हाल ही में एक्ट्रेस सारा अली खान No Shame Movement का हिस्सा बनी हैं। इस इवेंट में उन लड़कियों के बारे में बात की गई जिनके कंसेंट के बिना ही उनकी तस्वीरें, वीडियो, फोटो आदि इंटरनेट पर शेयर कर दिया जाता है। इस इवेंट को लेकर लॉ एंड जस्टिस मिनिस्टर किरण रिजिजू ने भी एक्ट्रेस को बधाई दी और जागरूकता बढ़ाने का काम किया। एक तरह से देखा जाए तो इस तरह के मूवमेंट्स बहुत ही खास होते हैं जहां महिलाओं के मुद्दों पर बात होती है, लेकिन क्या ये काफी है?
आज हम नो शेम मूवमेंट की बात कर रहे हैं और यहां ये जानना जरूरी है कि #NoShame आखिर किस-किस चीज़ के लिए चलाया जा सकता है। छोटी बच्चियों से लेकर बुजुर्ग महिलाओं तक सभी को कई चीज़ों का सामना करना पड़ता है और उन समस्याओं को लेकर कोई भी नो शेम कैम्पेन नहीं चलती।
चलिए आज बात करते हैं उन समस्याओं की जिनके लिए नो शेम कैम्पेन बहुत जरूरी है।
कोई लड़की अगर शादी ना करने का फैसला लेती है तो उसे तरह-तरह की उलाहने दी जाती है। शादी को लेकर माना जाता है कि अगर लड़की 30 पार कर गई है तो उसकी सारी जिंदगी ही व्यर्थ है। लड़की अगर कुंवारी बैठी रहे तो उसे ही नहीं उसके परिवार वालों को भी ताने दिए जाते हैं। ऐसे में एक नो शेम कैम्पेन इसके लिए भी होनी चाहिए।(शादी के बाद लड़कियों की जिंदगी में आते हैं ये बड़े बदलाव)
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लड़कियां अगर इमोशनल हो जाएं तो उन्हें लेकर बहुत ज्यादा बातें बनाई जाती हैं। अगर वो इमोशनल ना हों तो भी बहुत ज्यादा बातें बताई जाती हैं। लड़की इमोशनल ना हो उसे पत्थर दिल मान लिया जाता है और रोना शुरू करे तो ये समझा जाता है कि बस ये तो रोती ही रहती है। इसके लिए भी एक नो शेम कैम्पेन होना चाहिए।(इमोशनल ईटिंग को कैसे रोकें)
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अगर कोई लड़की मां बनना चाहती है तो ये उसकी मर्जी होनी चाहिए ना कि समाज के दबाव में आकर उसे ये फैसला लेना चाहिए। आजकल के ट्रेंड में अगर कोई लड़की मां ना बनना चाहे तो उसे ताने मारे जाते हैं और ये समझाने की कोशिश की जाती है कि उसकी जिंदगी तो बच्चे के बिना अधूरी है। उसपर दबाव डाला जाता है उस जिम्मेदारी के लिए जो उसे निभानी ही नहीं है। इसके लिए भी एक नो शेम कैम्पेन होनी चाहिए।
आजकल कपड़ों को लेकर बहुत सारी बातें कही जा रही हैं। ईरान में हिजाब हटाने को लेकर आंदोलन किया जा रहा है और भारत में हिजाब पहनना जारी रखने को लेकर आंदोलन किया जा रहा है। इन दोनों ही मामलों को लोग बहुत कम्पेयर कर रहे हैं, लेकिन ये नहीं सोच रहे हैं कि आखिर यहां बात आज़ादी की है। जिसे ये पहनना है वो पहने और जिसे नहीं पहनना वो ना पहने। महिलाओं को इसकी आजादी मिलनी चाहिए कि वो चाहे मॉर्डन कपड़ों में कंफर्टेबल हो सके या फिर ट्रेडिशनल में उन्हें टोकने वाला कोई ना हो। इसके लिए भी एक नो शेम कैम्पेन जरूरी है।
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जैसा कि हम जानते हैं कि विक्टिम ब्लेमिंग भारत की एक बहुत बड़ी समस्या है जहां पर रात में घूमने वाली महिलाओं को लेकर तरह-तरह की बातें की जाती हैं। इसके अलावा, जो लड़कियां बाहर नहीं जाती उन्हें लेकर भी तरह-तरह की बातें कही जाती हैं और उन्हें बोर माना जाता है। ऐसे में भला लड़कियां करें तो क्या करें।
ऐसे कई सारे मुद्दे हैं जिन्हें लेकर लड़कियों को गाहे-बगाहे ट्रोल किया जाता है और आइरनी यही है कि लोग ये समझना पसंद नहीं करते कि आखिर जीने की आज़ादी तो हर किसी को होनी चाहिए ना। अगर ब्रा की स्ट्रैप भी दिखने लगे तो ये माना जाता है कि लड़कियों के लिए तो ये बहुत ही गलत हो गया, लेकिन आखिर ऐसा क्यों? क्या वो उनके पहनावे का हिस्सा नहीं है? इस तरह की छोटी-छोटी बातों को लेकर रोजाना लड़कियों को परेशानी से जूझना पड़ता है और इसे लेकर रोज़ाना उन्हें शर्मिंदा किया जाता है।
सोचने वाली बात है कि नो शेम कैम्पेन की जरूरत कहां-कहां है। अगर आपको ये स्टोरी अच्छी लगी है तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी से।
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