सोशल मीडिया ने दुनिया भर के लोगों को जोड़ा हुआ है। आप खुद को सोशल मीडिया के माध्यम से कनेक्ट करके सब कुछ पता कर सकते हैं लेकिन हर आविष्कार के साथ वरदान और अभिशाप दोनों होते हैं। सोशल मीडिया के आगमन ने लोगों को महत्वपूर्ण विषयों के बारे में जागरूकता फैलाने के साथ-साथ ही गलत सूचना और ट्रोल से निपटने में भी मदद की है। फोर्ब्स में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया में कम से कम 4.9 अरब लोग सोशल मीडिया का उपयोग करते हैं। इनमें से, भारत में 465 मिलियन से अधिक उपयोगकर्ता हैं पर भारत में एक ऐसा समय भी था जब लोग दुनिया भर के मुख्य मुद्दों के बारे में भी बात करने से घबराते थे लेकिन अब आप कुछ ही क्लिक में छोटी से छोटी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
दशकों से सोशल मीडिया LGBTQ+ समुदाय के अधिकारों के लिए लड़ने वाले कार्यकर्ताओं और लोगों को जोड़ने के लिए एक क्रांतिकारी प्लेटफॉर्म साबित हुआ है। सोशल मीडिया ने छोटे आंदोलनों को वैश्विक अभियानों में बदलने में मदद की है। भारत की पहली ट्रांसजेंडर फोटो जर्नलिस्ट जोया लोबो और एक्शन एड एसोसिएशन में संगठनात्मक प्रभावशीलता की निदेशक दीपाली शर्मा के साथ हरजिंदगी की बातचीत हुई। इस बातचीत में हमने यह जानने का प्रयास किया कि कैसे भारत में LGBTQ+ आंदोलन को बढ़ाने में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की भूमिका रही है।
जोया लोबो और दीपाली शर्मा ने हमें बताया कि सोशल मीडिया ने क्वीर समुदाय के लोगों को जुड़ने में मदद की है। इसने समुदायों को दृश्यता बढ़ाने और उनके संघर्षों और मुद्दों को सामने लाने में मदद की है। इसके साथ ही उनका मानना है कि सोशल मीडिया ने हमारे समाज को अधिक समावेशी बना दिया है और LGBTQ+ समुदाय की स्वीकृति को बढ़ावा देने के लिए एक माध्यम के रूप में काम किया है। सोशल मीडिया एक ऐसा प्लेटफॉर्म है जो क्वीर समुदाय का समर्थन करने के लिए और उससे जुड़े हुए विषयों पर चर्चा करने का अवसर देता है। जोया ने बताया कि कई ब्रांड्स क्वीर समुदाय का समर्थन करने के लिए भी सोशल मीडिया का उपयोग करते हैं लेकिन कई कई ब्रांड्स ऐसा केवल शो करते हैं कि वह LGBTQ+ समुदाय को बढ़ावा देना चाहते हैं बल्कि वह अपने ऑर्गनाइजेशन में LGBTQ+ समुदाय के लोगों को काम भी नहीं देते हैं।
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जोया लोबो ने बताया कि कई कंटेंट क्रिएटर्स क्वीर-फ्रेंडली कंटेंट पोस्ट कर रहे हैं जो LGBTQ+ समुदाय को गलत सोच से लड़ने में मदद कर रहा है। हालांकि, उन्होंने कई लोगों के साथ खुद को क्वीयर कहकर सामग्री पोस्ट करने के मुद्दे पर प्रकाश भी डाला।
उन्होंने यह भी कहा कि लोगों को ऐसी सामग्री पोस्ट करनी चाहिए जो अन्य लोगों को समुदाय के बारे में जानकारी दे और समलैंगिक लोगों को उनकी पहचान के साथ उनके संघर्षों को भी दिखाने में में मदद करे। उन्होंने कंटेंट क्रिएटर्स और उनके द्वारा बनाए जा रहे कंटेंट के पीछे के कारणों को समझने के लिए उनके काम पर सवाल उठाने की जरूरत पर भी जोर दिया क्योंकि उनके पास बड़े पैमाने पर फॉलोवर्स हैं, वे कई लोगों को सकारात्मक और नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकते हैं।
वहीं दीपाली शर्मा ने हमें बताया कि अगर कोई यूजर lgbq+ से संबंधित सही पोस्ट डालता है, तो उसमें जानकारी होती है जो जागरूकता फैलाने में योगदान देती है। जबकि प्लेटफॉर्म बहुत सारी गलत सूचनाओं से भरे हुए हैं, लेकिन lg q+ से संबंधित सही जानकारी डालने वाले पेज और पोस्ट भारत में प्राइड मूवमेंट को आकार देने में मदद करते हैं।
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जोया लोबो ने हमें बातचीत के दौरान बताया कि सोशल मीडिया पर क्रिएटर जब जेंडर आइडेंटिटी और सेक्शुअल ओरिएंटेशन के बारे में बात करते हैं तो क्वीर लोगों को इंटरनल होमोफोबिया से उबरने में मदद मिलती है। दीपाली शर्मा ने हमें बताया कि सोशल मीडिया ने समाज में LGBTQ+ समुदाय के लोगों को ऊपर उठाने में मदद की है। उन्होंने कहा कि LGBTQ+ समुदाय के लोगों को अपने संघर्षों को बताने में हिचकिचाते थे पर अब सोशल मीडिया पर उन्हें अपनी बात रखने का मौका मिलता है।
शर्मा ने कहा कि सोशल मीडिया ने समाज को समावेशिता की ओर बढ़ने में मदद की है। उन्होंने कहा कि जहां क्विअर व्यक्तियों को शुरुआती चरण में अपने संघर्षों के बारे में चर्चा करने में बहुत मुश्किल हो सकती है, वहीं वे सीखने और अपने संदेहों का उत्तर पाने के लिए इंटरनेट पर एक सुरक्षित स्थान पा सकते हैं। सोशल मीडिया का उपयोग सभी वर्ग के लोग करते हैं और हम हर रोज ऐसे वीडियो और पोस्ट भी देखते हैं जिसमें LGBTQ+ समुदाय के लोगों की लैंगिक पहचान, संघर्ष और उनकी लाइफ के बारे में जानकारी दी गई होती है लेकिन हम अभी भी LGBT समुदाय के स्वीकृति के लिए संघर्ष कर रहे हैं, और आगे एक लंबी यात्रा है, लेकिन सोशल मीडिया मदद कर रहा है।
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जोया लोबो ने हमें बताया कि जब उनका वीडियो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर वायरल हुआ कि वह भारत की पहली ट्रांसजेंडर फोटो जर्नलिस्ट हैं, तो वह भीख मांगकर रोजी-रोटी कमाती हैं, कई लोगों ने कमेंट की, "उसे भीख क्यों मांगनी पड़ रही है?" जोया ने बताया कि उन लोगों को नहीं पता था कि भारत में ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए रोजगार के सीमित विकल्प हैं। देश में कुछ संगठन ट्रांसजेंडर-फ्रेंडली रहे हैं, किसी भी व्यक्ति को जीवित रहने के लिए भीख नहीं मांगनी पड़ेगी या सेक्स वर्कर नहीं बनना पड़ेगा। "क्या हुआ अगर मैं एक ट्रांस हूं, मैं भी एक इंसान हूं," उसने कहा।
लोबो ने मुंबई के एक प्रसिद्ध ज्वेलरी स्टोर पर जाने के अपने अनुभव को भी हमारे साथ साझा किया और बताया कि जहां कर्मचारियों ने उनका सम्मान के साथ अभिवादन नहीं किया। हालांकि, जब उसने अपने संगठन से एक पहचान पत्र पहना, तो लोगों तब उनका स्वागत किया। एक अन्य घटना में उन्होंने बताया कि एक प्रसिद्ध फूड आउटलेट चेन, जहां एक स्टाफ सदस्य ने उन्हें फटकार लगाई। जोया लोबो ने कहा, "मैंने अपने जब अंग्रेजी में बोलना शुरू किया तो वह कुछ नहीं कह पाया।" जागरूकता और स्वीकृति की कमी के अलावा, जोया लोबो ने बात पर प्रकाश भी डाला कि वर्ग विभाजन और रूढ़िवादिता भी LGBTQ+ समुदाय को बहिष्कृत करने में एक भूमिका निभाते हैं। लोबो ने यह भी कहा कि वह इन ट्रोल्स का जवाब देने से घबराती नहीं हैं।
वहीं दिपाली शर्मा ने बताया कि इन ट्रोल्स को पीछे छोड़कर आगे बढ़ने में ही मुंहतोड़ जवाब साबित होता है। उन्होंने यह भी कहा कि हमें एक समाज के रूप में समुदाय के सशक्तिकरण की दिशा में काम करना है ताकि उनके पास शिक्षित और रोजगार पाने के साधन हों।
एक्शन एड का प्रतिनिधित्व करते हुए दीपाली शर्मा ने तमिलनाडु में काम किया है और इसे भारत में ट्रांसजेंडर कल्याण बोर्ड के साथ भारत के कुछ राज्यों में से एक बना दिया है। संघर्ष लंबा हो सकता है, लेकिन सही प्लेटफॉर्म तेजी से सकारात्मक परिणाम प्राप्त करने में हमारी सहायता कर सकते हैं।
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