'अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस' (International Women's Day) के अवसर पर महिला सशक्तिकरण की आवाज बुलंद करने के लिए सभी मंचों पर प्रयास जारी है। ऐसे में हर मोर्चे पर महिलाओं के पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने की पहल की सराहना भी लाजमी है, लेकिन इन सब के बीच हम कहीं न कहीं महिलाओं के मानसिक सेहत की बात करना भूल जाते हैं। जबकि असल में दोहरी जिम्मेदारियों का बोझ झेलती बहुत सारी महिलाएं आज मानसिक अवसाद का शिकार हो रही हैं, जिसे मेडिकल भाषा में 'सुपर वुमन सिंड्रोम' (Superwoman syndrome) कहते हैं।
इस आर्टिकल में हम इसी 'सुपर वुमन सिंड्रोम' की बात कर रहे हैं कि आखिर किस तरह से यह तेजी से महिलाओं को अपना शिकार बना रहा है। दरअसल, हमने इस बारे में मेंटल थेरेपिस्ट श्यामली श्रीवास्तव से बातचीत की और उनसे मिलने वाली जानकारी यहां आपके साथ शेयर कर रहे हैं। श्यामली श्रीवास्तव कहती हैं कि घर-परिवार की सभी जिम्मेदारियों के बीच सामंजस्य बैठाने के चक्कर में ज्यादातर महिलाएं इसका जाने-अनजाने शिकार बन जाती हैं।
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श्यामली श्रीवास्तव इस बारे में विस्तार से बताते हुए कहती हैं कि घर-परिवार की जिम्मेदारियों का भार हमेशा से महिलाओं पर रहा है। वहीं अब जबकि ज्यादातर महिलाएं कामकाजी हो चुकी हैं, ऐसे में घर के साथ बाहर की जिम्मेदारियां भी उसके कंधों पर आ पड़ी हैं। देखा जाए तो महिलाएं काफी हद तक इसे निभाने की कोशिश भी करती हैं, जिन्हे समाज 'सुपर वुमन’ का तमगा देता है। लेकिन वहीं यह 'सुपर वुमन’ का तमगा महिलाओं के लिए कब बोझ बन जाता है, इसका पता भी नहीं चलता है। फिर जब कभी महिलाएं इन जिम्मेदारियों को निभाने में खुद को असमर्थ पाती हैं तो उसका भी पछतावा उन्हें सताने लगाता है।
श्यामली श्रीवास्तव आगे बताती हैं कि इस तरह से जिम्मेदारियों के साथ खुद को बेहतर साबित करने का दबाव धीरे-धीरे महिलाओं के मन-मस्तिष्क पर इस कदर हावी हो जाता है कि वो 'सुपर वुमन सिंड्रोम' का शिकार बन जाती हैं। इसलिए इससे बचाव के लिए जरूरी है कि महिलाएं जिम्मेदारी के अतिरिक्त बोझ के गर्त में समाने से पहले इसके खतरे को जान और समझ पाए। इसके लिए आपको इस इस सिंड्रोम के लक्षणों को जानना होगा।
बात करें इसके लक्षणों की तो इसका शरीर पर मानसिक और शारीरिक दोनों ही असर देखने को मिलता है। जैसे कि काम के अतिरिक्त दबाव के कारण मूड चिड़चिड़ा होना, बेहतर न कर पाने की स्थिति में तनावग्रस्त हो जाना या मानसिक अवसाद महसूस करना जहां इसमें आम हो जाता है। वहीं सिर में भारीपन या दर्द होना, अचानक से दिल की धड़कने बढ़ जाना, सुस्ती बने रहना जैसे शारीरिक लक्षण भी दिखाई पड़ सकते हैं। ऐसे किसी भी लक्षण दिखने पर सबसे पहले तो आपको किसी मनोचिकित्सक से संपर्क करना चाहिए, जो आपको इस मानसिक अवसाद से बाहर निकलने के लिए उचित मार्गदर्शन करेंगे।
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इसके अलावा अगर महिलाएं अपने रख-रखाव और दैनिक जीवन में निम्न बातों का ध्यान रखें तो इस सिंड्रोम से आसानी से बच सकती हैं।
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