करवा चौथ अब नजदीक आ गया है और 24 अक्टूबर 2021 को महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखेंगी। करवा चौथ का महत्व बहुत होता है और इस दिन पर दिवाली जैसी ही रौनक देखने को मिलती है। करवा चौथ का त्योहार बहुत ही अनोखा है जहां व्रत करने के साथ-साथ पौराणिक कथाएं भी बताई जाती हैं और चांद की पूजा की जाती है। महिलाएं चांद देखकर ही व्रत खोलती हैं, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि करवा चौथ के दिन चांद इतना लेट क्यों निकलता है?
इसके पीछे पौराणिक कथाएं भी बहुत हैं और साइंटिफिक कारण भी हैं। तो चलिए आज आपको हम करवा चौथ के चांद के बारे में कुछ बताते हैं कि आखिर क्यों ये चांद इतनी देर से निकलता है और इसका रंग शुरुआत में लाल क्यों होता है।
आखिर क्यों देर से निकलता है चांद?
पौराणिक कथाएं बताती हैं करवा चौथ का चांद कार्तिक महीने का चांद होता है और इसे शिव का प्रतीक माना जाता है जो तपस्या के बाद निकलता है। इसलिए इस चांद तो बहुत शुभ माना गया है और इसके देरी से निकलने के पीछे भी पूर्णिमा और तिथि का कारण बताया गया है जो काफी हद तक सही है। दरअसल, करवा चौथ के दिन चांद देरी से इसलिए निकलता है क्योंकि वो तिथि ही ऐसी है।
आपको शायद इस बारे में ना मालूम हो, लेकिन पृथ्वी की परिक्रमा करने के लिए चांद को 27.3 दिन लगते हैं और इसे समय पर पूरा करने के लिए वो 12 डिग्री हर दिन घूमता है। इस बदलाव के कारण हर दिन चांद 48 मिनट देरी से निकलता है और हर दिन पूर्व में 12 डिग्री घूमने के कारण हमें कई बार चांद अलग-अलग जगह पर दिखता है।
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पर आप ये ना सोचें कि अगली पूर्णिमा तक इस हिसाब से तो चांद को पूरी रात निकलना ही नहीं चाहिए। 12 डिग्री घूमने के कारण ही चांद धीरे-धीरे दिखना बंद हो जाता है और अमावस का फेज शुरू हो जाता है। इसमें चांद के निकलने का समय नहीं देखा जाता बल्कि चांद का एंगल देखा जाता है। तभी महीने में एक बार चांद दिखता ही नहीं है और कम होता जाता है। चांद पृथ्वी की परिक्रमा पूर्णिमा के दिन से अगली पूर्णिमा तक 27.3 दिनों में पूरा करता है।
अब अगर इस हिसाब से देखा जाए तो हर महीने जो इस तरह की चौथ तिथि आति है उसमें चांद देरी से निकलता है। यही कारण है कि करवा चौथ के दिन भी चांद को निकलने में 3 घंटे देरी हो जाती है। ये पूर्णिमा से 4 दिन बाद की तिथि होती है और 48 को अगर 4 से गुणा किया जाए तो 192 मिनट (3 घंटे 12 मिनट) होते हैं और इसलिए सूर्यास्त के लगभग तीन घंटे बाद चांद आता है। अकेले पूर्णिमा ऐसी तिथि होती है जब चांद ठीक सूर्यास्त के समय ही दिखता है और उससे ही तिथि को गिना जाता है।
आखिर क्यों छलनी से देखा जाता है चांद?
चांद को छलनी से देखने की प्रथा दरअसल पौराणिक कथा पर निर्भर करती है जहां पर एक साहूकार के सात लड़के और उनकी एक बेटी सतौना की कहानी सुनाई जाती है। बहन के पहले करवा चौथ पर वो भूख से व्याकुल हो गई थी और सातों भाइयों ने छलनी में दीपक रख पेड़ पर चढ़कर उसे नकली चांद दिखा दिया था। ऐसे में बहन का व्रत छल से छलनी में दिया रखकर भंग किया गया था और कहानी के मुताबिक उसका पति काफी बीमार रहने लगा।
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इस प्रकार छलनी से चांद देखने की प्रथा शुरू हुई। अगर देखा जाए तो चांद को लेकर बहुत सारी भ्रांतियां और पौराणिक कथाएं सभी प्रचलित हैं, लेकिन चांद के देर से निकलने की बात साइंस से जुड़ी हुई है।
नोट: ये जानकारी लंबोदर मिश्रा के रिसर्च पेपर से ली गई है। इस रिसर्च पेपर को आप 'How much do you know about the Earth and the Moon?' नाम से सर्च कर सकते हैं। ये रिसर्च पेपर मार्च 2012 में पब्लिश किया गया है। यहीं से जाकर आप जानकारी ले सकते हैं कि किस तरह से चंद्रमा पृथ्वी के चक्कर काटता है। इसे http://nopr.niscair.res.in नामक वेबसाइट पर पोस्ट किया गया है।
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