हमारे धर्मशास्त्रों में न जाने कितनी ऐसी बातें हैं जो हमारे जीवन से जुड़ी हुई हैं और हम उनका अनुसरण करते चले आ रहे हैं। ऐसी ही प्रथाओं में से एक है कोई भी हवं और शुभ काम दिन में करना। ज्योतिष शास्त्रों में सभी शुभ काम दिन के समय ही किए जाते हैं और सभी संस्कार भी सूरज की रोशनी में ही संपन्न होते हैं, लेकिन आप सभी ने देखा होगा कि ज्यादातर हिंदू शादियां रात के समय में ही होती हैं।
हम सभी इन शादियों का भरपूर मजा उठाते हैं और कभी न कभी ये सवाल भी सामने आता है कि जब सभी शुभ काम दिन के उजाले में होते हैं तो आखिर शादियां रात में क्यों? इस प्रश्न का सही जवाब आइए ज्योतिर्विद पं रमेश भोजराज द्विवेदी जी से जानें ।
क्या है हिंदू शादी की प्रथा
हिन्दुओं में शादी को एक ऐसी प्रथा माना जाता है जिसका निर्धारण ईश्वर के द्वारा ही तय होता है और इसी वजह से ऐसा कहा जाता है कि जोड़ियां ऊपर से निर्धारित होती हैं। दरअसल यही वजह है कि शादी के समय कुंडली मिलान किया जाता है, जिससे रिश्ता मजबूती से चलता रहे और इसी वजह से शादी को जन्म जन्मांतर का रिश्ता माना जाता है।
शादी को न सिर्फ दो लोगों के बीच का रिश्ता माना जाता है बल्कि इसे दो परिवारों के बीच मिलन माना जाता है। इसी वजह से विवाह संबंधी सभी कार्य सावधानी से और शुभ मुहूर्त में ही किए जाते हैं। हिंदू धर्म के अनुसार सात फेरों के बाद ही शादी की रस्म पूरी मानी जाती है|
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हिंदू शादियां रात में होने का कारण
ज्योतिष में ऐसी मान्यता है कि सभी विवाह दिन के सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त में ही संपन्न करने की सलाह दी जाती है। ऐसे में जब विवाह कार्य रात्रि के समय शुरू होता है तब फेरे, जिसे शादी की सबसे प्रमुख रस्म माना जाता है।
ऐसी मान्यता है कि फेरे यदि ध्रुव तारे को साक्षी मानकर किए जाते हैं तो वो रिश्ता जन्म जन्मांतर के लिए बन जाता है। इसी वजह से ज्योतिष में रात में शादी करने की सलाह दी जाती है क्योंकि उसी समय ध्रुव तारा दिखाई देता है। यही एक वजह है जिसके कारण हिन्दू शादियां रात में करने की सलाह दी जाता है।
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क्या है ज्योतिष एक्सपर्ट की राय
रात में शादी करने के मुख्य कारण के बारे में ज्योतिर्विद पंडित भोजराज द्विवेदी जी का कहना है कि हिंदू धर्म में सूर्य और चंद्रमा को प्रधान देव या प्रत्यक्ष देव कहा गया है। इसी वजह से हिंदू धर्म के ज्यादातर संस्कार सूर्य व चन्द्रमा को साक्षी मानकर किए जाते हैं।
सूर्य को शक्ति यानि अग्नि का परिचायक माना गया है, वहीं चंद्रमा को शीतलता और शांति का परिचायक माना जाता है। चंद्रमा को मन का कारक भी माना जाता है अतः वेद भगवान कहते हैं 'चंद्रमा मनसो जात' इसी वजह से युगल के बीच शांत, आत्मीय व मन से संबंध के लिए विवाह संस्कार रात्रि के दौरान किए जाते हैं।
इसके अतिरिक्त ध्रुव तारा जिसे शुक्र का तारा भी कहा जाता है और शुक्र पति-पत्नी के बीच के मधुर संबंधों (सुखी दांपत्य जीवन के उपाय) का परिचायक है। रात में शादी इसकी भी साक्षी बनती है और फेरों के बाद जब दूल्हे और दुल्हन ध्रुव तारे दर्शन करते हैं तथा उसी तरह से अक्षय और ध्रुव संबंधों का आशीष मांगते हैं।
वहीं रात में अग्नि जो कि सूर्य का साक्षी स्वरूप है उसके चारों ओर फेरे लिए जाते हैं और चंद्रमा, शुक्र प्रत्यक्ष रूप से इसका साक्षी स्वरूप होते हैं। इन्हीं ज्योतिष कारणों से हिन्दू विवाह रात्रि के समय संपन्न किए जाते हैं।
क्या दिन के समय भी हो सकती हैं शादियां
शास्त्रों के अनुसार ऐसी मान्यता है कि सभी शुभ काम दिन में हो करना उचित होता है, इसलिए शादियां भी रात के बजाय दिन में भी संपन्न हो सकती हैं। ऐसा कोई नियम नहीं है कि शादियां केवल रात के समय ही हो सकती हैं। दरअसल यदि पुराणों की कथाओं की मानें तो सीता और द्रौपदी का स्वयंवर भी दिन में ही हुआ था और इसी वजह से दिन में शादी करना भी शुभ माना जाता है।
वास्तव में शादी के लिए उपयुक्त समय रात्रि का होने की वजह से इसी समय में विवाह कार्य करने की सलाह दी जाती है।
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