Women's Day 2024: 'सुपर वुमन सिंड्रोम' कहीं छीन न ले आपका सुकून, एक्सपर्ट से जानें इससे बचने के उपाय

 'सुपर वुमन’ का तमगा महिलाओं के लिए कब बोझ बन जाता है, इसका पता भी नहीं चलता है और घर-परिवार की सभी जिम्मेदारियों के बीच सामंजस्य बैठाने के चक्कर में ज्यादातर महिलाएं इसका जाने-अनजाने शिकार बन जाती हैं।

 
superwoman syndrome symptoms

'अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस' (International Women's Day) के अवसर पर महिला सशक्तिकरण की आवाज बुलंद करने के लिए सभी मंचों पर प्रयास जारी है। ऐसे में हर मोर्चे पर महिलाओं के पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने की पहल की सराहना भी लाजमी है, लेकिन इन सब के बीच हम कहीं न कहीं महिलाओं के मानसिक सेहत की बात करना भूल जाते हैं। जबकि असल में दोहरी जिम्मेदारियों का बोझ झेलती बहुत सारी महिलाएं आज मानसिक अवसाद का शिकार हो रही हैं, जिसे मेडिकल भाषा में 'सुपर वुमन सिंड्रोम' (Superwoman syndrome) कहते हैं।

इस आर्टिकल में हम इसी 'सुपर वुमन सिंड्रोम' की बात कर रहे हैं कि आखिर किस तरह से यह तेजी से महिलाओं को अपना शिकार बना रहा है। दरअसल, हमने इस बारे में मेंटल थेरेपिस्ट श्यामली श्रीवास्तव से बातचीत की और उनसे मिलने वाली जानकारी यहां आपके साथ शेयर कर रहे हैं। श्यामली श्रीवास्तव कहती हैं कि घर-परिवार की सभी जिम्मेदारियों के बीच सामंजस्य बैठाने के चक्कर में ज्यादातर महिलाएं इसका जाने-अनजाने शिकार बन जाती हैं।

क्या है 'सुपर वुमन सिंड्रोम'?

श्यामली श्रीवास्तव इस बारे में विस्तार से बताते हुए कहती हैं कि घर-परिवार की जिम्मेदारियों का भार हमेशा से महिलाओं पर रहा है। वहीं अब जबकि ज्यादातर महिलाएं कामकाजी हो चुकी हैं, ऐसे में घर के साथ बाहर की जिम्मेदारियां भी उसके कंधों पर आ पड़ी हैं। देखा जाए तो महिलाएं काफी हद तक इसे निभाने की कोशिश भी करती हैं, जिन्हे समाज 'सुपर वुमन’ का तमगा देता है। लेकिन वहीं यह 'सुपर वुमन’ का तमगा महिलाओं के लिए कब बोझ बन जाता है, इसका पता भी नहीं चलता है। फिर जब कभी महिलाएं इन जिम्मेदारियों को निभाने में खुद को असमर्थ पाती हैं तो उसका भी पछतावा उन्हें सताने लगाता है।

what is superwoman syndrome

कैसे करें इस सिंड्रोम की पहचान

श्यामली श्रीवास्तव आगे बताती हैं कि इस तरह से जिम्मेदारियों के साथ खुद को बेहतर साबित करने का दबाव धीरे-धीरे महिलाओं के मन-मस्तिष्क पर इस कदर हावी हो जाता है कि वो 'सुपर वुमन सिंड्रोम' का शिकार बन जाती हैं। इसलिए इससे बचाव के लिए जरूरी है कि महिलाएं जिम्मेदारी के अतिरिक्त बोझ के गर्त में समाने से पहले इसके खतरे को जान और समझ पाए। इसके लिए आपको इस इस सिंड्रोम के लक्षणों को जानना होगा।

बात करें इसके लक्षणों की तो इसका शरीर पर मानसिक और शारीरिक दोनों ही असर देखने को मिलता है। जैसे कि काम के अतिरिक्त दबाव के कारण मूड चिड़चिड़ा होना, बेहतर न कर पाने की स्थिति में तनावग्रस्त हो जाना या मानसिक अवसाद महसूस करना जहां इसमें आम हो जाता है। वहीं सिर में भारीपन या दर्द होना, अचानक से दिल की धड़कने बढ़ जाना, सुस्ती बने रहना जैसे शारीरिक लक्षण भी दिखाई पड़ सकते हैं। ऐसे किसी भी लक्षण दिखने पर सबसे पहले तो आपको किसी मनोचिकित्सक से संपर्क करना चाहिए, जो आपको इस मानसिक अवसाद से बाहर निकलने के लिए उचित मार्गदर्शन करेंगे।

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कैसे करें 'सुपर वुमन सिंड्रोम' से बचाव

इसके अलावा अगर महिलाएं अपने रख-रखाव और दैनिक जीवन में निम्न बातों का ध्यान रखें तो इस सिंड्रोम से आसानी से बच सकती हैं।

  • सुपर वुमन सिंड्रोम' (Superwoman syndrome) में महिलाएं खुद पर परफेक्ट होने का दबाव महसूस करती हैं, ऐसे में इससे बचने के लिए जरूरी है कि आप परफेक्शन के चक्कर में न पड़े। आप सिर्फ अपने काम को पूरे मन से करें और बाकि चिंता छोड़ दें।
  • हर बात के लिए खुद को दोषी ठहराना छोड़ दें। जैसे कि समय पर काम न पूरा हो पाना या काम को सही ढंग से न कर पाने की स्थिति में खुद को दोषी न ठहराएं।
  • काम के अतिरिक्त दबाव से बचने के लिए सबसे पहले आपको अपनी प्राथमिकता निर्धारित करनी होगी और उसके अनुसार जरूरी कार्यों के लिए समय निर्धारित करें।
  • अतिरिक्त दबाव से बचाव के लिए अनावश्यक कार्यों को न कहना भी जरूरी है। इससे न सिर्फ आपका समय बचेगा और बल्कि अनावश्यक कार्यों में खपत होने वाली ऊर्जा भी बचेगी, जिससे आपको बेहतर महसूस होगा।
  • सभी कार्यों की जिम्मेदारी खुद पर लेने से बेहतर होगा कि आप घर के बाकी सदस्यों के साथ उन्हें बांट लें। ऐसा करने में आपको शर्म या झिझक नहीं होना चाहिए, क्योंकि यह आपके मानसिक सेहत पर सीधे तौर पर असर डालता है।
  • घर-परिवार की जिम्मेदारियों के बीच खुद के लिए भी थोड़ा समय जरूर निकालें। असल में यह मी टाइम आपके लिए बेहद जरूरी है, जब आप काम का तनाव भूलकर कुछ खुशनुमा पल जी सकें।
Me Time for woman
  • योग और व्यायाम जैसी मानसिक गतिविधियां आपको मानसिक तौर पर सेहतमंद रखने में बेहद मददगार होती हैं। इसलिए हर रोज इनका अभ्यास जरूर करें।
  • सिंगिग, डांसिंग, पेंटिंग या जिस काम को करने में रुचि हो, उसके लिए हर रोज कुछ वक्त जरूर निकालें। इन कार्यों को करने से आपको जितना बेहतर महसूस होगा वो आपकी मानसिक सेहत के लिए उतना ही लाभकारी होगा।
  • इस तरह से आप छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखकर महिलाएं सुपर वुमन सिंड्रोम' जैसे मानसिक अवसाद का शिकार होने बच सकती हैं।

उम्मीद करते हैं कि सेहत से जुड़ी यह जानकारी आपके लिए उपयोगी साबित होगी। अगर यह जानकारी आपको अच्छी लगी हो तो इसे अपने दोस्तों और परिचितों के साथ शेयर करना न भूलें। साथ ही अपनी राय हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।

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