प्राइड मंथ की शुरूआत हो चुकी है। यह महीना LGBTQ+ समुदाय को समर्पित है। आज भी इस समुदाय से जुड़े लोगों के बारे में बिना सोचे-समझें उनके व्यक्तिव पर सवाल उठा देते हैं। इसका कारण सरकार और समाज द्वारा इन लोगों को उनके अधिकार से वंचित रखना है।
आज भी समाज इन लोगों को मुख्य धारा का हिस्सा नहीं मानता है। समाज इन्हें अपशब्द और गलत नजरिए से देखता है। लोगों के दिमाग में इस समुदाय के लिए तरह-तरह के सवाल आते हैं। आज इस आर्टिकल से हम आपकोLGBTQ+समुदाय के बारे में पूछे जाने वाले कुछ सामान्य सवालों के बारे में बताएंगे।
कैसे पता चलता है लेस्बियन, गे और ट्रांसजेंडर?
LGBTQ+ समुदाय से जुड़ा एक सामान्य सवाल यह है कि उन्हें कैसे पता चलता है कि वह लेस्बियन, गे और ट्रांसजेंडर हैं? इसके बारे में सभी लोगों की अलग-अलग राय है।
कुछ सामान्य जवाबों में शामिल है- कुछ लोग छोटी उम्र से ही समान लिंग के लोगों के प्रति आकर्षित होते हैं। वहीं, अन्य अडल्टहुड में अपनी पहचान समझ पाते हैं।
कुछ ट्रांसजेंडर को कम उम्र में यह महसूस होता है कि उनकी जेंडर आइडेंटिटी अपने पेरेंट्स और समाज की एक्सपेक्टेशन से मैच नहीं करती हैं। हालांकि, कई मामलों में सेक्सुयालिटी और जेंडर को समझने में काफी समय लग सकता है।
क्या जेंडर आइडेंटिटी और सेक्सुअल ओरिएंटेशन बदली जा सकती है?
जेंडर आइडेंटिटी और सेक्सुअल ओरिएंटेशन को बदला नहीं जा सकता है। अगर कोई ऐसा करता है तो यह ह्यमून राइट्स के खिलाफ है। साथ ही इसके कारण ट्रॉमा जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
यानी समान लिंग के प्रति आकर्षित होने के कारण उन्हें साइकियाट्रिक थेरेपी के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। आपको बता दें कि LGBTQI+ होना कोई बीमारी नहीं है। इसलिए इसके लिए किसी भी प्रकार का कोई इलाज नहीं होता है।(एलजीबीटी पर बनी बॉलीवुड फिल्म)
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क्या यह समुदाय हमेशा से मौजूद है?
इस समुदाय से जुड़ा यह भी एक सामान्य सवाल है कि क्या यह लोग हमेशा से ही समाज का हिस्सा थे? यह कोई ट्रेंड नहीं है, जिस पर कुछ समय के लिए बात की जाए। LGBTQI+ समुदाय के लोग प्राचीन काल से ही मौजूद हैं।
दक्षिण अफ्रीका की रॉक पेंटिंग से लेकर अर्ली ओटोमन लिटरेचर तक, समय-समय पर इस समुदाय के लोगों के साक्ष्य मिले हैं। इसलिए आज कुछ देशों में तीसरे लिंग को मान्यता दी गई है। वहीं, अन्य जगह इसके लिए लड़ाई जारी है।
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क्यों जून में मनाया जाता है प्राइड मंथ?
साल 1969 में 28 जून को स्टोनवेल विद्रोह हुआ था। इसमें पुलिस और LGBTQI+ समुदाय के बीच 6 दिन तक लड़ाई जारी थी, जिसमें कई लोगों को अपनी जान गवानी पड़ी। इसलिए जून के महीने को प्राइड मंथ कहा जाता है और सड़कों पर परेड निकाली जाती है।
इस समुदाय कोा प्रतिनिधित्व करने के लिए अलग झंडा भी बनाया है, जिसमें 6 रंग होते हैं। इसे रेनबो फ्लैग कहा जाता है। पहले इस फ्लैग में 8 रंग थे।
आखिर में इंसान को इंसान समझा जाए तो बेहतर है। लोगों की भावनाओं पर सवाल उठाने के बजाय उन्हें समझा जाए। वरना लोगों का मानवता से हमेशा के लिए विश्वास उठ जाएगा।
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Image Credit: Freepik
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