिसाब से वो 110 साल की हैं।

उनकी उम्र को लेकर बहुत अलग-अलग रिकॉर्ड्स हैं और उनके जन्म का साल भी 1910-1912 के बीच बताया जाता है। बीबीसी की एक रिपोर्ट मानती है कि वो 2019 में 107 साल की थीं वहीं एक और अन्य मीडिया रिपोर्ट बताती है कि वो 2017 में 107 साल की थीं।(प्रदूषण कंट्रोल करने के कुछ तरीके)
उनके जन्म के साल को लेकर इतना कन्फ्यूजन है इसलिए ही उनकी सही उम्र नहीं बताई जा सकती है। क्योंकि उनके जन्म के साल और तिथि को लेकर अलग-अलग कयास लगाए जाते हैं। इसलिए उनकी उम्र के बारे में निश्चित कुछ कहना मुश्किल होगा।
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सालुमारदा थिममक्का वो महिला हैं जिन्होंने अपने जीवन में 8000 से भी ज्यादा पौधे लगाए हैं। उनके द्वारा लगाए गए पौधों में से कुछ अब 70 साल पुराने हो गए हैं। उन्होंने अपने अपने स्वर्गीय पति के साथ मिलकर अपने घर के पास वाले हाईवे पर हज़ारों पेड़ लगाए हैं। उनका घर रमनगारा जिले में है।

सरकार द्वारा पेड़ों को काटकर रोड को चौड़ी करने के प्लान पर भी सालुमारदा ने आपत्ती जताई थी और बहुत सारे पेड़ लगाए थे।(मध्यप्रदेश के खूबसूरत बक्सवाहा जंगल की कटाई)
सालुमारदा को दुनिया का सबसे बूढ़ा पर्यावरणकर्ता माना जाए तो गलत नहीं होगा।
सालुमारदा को पेड़ लगाने की प्रेरणा अपने पति से मिली थी। सालुमारदा के पति ने घर के पास वाले हाईवे पर पेड़ों को लगाना शुरू किया था। वो एक गड्ढा खोदकर छोटे-छोटे पौधे लगाते, उन्हें टहनियों और पत्तों सो सुरक्षित करते और आगे बढ़ जाते।
दो मिट्टी के मटकों की मदद से वो कुएं के पानी से इन पेड़ों की सिंचाई करते। वो कम से कम हफ्ते में दो बार पौधों में पानी डालते थे। अपने एक इंटरव्यू में सालुमारदा ने कहा था कि उन्हें नहीं पता उनके पति और उन्होंने मिलकर कितने पेड़ लगाए हैं। बस वो पेड़ बढ़ते चले गए।

उनके पति का स्वर्गवास करीब 30 साल पहले ही हो गया था और तब भी सालुमारदा ने अपना काम नहीं छोड़ा। सालुमारदा ने अपने इसी इंटरव्यू में बताया था कि कई सालों बाद एक बच्चे ने आकर अपनी किताब में मेरी तस्वीर दिखाई। तब मुझे पता चला कि मेरे काम का महत्व भी है।
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सालुमारदा को जब पद्मश्री अवॉर्ड दिया गया था तब उन्होंने एक और संकल्प लिया कि पेड़ लगाने के साथ-साथ वो अपने गांव के लिए कुछ अच्छा होते देखना चाहती हैं। उनके हिसाब से उनके गांव में महिलाओं को डिलिवरी के लिए बहुत परेशान होना पड़ता है और इसलिए उन्हें इस बारे में कुछ करना है।
सालुमारदा वो महिला हैं जिन्हें अच्छा काम करने के लिए किसी की मदद की जरूरत नहीं है। उन्होंने अपना जीवन एक खास लक्ष्य के लिए समर्पित कर दिया है। वो अपनी सभी पेड़ों की देखभाल में अपना जीवन बिता रही हैं और अपने पेड़ों को जाकर गले भी लगाती हैं।
सालुमारदा ने वाकई पेड़ों को एक मां की तरह ही ट्रीट किया है और उनकी खूबी ये है कि वो किसी में भेदभाव नहीं करती हैं। अगर आपको ये स्टोरी अच्छी लगी है तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी से।
Image Credit: Wikipedia/ Facebook saalumarada thimmakka account
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