
बचपन से ही मम्मी ने मेन्यू को ऐसा सेट किया था कि वीकेंड में राजमा और छोले के अलावा कढ़ी भी बनाई जाती थी। पूरा परिवार शनिवार और रविवार घर पर होता था, तो खाने का दस्तरख्वान सजता था। यही आदत आज तक है। अब लेकिन वीकेंड का इंतजार नहीं होता। जब भी मन किया तो कढ़ी चावल बन जाते हैं। यह हममें से कई लोगों का कंफर्ट फूड है।
पंजाबी तो कढ़ी के लिए चर्चित भी हैं। सिर्फ राजमा और छोले ही नहीं, बल्कि इसकी रेसिपी बनाने में भी उन्हें महारथ हासिल है। मट्ठे से बनने वाली कढ़ी को आज अलग-अलग रूप में तैयार किया जाता है। कोई इसे बेसन से बनाना है, तो कोई दही से। अलग-अलग क्षेत्रों में इसे सर्व करने के तरीके और तड़के भी बदले, लेकिन इस रेसिपी के लिए सबके इमोशन एक ही रहे।
क्या आपको पता है सबकी पसंदीदा कढ़ी आखिर पहली बार बनाई कहां गई थी? बहुत सारे लोग सोचेंगे कि इसे भी पहली बार किसी पंजाबी शेफ ने बनाया होगा, लेकिन ऐसा नहीं है। आइए आज इस आर्टिकल में हम कढ़ी की उत्पत्ति से जुड़े कुछ तथ्य जानें।

सेलिब्रिटी शेफ कुणाल कपूर ने अपने एक पुराने इंस्टाग्राम हैंडल पर इस जानकारी को शेयर किया था। उन्होंने लिखा था कि वैसे तो पंजाबी इस रेसिपी से सबसे ज्यादा कनेक्ट करते हैं, लेकिन इसे पहली बाद राजस्थान में बनाया गया था। इसके बाद गुजरात और सिंध के अन्य क्षेत्रों में इसने लोकप्रियता हासिल की।
कढ़ी सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि इससे बाहर भी लोकप्रिय हुई है। मगर राजस्थान में इसकी उत्पत्ति मजबूरी के कारण हुई थी। ऐसा माना जाता है कि सब्जियों या अन्य खाद्य उत्पादों की कमी के कारण लोगों ने दूध से मक्खन निकालने के बाद मट्ठे से कढ़ी बनानी शुरू की। कई फूड हिस्टोरियन मानते हैं कि यह कढ़ी जो नॉर्थवेस्टर्न इंडिया से ताल्लुक रखती है कभी ब्रिटिश की फेवरेट करी हुआ करती थी। ब्रिटिश अधिकारी जब भारत आए, तो दक्षिण भारत की कुजीन से पहले उन्हें यह रेसिपी मिल चुकी थी और इसका जिक्र कई प्राचीन टेक्स्ट और बुक्स में हुआ है।
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इस तरी वाली रेसिपी को भारत के कई अलग-अलग क्षेत्रों में बनाया जाता है। हर क्षेत्र में तड़का और स्वाद दोनों अलग हो जाते हैं। जैसे महाराष्ट्र में इस रेसिपी में कच्चे आम भी पड़ते हैं। वहीं, गुजराती पके हुई आम से एक अद्भुत और स्वादिष्ट कढ़ी रस वो फजेतो तैयार करते हैं।
राजस्थान में पापड़, गट्टे और काली दाल के साथ फोग तैयार होता है। वहां तो समोसे और कचौड़ी (बाजार जैसी खस्ता कचौड़ी) के ऊपर भी कढ़ी डालकर खाई जाती है। पंजाबी इसमें फ्राई किए हुए पकोड़े डालते हैं, जो आमतौर पर नॉर्थ इंडिया के अन्य क्षेत्रों में भी फॉलो होता है। बिहारी कढ़ी में बड़ियां डाली जाती हैं। कुछ लोग इसमें खीरे को कद्दूकस करके बनाते हैं।
तमिल कुजीन में इसमें खूब सारी सब्जियां होती हैं। वे लोग लौकी से लेकर भिंडी तक इसमें मिलाते हैं। हैदराबाद में आपक नॉन-वेज कढ़ी देखने को मिल सकती है। बोहरा समुदाय के लोग इसमें मीटबॉल्स डालकर तैयार करते हैं। कुछ लोग कढ़ी में सिर्फ दही, इमली या फिर कोकम शामिल करके उसे खट्टा बनाते हैं।
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शेफ कुणाल ने अपने पोस्ट में बताया था कि पुराने जमाने में कढ़ी में मक्के का आटा इस्तेमाल होता था, बेसन नहीं। आज तो लोग इसे गाढ़ा करने के लिए बेसन का इस्तेमाल करते हैं। वहीं इसका तड़का इसे और भी स्वादिष्ट बनाता है। तड़की सही और अच्छा हो, तो आपकी कढ़ी खट्टी और स्पाइसी बनती है। महाराष्ट्र में लोग राई, जीरा, सूखी लाल मिर्च, लहसुन आदि का तड़का लगाते हैं।
साउथ इंडिया में करी पत्ता, राई और सूखी लाल मिर्च तड़के में इस्तेमाल होती है। नॉर्थ इंडिया में कई जगहों पर मेथी और साबुत धनिये से भी कढ़ी में तड़का लगाया जाता है। गुजराती वर्जन थोड़ा-सा मीठा होता है और वहीं राजस्थान के लोग कढ़ी को खूब खट्टा और तीखा रखते हैं।
कितना दिलचस्प इतिहास है ना आपकी पसंदीदा कढ़ी का? अब इतनी बातें करके तो आपका मन भी इसके खाने का किया होगा, तो वीकेंड में इस बार कढ़ी चावल से मन बहलाएं।
हम इसी तरह आपको भारत के साथ-साथ ग्लोबल कुजीन के किस्से कहानियां बताते रहेंगे। अगर किसी खास रेसिपी के बारे में आप भी बताना चाहें, तो हमें कमेंट करके जरूर बताएं। अगर यह लेख पसंद आया, तो इसे लाइक करें और ऐसे ही लेख पढ़ने के लिए Herzindagi.com पर क्लिक करें।
Image Credit: Freepik
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