भारत में आपको साड़ियों की 100 से भी अधिक वेराइटी मिल जाएंगी। आमतौर पर हम साड़ी को केवल एक परिधान के रूप में देखते हैं, मगर साड़ी एक कपड़े के टुकड़े से काफी बढ़कर महत्व रखती है। खासतौर पर हिंदू धर्म में साड़ी को बहुत ही पवित्र वस्त्र माना गया है। आपको देश में हर पग-पग पर नई कला- संस्कृति, भाषा और खानपान का अनुभव होगा। साड़ी भी भारतीय कला का एक अनुपम हिस्सा है। आपको अलग-अलग साड़ियों में भिन्न-भिन्न कलाओं के दर्शन होंगे।
जहां जैसी संस्कृति और कला को प्रोत्साहित किया जाता है वैसी ही साड़ी आपको देखने को मिल जाएगी। कहीं पर आपको साड़ी में पौराणिक कथाओं को वर्णन मिल जाएगा तो कहीं आपको खूबसूरत प्राकृतिक दृश्यों के अंश देखने को मिल जाएंगे।
खासतौर पर ऐसी साड़ियों के पल्लू को खूबसूरत, अर्थपूर्ण और संदेशात्मक बनाया जाता है। तो चलिए जानते हैं ऐसी ही कुछ साड़ियों के बारे में -
कलमकारी साड़ी के पल्लू की डिजाइन
कलमकारी एक हस्तकला है, जो कागज या कैनवास पर की जाती है। इस कला का केंद्र मछलीपटनम है और इस कला के माध्यम से क्षेत्र की लोक कथाओं का कलम के द्वारा कागज या कैनवास पर चित्रण किया जाता है। अब यह कला साड़ियों पर भी नजर आती है। कलमकारी साड़ी में आपको फूल की बेल और प्राकृतिक चीजें जैसे जानवर, पक्षी आदि नजर आ जाएंगे। इस साड़ी का पल्लू बहुत ही विशेष होता है और इनमें आपको हिंदू देवी देवता जैसे लक्ष्मी नारायण, महागौरी और शंकर जी की पौराणिक कथाओं का चित्रण देखने को मिल जाएगा। इसके अलावा कलमकारी साड़ी के पल्लू की डिजाइंस में आपको ग्रामीण जीवन के चित्र देखने को मिलेंगे।
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नारायणपेट साड़ी के पल्लू की डिजाइन
नारायणपेट साड़ियों से जुड़ा एक महान इतिहास है। इस साड़ी को मराठा पेशवा छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा बनवाया गया था। यह साड़ियां सिल्क और कॉटन फैब्रिक में आती हैं और इनमें चटक रंगों का इस्तेमाल किया जाता है। वहीं इनके बॉर्डर और पल्लू में जरी का काम होता है। इन साड़ियों को पूजा-पाठ के काम के लिए शुभ माना गया है क्योंकि इसके पल्लू और बॉर्डर में भगवान और मंदिरों के चित्र होते हैं। आमतौर पर इनके बॉर्डर और पल्लू का रंग मैरून होता है, जिसे हिंदू धर्म में बहुत ही शुभ रंग माना गया है।
बालूचरी साड़ी के पल्लू की डिजाइन
कोई व्यक्ति हो या कला और स्थान, सभी का अपना इतिहास होता है और बालूचरी साड़ी का भी एक महान इतिहास है। बालूचरी कला का अस्तित्व में लाने वाले मुगल थे मगर इस कला को नया आयाम मुर्शिदाबाद के बालुचर गांव में मिला। पहले तो इस कला को जब स्पेशल ब्रोकेड वीविंग के माध्यम से कपड़े पर किया जाता था, तो मुगल रानियों, महलों और किलों के चित्रों का वर्णन नजर आता था। धीरे से इन साड़ियों के पल्लू और बॉर्डर पर पूरी राम कथा और श्री कृष्ण लीलाओं का चित्रण किया जाने लगा। इन साड़ियों की पहचान ही हिंदुओं की पौराणिक कथाओं से है। इनके पल्लू इतने खूबसूरत होते हैं कि किसी की भी निगाहें उन पर टिक जाएंगी। अब तो आपको इन साड़ियों के पल्लू में कुछ मॉडर्न स्टोरीज देखने को भी मिल जाएंगी।
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डोलाबेदी साड़ी के पल्लू की डिजाइन
डोलाबेदी साड़ी को जाला और डोबी सहित विभिन्न बुनाई तकनीकों का उपयोग करके तैयार किया जाता है और यह साड़ी ओडिशा राज्य में मनाए जाने वाले एक उत्सव ‘डोला’ से प्रेरित एक रचना है। इस साड़ी का नाम भी इसी उत्सव के ऊपर पड़ा है। इस साड़ी में आपको पुरी में निकलने वाली जगन्नाथ यात्रा के दर्शन हो जाएंगे। इसमें कछुए, तोते और अन्य जीवों के मोटिफ भी दिख जाएंगे। इन सभी के प्रतीकात्मक रूपांकनों के कारण इस साड़ी का पल्लू बहुत ही यूनिक और खूबसूरत लगता है।
कांथा वर्क वाली साड़ी के पल्लू की डिजाइन
बंगाल में कांथा एंब्रॉयडरी एक कला नहीं बल्कि एक परंपरा है, जो घर और घर के सामान को खूबसूरत बनाने के लिए की जाती है। इस एम्ब्रॉयडरी को पुराने चादरों और गद्दों पर किया जाता था। पुरानी साड़ी को नया सा दिखाने के लिए भी बंगाल की औरतें घर पर यह एम्ब्रॉयडरी करती थीं। मगर अब यह एंब्रॉयडरी साड़ी और अन्य कपड़ों पर भी की जाने लगी है। इस एंब्रॉयडरी के द्वारा साड़ी के पल्लू में लोक कथाओं, प्रथाओं, धार्मिक विचारों और महाकाव्य की विषयों एवं पात्रों का चित्रण किया जाता है। आपको इस साड़ी में जो कढ़ाई देखने को मिलेगी उसमें पशु, पक्षी और फूल आदि की बेल के दृश्य भी खूब को मिलेंगे।
मधुबनी साड़ी के पल्लू की डिजाइन
मधुबनी आर्ट अब विश्व प्रसिद्ध हो चुकी है। बिहार और झारखंड के छोटे से क्षेत्र मिथिलांचल से निकली यह लोक कला विश्व पटल पर अलग ही ख्याति प्राप्त कर चुकी है। घर की दीवारों पर गोबर, चूने और प्राकृतिक रंगों से की जाने वाली यह कला अब कागजों और कपड़ों पर भी की जाने लगे है। मधुबनी साड़ी के पल्लू में आपको राम कथा, सीता का जीवन, लव-कुश कथा और न जाने किन-किन कथाओं के बारे में देखने और जानने को मिलेगा। यह कला बहुत ही अनोखी है। आज भी इसे हाथों से ही किया जाता है और यही वजह है कि मधुबनी साड़ी काफी महंगी मिलती हैं।
पट्टचित्र साड़ी के पल्लू की डिजाइन
पट्टचित्र, ओडिशा का गांव रघुनाथपुर इस कला के लिए फेमस है। गांव में शायद ही कोई घर होगा, जहां आपको चित्रकार न मिले। मजे की बात तो यह हर घर में आपको नेशनल अवॉर्डी मिल जाएंगे। हालही में श्री अयोध्या के श्री राम लला मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा वाले दिन बॉलीवुड एक्ट्रेस आलिया भट्ट ने भी पट्टचित्र साड़ी पहनी थी। पारंपरिक रूप से यह कला पत्तों पर की जाती है तब ही इसे पट्टचित्र बालो जाता है। मगर अब आपको साड़ी की पल्लू और बॉर्डर पर भी पट्टचित्र आर्ट देखने को मिल जाएगी।
तो यह थीं कुछ साड़ियों जिनके पल्लुओं में आपको खूबसूरत कहानियां और कथाओं का चित्रण देखने को मिल जाएगा। आप उन्हें किसी अच्छे हैंडलूम शोरूम से खरीद सकती हैं और आपने साड़ी कलेक्शन में शामिल कर सकती हैं।
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