एक लड़की के लिए भारत में कोई बोल्ड फैसला लेना कितना मुश्किल है? बतौर लड़की मैं ये कह सकती हूं कि अपनी पसंद के लड़के से शादी करना, अपनी पसंद का करियर चुनना, दोस्तों के साथ ट्रिप पर जाना, शादी ना करने का फैसला लेना और सिंगल मदर बनने का फैसला लेना ही नहीं बल्कि हमारे समाज में एक लड़की हफ्ते के किसी एक दिन अपनी मर्जी से लेट आने का फैसला भी लेने के लिए पूरी तरह से सक्षम नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि कहीं ना कहीं हम उसे दायरे में बांधने की कोशिश करते हैं। लड़कियों के द्वारा सिंगल रहने और सिंगल मदर बनने के फैसले को बोल्ड कहा जाता है, लेकिन क्या वाकई ऐसा होना चाहिए?
इसी सवाल की कश्मकश से बाहर निकलकर भोपाल की संयुक्ता बनर्जी ने अपने लिए एक छोटी सी खूबसूरत दुनिया बना ली। संयुक्ता बनर्जी की शादी 2008 में हुई थी और 2014 में अपने पति से अलग होने के बाद से ही वो अडॉप्शन की कोशिश कर रही थीं। अब उन्होंने ICI तकनीक का इस्तेमाल कर सिंगल मदरहुड को अपनाया है।
इस खूबसूरत कड़ी में हमने भी संयुक्ता से बात की और उनके ख्याल जानने की कोशिश की।
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1. सवाल: आपने अडॉप्शन के लिए कितने साल इंतज़ार किया और दिक्कत कहां आ रही थी?
जवाब: '2014 से मैं इस प्रोसेस की तैयारी में जुट गई थी। मैं अपने पति से उस वक्त अलग हुई थी और मैंने ये फैसला किया था कि मैं अडॉप्ट करूंगी और बेटी गोद लूंगी और मैंने ये फैसला किया कि मैं खुद को इकोनॉमिकली स्ट्रांग बनाऊंगी क्योंकि अडॉप्शन के समय आपका इकोनॉमिक सर्वे भी होता है और कई बार आप वहीं रिजेक्ट हो जाते हैं। मैंने 1 साल तक पूरी कोशिश की कि मैं अपना पूरा बैंक बैलेंस बना सकूं। इसमें घर, गाड़ी, सही बैंक-बैलेंस सब कुछ शामिल था।'
'ये जाहिर सी बात है कि अगर आप एक बच्चा गोद ले रहे हैं तो आपको उसे बेसिक चीज़ें तो देनी चाहिए। इसके बाद मैं कारा (CARA- Central Adoption Resource Authority) में रजिस्ट्रेशन किया। एक बार रजिस्ट्रेशन करने पर आप 3 साल तक रेफरल ले सकते हैं, लेकिन दिक्कत ये होती है कि अगर आपको पहली बार किसी बच्चे का रेफरल मिले तो आपको 48 घंटे के अंदर जवाब देना होता है। मेरे पास कई रेफरल आए, लेकिन अधिकतर ऐसे थे जहां मेरे लिए 48 घंटे में पहुंच कर बच्चे का मेडिकल कराना मुश्किल था।'
'मेरी सिर्फ एक ही कंडीशन थी कि मुझे सिर्फ बच्चा जब दिया जाए तब वो मेडिकली फिट हो। बहुत ज्यादा एजेंसीज जो होती हैं वो भी आपकी बहुत मदद नहीं कर पातीं क्योंकि उन्हें भी कई बार बच्चे के बारे में पूरी जानकारी नहीं होती है। ऐसे में मैं एक सिंगल मॉम होने वाली थी और मैं बस इतना चाहती थी कि जिस समय बच्चा झे दिया जाए उस समय वो फिट हो। बाकी आने वाले समय में उसकी पूरी जिम्मेदारी मेरी होती।'
2. सवाल: इस फैसले को समाज बोल्ड कहता है इसके बारे में आपका क्या ख्याल है?
जवाब: 'जब 2020 में मेरे पास CARA से कॉल आया कि मेरा रजिस्ट्रेशन कैंसिल हो रहा है। ऐसे में मुझे लगा कि अगर फिर से 3 साल मैं बच्चा नहीं अडॉप्ट कर पाई तो मैं 40 का पड़ाव पार कर लूंगी और मेरे लिए बहुत मुश्किल हो जाएगा किसी भी और तरह से मां बनना। इसके बाद मैंने सरोगेसी के बारे में पता किया, लेकिन वो बहुत ज्यादा महंगा था। मेरे फैमिली डॉक्टर ने मुझे IVF, ICI, IUI और ऐसी ही अन्य तकनीक के बारे में जानकारी दी।'
'इसके बाद मैंने ICI चुना क्योंकि इसमें आपको सिर्फ एक डोनर की जरूरत होती है। हालांकि, मुझे सामाजिक और कानूनी मामलों के बारे में ख्याल आया, लेकिन समाज को लेकर मैं ज्यादा चिंतित नहीं थी क्योंकि जिस चीज़ के बारे में मैं खुद पढ़ रही थी वो समाज समझ पाएगा ये मैं नहीं सोच भी नहीं सकती थी। हां, कानूनी प्रक्रिया मैंने पता की और मैंने जाना कि ये पूरी तरह से कानूनी है।'
'अगर मैं अडॉप्शन करती तो भी ये बच्चा बिना पिता के पलता और हमारा पितृसत्ता से भरा हुआ समाज ये एक्सेप्ट ही नहीं करता कि कोई बच्चा बिना माता-पिता के हो सकता है। इसलिए मैंने समाज की नहीं बल्कि अपनी सोच पर यकीन किया। किस्मत से मैंने पहली ही बार में कंसीव भी कर लिया और 8 महीने के अंदर मेरे बेटे ने जन्म लिया।'
3. सवाल: तारीफ और ताने दोनों आपको भरपूर मिले होंगे, क्या कोई खास बात है जो आपके दिल को छू गई (पॉजिटिव और नेगेटिव दोनों)?
जवाब: 'मैं सही बताऊं तो निगेटिव कमेंट्स और ताने ऐसे नहीं सुनने को मिले शायद इसलिए क्योंकि जब आप लोग अपनी पर्सनालिटी को जानते हैं तो आपके सामने कुछ भी कहने से बचते हैं। पॉजिटिव कमेंट्स मुझे बहुत मिले और सपोर्ट लगभग सभी का मिला। मेरे परिवार का सपोर्ट, मेरे दोस्तों का सपोर्ट। शुरुआत में मैंने इसके बारे में लोगों को नहीं बताया था क्योंकि मैं कोई नेगेटिविटी नहीं चाहती थी, लेकिन जैसे-जैसे मैंने बताना शुरू किया मुझे सपोर्ट मिला।'
'मैं हर शनिवार पार्टी किया करती थी और आप यकीन नहीं करेंगे कि इन 8 महीनों में भी मैंने ये जारी रखा। मेरे दोस्तों ने कभी मुझे कमी महसूस नहीं होने दी और पार्टीज मेरे घर पर होने लगीं। मुझे सभी का साथ मिला और लोगों ने अचार, पापड़, बड़ियां बनाकर भेजीं। मेरे लिए तीन-तीन बार बेबी शावर ऑर्गेनाइज किए गए। जब मैं बेड रेस्ट पर थी तब कभी किसी ने अकेले नहीं छोड़ा यहां तक कि मेरी 70 साल की मां ने भी मेरी एक-एक चीज़ का ख्याल रखा।'
4. सवाल: सिंगल मदरहुड को लेकर बहुत सी लड़कियों के मन में कई सवाल और डर होते हैं क्या आपके मन में भी ऐसा कुछ था?
जवाब: 'मैं कहीं ना कहीं मेंटली इसके लिए तैयार थी क्योंकि मैं अडॉप्शन करती तो भी मैं सिंगल मदर ही होती। मैं मानसिक और कानूनी रूप से पूरी तरह से तैयार होना चाहती थी क्योंकि ये सिर्फ मेरी ज़िद और मेरी बात नहीं है। मेरा बच्चा भी यही झेलेगा और जिंदगी भर में उसके सामने बहुत कुछ आ सकता है, कदम-कदम पर उससे ये पूछा जा सकता है कि उसके पिता का नाम क्या है, कदम-कदम पर वो बुली हो सकता है तो मुझे उसे ये समझाना होगा कि इन चीज़ों से परेशान ना हो और इसके लिए मेरा खुद हेडस्ट्रांग होना बहुत जरूरी है।'
'आपके लिए ये बहुत जरूरी होता है कि कोई भी फैसला लेने से पहले आप सभी पक्षों के बारे में सोचें और अपने सपनों को कानूनी दायरे में रहकर पूरा करें।'
5. सवाल: परिवार की तरफ से क्या आपको किसी भी तरह की परेशानी हुई?
जवाब: 'नहीं बिल्कुल भी नहीं, ये मेरे लिए एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। मेरे सारे कजिन मिलाकर भी 8 भाई-बहन हैं और हम सभी बहुत ओपन माइंडेड हैं। जब मेरी मां को पता चला तो 70 साल की उम्र में उन्होंने मुझे पूरा सपोर्ट किया और मेरे लिए सारी रस्में भी निभाईं। मैं इस मामले में बहुत ही लकी हूं कि मुझे सपोर्टिव परिवार मिला। जो मुझे समझता है और इस बात की मुझे खुशी है कि इस फैसले को लोग समझ पाए।'
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6. सवाल: अडॉप्शन और IVF प्रोसेस के बारे में थोड़ी जानकारी देना चाहेंगी?
जवाब: 'अडॉप्शन में मैं अभी सफल नहीं हुई हूं, लेकिन मैं कोशिश जरूर करूंगी कि एक बेटी अपनी जिंदगी में अडॉप्ट कर पाऊं और उसे सब कुछ दूं। भारत में CARA एक मात्र ऐसी रेगुलेटरी अथॉरिटी है जो अडॉप्शन के लिए जिम्मेदार है। आप किसी और धोखे में ना आएं सिर्फ CARA के जरिए ही अडॉप्ट करें। हमें लगता है कि प्रोसेस जटिल है, लेकिन कहीं ना कहीं ये बच्चों के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए ही है। एक तरह से देखा जाए तो जब ये सुविधा नहीं थी तो अडॉप्शन के नाम पर ह्यूमन ट्रैफिकिंग भी होती थी। पैसों का कारोबार भी होता था और इसी के लिए कारा को बनाया गया है। लीगल अडॉप्शन का यही तरीका है और आप इसकी वेबसाइट से या अपने जिले के महिला बाल विकास अधिकारी से भी संपर्क किया जा सकता है।'
'IVF की अलग-अलग तरह की फर्टिलिटी तकनीक होती हैं। IVF तब ली जाती है जब फर्टिलिटी की कोई समस्या हो और इसमें हार्मोनल इंजेक्शन भी दिए जाते हैं। अगर आप फर्टाइल हैं और सिर्फ स्पर्म चाहिए तो ICI (जो मेरा केस था) चुन सकते हैं जिसमें सिर्फ स्पर्म डोनर की जरूरत होती है। इंट्रा सर्वाइकल इन्सेमिनेशन की ये तकनीक मैंने भी अपनाई थी। जरूरी ये है कि आप अपनी हेल्थ के हिसाब से पहले डॉक्टर से कंसल्ट करें और फिर आगे बढ़ें। मैंने भी अपने फैमिली डॉक्टर से सलाह लेकर, सारी रिसर्च करने के बाद ही इसे अपनाया था।'
'मैं फिर कहूंगी कि बिना जानकारी के कोई भी कदम ना उठाएं और पूरी जानकारी और सलाह के बाद ही आगे बढ़ें। आपको कौन सा प्रोसीजर चाहिए वो आपकी हेल्थ पर निर्भर करता है।'
7. सवाल: क्या ऐसा कुछ है जो आप हमारे रीडर्स से शेयर करना चाहती हैं?
जवाब: 'ये मैंने किसी मिसाल के लिए नहीं किया, मैंने सिर्फ अपने बारे में भी नहीं सोचा मैंने अपने बच्चे के बारे में भी सोचा। हर गुजरते साल के साथ ये बहुत मुश्किल होगा कि मैं अपने बच्चे को समझा पाऊं, लेकिन मैं पूरी कोशिश करूंगी कि मैं उसे हेडस्ट्रांग बनाऊं और जेंडर न्यूट्रल रखूं। मेरा बेटा भी किचन सेट से खेलेगा और उसे ये पता होगा कि किचन सिर्फ महिलाओं की जगह नहीं है। मेरा एक दोस्त है जो एक प्राउड हाउस हसबेंड है और जेंडर रोल्स जो हमने तय कर रखे हैं उन्हें लेकर दकियानूसी बातें मैं अपने बच्चे को नहीं सिखाऊंगी।'
'मेरे बेटे को ये पता होगा कि महिला सशक्तिकरण का मतलब क्या है, उसे ये पता होगा कि लड़कों को ये समझना चाहिए कि लड़कियों को किसी भी तरह के कपड़े पहनने का पूरा हक है, उन्हें भी अपनी आज़ादी जीने का हक है। मेरे बेटे के साथ आने वाली हर मुश्किल के लिए मैं भी रहूंगी और मैं बस इतना कहना चाहूंगी कि हममे से सभी को ये फर्क मिटाने की थोड़ी कोशिश करनी चाहिए।'
ये थीं संयुक्ता बनर्जी जिन्हें महिला सशक्तिकरण की मिसाल कहा जा रहा है, लेकिन मेरी नजर में वो एक ऐसी महिला हैं जिनमें मुश्किल फैसले लेने की हिम्मत है। 2021 में बतौर समाज हम कहीं न कहीं फेल हुए हैं क्योंकि जो फैसला उन्होंने अपनी खुशी के लिए लिया, अपने बच्चे के भविष्य के लिए लिया उसके लिए भी उन्हें कई लोग गलत कहेंगे और बातें करेंगे। हम क्यों नहीं कोशिश करते कि संयुक्ता और उनके जैसे हर इंसान को, चाहें वो लड़का हो या लड़की, उसके हिस्से का आसमान दिया जाए?
समाज से लड़ने की बात तो दूर है लड़कियों को अपने ही घरों में लगातार लड़ना पड़ता है। जो लड़ाई अपने घर में अपनी ही खुशियों के लिए लड़ी जाए वो बहुत मुश्किल होती है, लेकिन कहीं ना कहीं हमारे घरों में ऐसी मानसिकता के लोग रहते हैं जो ये सोच ही नहीं सकते कि किसी लड़की की अपनी अलग सोच और जिंदगी हो सकती है। किसी लड़की की खुशियां कभी उसके दायरे से बाहर नहीं होती हैं, लेकिन बतौर समाज हम उसे उसकी छोटी-छोटी खुशियों से वांछित रखते हैं और अगर वो कोई बोल्ड फैसला ले तो उसे ताने मारकर या ज़ोर-जबरदस्ती और इमोशनल एब्यूज से पीछे खींचने की कोशिश करते हैं।
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