जब साड़ियों की बात आती है तो जहन में सबसे पहले बनारसी सिल्क साड़ी की ही छवि बनती है। जाहिर है, बनारसी साड़ी का क्रेज हम महिलाओं में कभी भी कम नहीं हो सकता है, क्योंकि इसकी खूबसूरती बेमिसाल है।
बनारसी साड़ी दिखने में जितनी सुंदर नजर आती है, उतना ही खूबसूरती इसका इतिहास भी है। आज इस आर्टिकल में हम हम आपको बनारसी साड़ी से जुड़े कुछ ऐसे रोचक तथ्य बताएंगे, जिन्हें जान कर इस साड़ी के प्रति आपका प्रेम और भी कहीं ज्यादा बढ़ जाएगा।
बनारसी साड़ी का इतिहास
सदियों से हम बनारसी साड़ी का नाम सुनते आ रहे हैं और हमसे पहले से यह बनारसी सिल्क साडि़यां अस्तित्व में हैं। अगर इतिहास के पन्नों को पलटा जाए तो पता चलता है कि बनारसी सिल्क साड़ी का जिक्र जातक कथाओं में मिलता है। ऐसी मान्यता है कि हिंदू देवी देवता भी सिल्क के कपड़ों का प्रयोग करते थे और यह सिल्क गंगा किनारे मिलने वाले सिल्कवर्म नामक कीड़ों से तैयार किया जाता था और इसी की बनी पोशाक देवी-देवताओं द्वारा धारण की जाती थी। शायद यही वजह है कि हिंदू धर्म में सिल्क के कपड़े को विशेष महत्व दिया गया है विशेष तौर पर बनारसी सिल्क का अलग महत्व है।
वैसे इतिहास में इस बात का जिक्र भी मिलता है कि भारत से पूर्व चीन में सिल्क का काम सबसे पहले अस्तित्व में आया और फिर भारत में गंगा के तट के आस-पास बसे कस्बों में सिल्क का काम किया जानें लगा।
भारत में सबसे ज्यादा बनारसी सिल्क को मुगल बादशाह अकबर के शासन काल के दौरान पहचान मिली। उस वक्त सिल्क के कपड़ों पर सोने और चांदी के धागों से काम किया जाता , जिससे वह बेशकीमती बन जाते और केवल राजघरानों तक ही सीमित रहते थे। इन्हीं सिल्क के कपड़ों से राजा-महाराजा और उनके परिवार के सदस्यों की पोशाकें तैयार होती थीं।
कैसे पड़ा बनारसी सिल्क नाम?
बनारसी सिल्क की साड़ियां और कपड़े सबसे ज्यादा मुबारकपुर, मऊ और खैराबाद में मौजूद कारखानों में बनते हैं। पहलें भी ऐसा ही होता था, मगर इन कपड़ों और साड़ियों को बेचने के लिए व्यापारियों को बनारस की हाट में आना पड़ता था। इसलिए इस सिल्क का नाम बनारसी पड़ा, जबकि वाराणसी में आज भी सिल्क का कपड़ा या साड़ी तैयार करने वाले न तो कारिगर हैं और न ही कारखाने।
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बनारसी साड़ी की खासियत
बनारसी साड़ी की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इस पर जरी का काम होता है। पहले के जमाने में जरी वर्क सोने या चांदी के तारों से किया जाता था। अमूमन बनारसी साड़ी के पल्लू या फिर साड़ी के बॉर्डर पर चांदी या सोने के तार से किया गया जरी वर्क मिल जाता था। हालांकि, आधुनिकता, बढ़ती हुई महंगाई और कस्टमर की डिमांड पर अब इस बनारसी सिल्क साड़ी पर जरी वर्क सोने या चांदी के तारों से नहीं बल्कि आम मेटल के तार से किया जाता है।
बनारसी साड़ी में आया बदलाव
फैशन इंडस्ट्री में आपको बनारसी साड़ी में अब ढेरों बदलाव नजर आएंगे। हालांकि, आज भी बनारसी साड़ी में खूबसूरत बूटियां या फिर सेल्फ डिजाइन ही सबसे लोकप्रिय है, मगर अब बनारसी सिल्क साड़ी में प्रिंट और अन्य लेटेस्ट ट्रेंडी वर्क भी बखूबी नजर आ रहे हैं, जो साड़ी की खूबसूरती को चार गुना बढ़ा देते हैं।
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