आखिर क्यों मंदिर में प्रवेश के दौरान महिलाओं को साष्टांग प्रणाम की होती है मनाही

साष्टांग प्रणाम को श्रद्धा का प्रतीक माना जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि महिलाओं को क्यों नहीं करना चाहिए यह प्रणाम और ज्योतिष में इसकी मनाही क्यों है। 

 

shashtang pranam is prohibited to women astrology

हिंदू धर्म को सबसे पुराने धर्म के रूप में जाना जाता है। इसी धर्म में दूसरों को सम्मान देने के लिए प्रणाम या नमस्कार जैसी प्रथा है। ऐसी मान्यता है कि जब भी हम किसी व्यक्ति को सम्मान देते हैं तो उसे झुककर, हाथ जोड़कर, दंडवत या बैठकर प्रणाम अवश्य करते हैं।

यही नहीं मंदिर में दर्शन के दौरान भी ईश्वर को प्रणाम करना मुख्य होता है। ऐसा माना जाता है कि जब हम भगवान् के सामने नत मस्तक होकर प्रणाम करते हैं तब ये उनके प्रति भक्ति का सबसे बड़ा संकेत होता है।

प्रणाम कईओ तरह से किया जाता है जिसमें अष्टांग, साष्टांग ,पंचांग, दंडवत, नमस्कार और अभिनंदन को मुख्य माना जाता है। इन सभी में से महिलाओं को साष्टांग प्रणाम करने की मनाही होती है। आइए ज्योतिर्विद पं रमेश भोजराज द्विवेदी जी से जानें ज्योतिष के इस रहस्य के बारे में।

प्रणाम का अर्थ -

pranam meaning in astrology

'प्रा' का अर्थ है सामने या पहले, और 'नाम' का अर्थ है झुकना या खींचना। संयुक्त शब्दों में, इसका अर्थ सम्मान के संकेत के रूप में दूसरों के सामने 'श्रद्धापूर्वक झुकना' है। प्रणाम मुख्य रूप से 6 प्रकार के होते हैं -

  • अष्टांग- जिसमें जमीन को शरीर के 8 अंग- घुटने, पेट, छाती, हाथ, कोहनी, ठुड्डी, नाक और कनपटी का स्पर्श किया जाता है।
  • साष्टांग- इसमें जमीन को शरीर के 6 अंग- पैर, घुटने, हाथ, ठुड्डी, नाक और कनपटी का स्पर्श होता है।
  • पंचांग- इसमें जमीन को शरीर के 5 अंग- घुटने, छाती, ठुड्डी, कनपटी और माथा आदि का स्पर्श होता है।
  • दंडवत- इसमें जमीन से छूने वाला शरीर के 2 अंगों घुटने और माथा का स्पर्श होता है।
  • नमस्कार -हाथ जोड़कर माथे को छूते हुए श्रद्धा करना।
  • अभिनंदन- दूसरों को सिर्फ सिर झुकाकर और हाथ जोड़कर उनकी छाती को छूकर अभिवादन करना।

प्रणाम का महत्व

भारतीय संस्कृति में प्रणाम करने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। ऐसा माना जाता है कि पूजा करने से न केवल आशीर्वाद मिलता है, बल्कि यह इस बात का भी प्रतीक है कि व्यक्ति ने अपना अभिमान छोड़ दिया है। शास्त्रों में कहा गया है कि जप करने से यज्ञ के समान पुण्य की प्राप्ति होती है। शास्त्रों में दंडवत यानी साष्टांग प्रणाम को सर्वश्रेष्ठ बताया गया है।

साष्टांग प्रणाम का अर्थ

sashtang pranam significance

दंडवत प्रणाम को पूजा की एक प्रक्रिया माना जाता है। षोडशोपचार पूजन विधि में सोलह विभिन्न उपायों से भगवान की पूजा की जाती है। जिसमें अंतिम उपचार को साष्टांग प्रणाम माना जाता है। साष्टांग दण्डवत् प्रणाम का अर्थ है अहंकार को त्याग कर स्वयं को ईश्वर को समर्पित कर देना।

आमतौर पर साष्टांग प्रणाम की मुद्रा में किसी भी मंदिर (मंदिर में प्रवेश के समय सीढ़ियों को झुककर स्पर्श क्यों किया जाता है) और तीर्थ स्थान पर प्रणाम किया जाता है। अपने गुरुओं के चरणों में लेटना और प्रणाम करना हमारी परंपरा रही है। साष्टांग प्रणाम में जमीन को शरीर के 6 अंग- पैर, घुटने, हाथ, ठुड्डी, नाक और कनपटी का स्पर्श करते हैं।

इसमें ठुड्डी, छाती, दोनों हाथ, दोनों घुटने और पैर अर्थात व्यक्ति का पूरा शरीर पैरों से लेकर सिर तक जमीन का स्पर्श करता है। साष्टांग प्रणाम करते समय पेट का स्पर्श जमीन पर नहीं होना चाहिए।

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महिलाओं को क्यों नहीं करना चाहिए साष्टांग प्रणाम

why women should not do shastang pranam

महिलाओं का साष्टांग प्रणाम या दंडवत प्रणाम शास्त्रों में अनुचित माना गया है क्योंकि शास्त्रों के अनुसार स्त्री का गर्भ और उसके वक्ष का स्थान बहुत ही पवित्र माना जाता है और इसे कभी भी जमीन पर स्पर्श नहीं करना चाहिए।

क्योंकि महिलाएं गर्भ में एक जीवन का पोषण करती हैं और वक्ष स्थल उसके आहार का स्रोत बनता है, इसी वजह से इन स्थानों को सबसे पवित्र माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि साष्टांग प्रणाम के समय शरीर के ये हिस्से जमीन में न स्पर्श करें इसलिए महिलाओं को इस प्रणाम को करने की मनाही होती है।

इस प्रकार साष्टांग प्रणाम जीवन के लिए महत्वपूर्ण होने के बावजूद भी महिलाओं को नहीं करना चाहिए। अगर आपको यह स्टोरी अच्छी लगी हो तो इसे फेसबुक पर शेयर और लाइक जरूर करें। इसी तरह और भी आर्टिकल पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से। अपने विचार हमें कमेंट बॉक्स में जरूर भेजें।

Images: freepik.com

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