मैं सिर्फ सुना था कि मुंबई के लोग वड़ा पाव ऐसे खाते हैं, जैसे सांस ले रहे हैं। मगर गवाह बनी, जब खुद मुंबई जाना हुआ। दिल्ली में रहकर वड़ा पाव कई बार खाया था, लेकिन एक दोस्त ने कहा कि मुंबई का वड़ा पाव देश के किसी भी कोने के वड़ा पाव का कॉम्पिटिशन नहीं कर सकता है। उसकी बात एकदम सच निकली, जब मैंने मुंबई में पहली बार वड़ा पाव खाया, वो भी वहां, जहां वड़ा पाव की उत्पत्ति हुई थी।
मुंबई में आज हर जगह आपको वड़ा पाव के स्टॉल्स दिखेंगे। इसकी लोकप्रियता के चलते लोगों ने वड़ा पाव की फूड चेन भी खोलीं, लेकिन स्ट्रीट-साइड बने हुए वड़ा पाव का मजा भला कोई हाई-फाई बर्गर कैसे दे सकता है?
वड़ा पाव बहुत ही बेसिक इंग्रीडिएंट्स से तैयार किया जाता है। इसमें एक पाव होता है जिसके बीच में शेंगदाना की चटनी और बटाटा वड़ा भरा जाता है। भुनी मिर्च के साथ इसे सर्व किया जाता है। इस बेहतरीन स्नैक की तारीफ करने के लिए शायद मेरे पास शब्द कम पड़ जाएं, लेकिन आज इसकी तारीफ के साथ आपको इसके इतिहास के बारे में भी बताते हैं। यह तो तय है कि इसे बनाया किसी मुंबईकर ने ही, लेकिन इसे बनाने का आइडिया कैसे आया, चलिए वो इस आर्टिकल में आपको बताएं।
बालासाहब ठाकरे ने किया मुंबईवासियों से अनुरोध
...तो बात है सन 1960 की। बालासाहब परेशान थे कि मुंबई के लोगों को नौकरी के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है। उन्होंने देखा था कि साउथ इंडियन्स किस तरह से अपने रेस्तरां को स्थापित कर रहे हैं और उद्यमी बनकर अपना पालन-पोषण कर रहे हैं। बालासाहब ठाकरे ने ऐसा ही कुछ मुंबई के लोगों को करने के लिए कहा। उन्होंने महाराष्ट्रियन्स से अपील की कि वे लोग भी उद्यमी बनने के बारे में सोचें। बस उनकी यही बात एक महाराष्ट्रियन ने सोची, दिल से लगाई और बन गए महान उद्यमी।
कैसे बना वड़ा पाव?
जिन महानुभाव ने वड़ा पाव बनाया था उनका नाम अशोक वैद्य था। बालासाहब ठाकरे के शब्द सुनकर उन्हें लगा कि उन्हें कुछ नया करना चाहिए। उन्होंने 1966 में मुंबई के दादर स्टेशन के पास एक छोटा-सा स्टॉल खोला और वड़ा पाव बनाना शुरू किया।
दादर स्टेशन से हजारों लोग अक्सर काम के सिलसिले में परेल या वर्ली की तरफ जाते थे। उन्होंने बटाटा वड़ा, पाव और चटनी के साथ थोड़ा-सा एक्सपेरिमेंट किया और एक शानदार स्नैक तैयार कर लिया। उनके तैयार किए गए एक्सपेरिमेंट को देर नहीं लगी और वह कुछ ही दिनों में हिट हो गया।
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वड़ा पाव बना मुंबई का स्टेपल नाश्ता
1970 और 80 में वड़ा पाव की लोकप्रियता में बड़ी तेजी देखी गई। बालासाहब ठाकरे की पार्टी शिव सेना के लोगों ने भी जगह-जगह वड़ा पाव के स्टॉल लगाना शुरू किए। यह पसंदीदा स्नैक बन गया। कारण था कि यह सस्ता था और कम कीमत में आपका पेट भरता था। लोकल ट्रेन में सफर कर रहे यात्रियों के पास नाश्ता का समय नहीं होता था, तो वे स्टेशन के पास से इसे पैक करा लेते थे।
बालासाहब ठाकरे को पसंद था अशोक वैद्य की दुकान का वड़ा पाव
कुछ ही समय में अशोक वैद्य की दुकान में लोगों की भीड़ बढ़ने लगी। बालासाहब ठाकरे भी उनके वड़ा पाव के फैन थे। इतना ही नहीं, वैद्य की दुकान के वह रेगुलर कस्टमर में से एक थे। इसी के चलते दोनों की खास दोस्ती हो गई। उनकी दोस्ती इतनी खास थी कि बालासाहब ने बीएमसी के अधिकारियों को खास हिदायत दी थी कि वे कभी भी अशोक वैद्य को परेशान नहीं करेंगे।
जब मैकडॉनल्ड्स भी नहीं कर पाया वड़ा पाव की बराबरी
लेट 90s में अमेरिकी फास्ट-फूड चेन मैकडॉनल्ड्स ने इंडिया में कदम रखा था। मैकडॉनल्ड्स, मुंबई में जब शुरू हुआ था, तो लगा था कि यह वड़ा पाव की जगह ले लेगा, लेकिन इसके बर्गर वड़ा पाव की बराबरी नहीं कर पाए। लोगों का कहना था कि इसके इंग्रीडिएंट्स और बनाने की तकनीक जो वड़ा पाव से अलग थी, उसके बावजूद यह होमली फील नहीं देता जो वड़ा पाव देता था। इसके बाद 2000 में मुंबई के एक उद्यमी ने देखा कि वड़ा पाव उनके लिए कितना बड़ा अवसर हो सकता है और उन्होंने जंबोकिंग जैसी वड़ा पाव चेन की शुरुआत किया।
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वड़ा पाव पर बनी है डॉक्यूमेंट्री
क्या आपको पता है इस पॉपुलर स्नैक पर डॉक्यूमेंट्री तक बनी है। साल 2015 में, डायरेक्टर आलम्बयान सिद्धार्थ ने एक 5 मिनट की डॉक्यूमेंट्री बनाई थी। इसका नाम 'Vada pav Inc.' था, जिसमें उन्होंने अशोक वैद्य की जर्नी और वड़ा पाव की उत्पत्ति के बारे में बताया था। इतना ही नहीं, अगस्त 23 के दिन वर्ल्ड वड़ा पाव डे भी बनाया जाता है। मुंबईवासी जोर-शोर से इस दिन पर वड़ा पाव के मजे लेते हैं।
अशोक वैद्य का निधन 1998 में हुआ था, लेकिन उसके बाद भी उनकी लेगेसी को आगे बढ़ाया उनके बेटे ने। उनका बेटा नरेंद्र फैशन डिजाइनर बनना चाहता था, लेकिन उन्होंने अपने पिता के बिजनेस को आगे बढ़ाने के बारे में सोचा। आज भी दादर स्टेशन के प्लेटफॉर्म नंबर-1 पर उसी स्टॉल पर नरेंद्र गर्मागर्म वड़ा पाव बेच रहे हैं, ठीक उसी तरह से जैसे उनके पिता बेचा करते थे।
आज भी उन्हें लोगों से वैसा ही प्यार मिलता है, जैसे उनके पिता को मिलता था।
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Image Credit: Freepik
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