
आजकल भारत में लाखों लोग प्राइवेट सेक्टर्स में नौकरी करते हैं। ये नौकरियां आपको अच्छी सैलरी और करियर में आगे बढ़ने के मौके तो देती हैं। लेकिन, प्राइवेट नौकरियों में स्ट्रेस और डेडलाइन बहुत ज्यादा होती हैं, जिसके चलते कर्मचारियों को अक्सर ओवरटाइम भी करना पड़ता है और उसके लिए कोई पैसा भी नहीं मिलता।
वहीं, अब एक खबर सामने आ रही है कि कर्नाटक राज्य में कर्नाटक शॉप्स एंड कमर्शियल एस्टेब्लिशमेंट्स एक्ट 1961 में संशोधन किया जा रहा है। इस बदलाव के बाद, राज्य में काम करने वाले सभी कर्मचारियों को अब 9 की जगह 12 घंटे तक ऑफ़िस में काम करना पड़ सकता है। हालांकि, लोग इसका विरोध कर रहे हैं।
इस सब के बीच, आपका यह जानना बहुत जरूरी है कि अगर आप किसी कंपनी में नौकरी करते हैं, तो आपके पास क्या-क्या अधिकार होते हैं। कई बार लोग सालों तक प्राइवेट सेक्टर्स में काम तो कर लेते हैं, लेकिन उन्हें अपने हकों की रक्षा के लिए बनाए गए कानूनों का पता तक नहीं होता है।

भारत में हर प्राइवेट नौकरी करने वाले कर्मचारी को इन 7 अधिकारों के बारे में पता होना चाहिए। ये अधिकार भारतीय श्रम कानूनों (Indian Labour Laws) जैसे Factories Act, Shops and Establishment Act, Payment of Wages Act, Maternity Benefit Act जैसे कानूनों में दिए गए हैं।
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समान पारिश्रमिक अधिनियम 1976 के तहत, हर ऑफ़िस में पुरुष और महिलाओं का वेतन एक जैसा होना जरूरी है। अगर दोनों एक जैसी जिम्मेदारी निभा रहे हैं और उतनी ही मेहनत से काम कर रहे हैं, तो सैलरी भी समान मिलनी चाहिए। यह कानून इसलिए बनाया गया था ताकि जेंडर के आधार पर किसी को कम पैसा न मिले। अगर आपको लगता है कि आपकी कंपनी में आप और आपके साथ काम करने वाले पुरुष कलीग्स एक जैसा काम करते हैं, लेकिन आपको पैसा कम मिलता है, तो आप इसके खिलाफ आवाज उठा सकती हैं।
वेतन भुगतान अधिनियम 1936 के तहत, हर कर्मचारी को महीने की 7 तारीख तक सैलरी मिल जानी जरूरी है। आम तौर पर भारत में कई कंपनियां कर्मचारियों को 1 से 7 तारीख के बीच में वेतन देती हैं। अगर 7 तारीख तक आपको वेतन नहीं मिलता है, तो आप HR से बात कर सकते हैं। अगर वे सही जवाब नहीं दे रहे हैं, तो आप अपने जिले के लेबर कमिश्नर ऑफिस में जाकर शिकायत दर्ज कर सकते हैं। आप चाहें तो ई-श्रम पोर्टल या राज्य के लेबर डिपार्टमेंट की वेबसाइट पर भी ऑनलाइन शिकायत कर सकते हैं।
मातृत्व लाभ अधिनियम 1961 (Maternity Benefit Act 1961) के अनुसार, अगर कोई महिला नौकरी करती है और वह माँ बनने वाली है, तो उसे 6.5 महीने (26 हफ्ते) तक की सैलरी के साथ छुट्टी लेने का हक है। इसे मैटरनिटी लीव कहते हैं। यह छुट्टी गर्भवती महिला कर्मचारी डिलीवरी से पहले या बाद में कभी भी ले सकती है। आम तौर पर यह अवकाश उन महिला कर्मचारियों को मिलता है जिन्होंने कंपनी में पिछले 12 महीनों में कम से कम 80 दिन काम किया हो। यह छुट्टी पहले दो बच्चों पर लागू होती है।
ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम 1972 के मुताबिक़, अगर आप किसी कंपनी में लगातार 5 साल या उससे ज़्यादा समय तक काम करते हैं और जब आप नौकरी छोड़ते हैं या रिटायर होते हैं, तो आपको एकमुश्त बोनस की तरह एक रकम दी जाती है, जिसे ग्रेच्युटी कहते हैं। यह कंपनी की तरफ से आपकी सेवा के लिए दिया जाने वाला एक इनाम होता है। आपको बता दें कि ग्रेच्युटी की रकम पूरी तरह से टैक्स-फ्री होती है।

ग्रेच्युटी कैसे तय होती है?
ग्रेच्युटी = (अंतिम सैलरी × 15 / 26) × कंपनी में कुल काम किए गए साल
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भारतीय श्रम कानूनों और कंपनी की नीतियों के हिसाब से, जब आप किसी नई कंपनी को ज्वाइन करते हैं, तो कंपनी की तरफ से आपको एक ऑफर लेटर और अपॉइंटमेंट लेटर मिलना जरूरी होता है। वहीं, अपॉइंटमेंट लेटर में साफ-साफ आपके रोल (पद), सैलरी, उसके साथ मिलने वाले अलाउंस (भत्ते), काम के घंटे और नोटिस पीरियड के बारे में लिखा होना जरूरी होता है। अगर आपके लेटर में कोई जानकारी नहीं लिखी है, तो आप HR से बात करके उसे लिखवा सकते हैं। ऐसा करने से भविष्य में अगर कोई विवाद होता है, तो आप इसे सबूत के तौर पर दिखा सकते हैं।
भारतीय श्रम कानूनों और कंपनी की नीतियों के अनुसार, हर कर्मचारी को काम से छुट्टी लेने का क़ानूनी हक होता है। ये छुट्टियां मानसिक या शारीरिक स्वास्थ्य को ठीक रखने के लिए, या पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाने के लिए ली जा सकती हैं। प्राइवेट कंपनियों में कर्मचारियों को कैजुअल लीव (Casual Leave), सिक लीव (Sick Leave), अर्न्ड लीव (Earned Leave) और त्योहारों पर मिलने वाली छुट्टियां दी जाती हैं। वहीं, अर्न्ड लीव में आपको बिना काम किए भी सैलरी मिलती है, लेकिन ये छुट्टियां पहले से प्लान करके ली जाती हैं। इसके अलावा, कंपनियों को 26 जनवरी, 15 अगस्त और 2 अक्टूबर की छुट्टी देना अनिवार्य होता है। अगर कोई कंपनी अपने कर्मचारी से छुट्टियों के दौरान जबरदस्ती काम करवाती है, तो इसे कानून का उल्लंघन माना जाता है।
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Image Credit- freepik, jagran
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