महाभारत में कई ऐसी घटनाओं का उल्लेख मिलता है जिनके बारे में लोगों को पता ही नहीं है। ऐसी ही एक घटना जुडी है अर्जुन और दुर्योधन से। महाभारत में वर्णित है कि दुर्योधन न एक बार अर्जुन को वरदान दिया था और उसी वरदान के कारण दुर्योधन न सिर्फ महाभारत युद्ध में हारा था बल्कि उसने खुद अपनी मृत्यु का मार्ग सुनिश्चित कर दिया था। ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से जब हमें इस बारे में पूछा तो उन्होंने हमें इस किससे से जुड़े कई रोचक तथ्य बताए।
अर्जुन ने दुर्योधन से क्या वरदान मांगा था?
पौराणिक कथा के अनुसार, महाभारत युद्ध से पहले पांडवों वनवास के दौरान एक दिन एक सुंदर सरोवर के निकट आते हैं, जहां वे निवास कर रहे थे। उसी समय दुर्योधन भी उसी स्थान पर अपना शिविर स्थापित करता है।
एक दिन, जब दुर्योधन सरोवर में स्नान करने जा रहा था, स्वर्ग से कुछ गंधर्व वहां आ पहुंचे। स्नान के अधिकार को लेकर दुर्योधन और गंधर्वों में विवाद हो गया, जो अंततः युद्ध में बदल गया। दुर्योधन गंधर्वों से हारकर बंदी बन गए।
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तभी अर्जुन वहां पहुंचे और अपनी शत्रुता को परे रखते हुए दुर्योधन को गंधर्वों के बंधन से मुक्त कराया। इस उपकार के लिए अभिभूत दुर्योधन अर्जुन से किसी भी वरदान की मांग करने के लिए कहने लगेगा।
दुर्योधन बार-बार अर्जुन से वरदान मांगने पर जोर देने लगा। तब अर्जुन ने भविष्य में आवश्यकता के अनुसार वरदान मांगने की बात कही। इस वरदान को अर्जुन ने तब मांगा तब महाभात युद्ध का आरंभ हो चुका था और पांडव खतरे में थे।
जब भगवान कृष्ण को यह पता चला कि भीष्म ने पांच दिव्य बाणों की प्रतिज्ञा ली है, तो उन्होंने अर्जुन को दुर्योधन से मिले वरदान की याद दिलाई। कृष्ण के परामर्श पर अर्जुन उसी रात दुर्योधन के शिविर में गए और वरदान में उन बाणों की मांग करने लगे।
दुर्योधन अर्जुन की बात सुनकर चकित हो गया, लेकिन अपनी प्रतिज्ञा और क्षत्रिय धर्म का पालन करते हुए दुर्योधन ने अपने वरदान के वचन को पूर्ण किया और श्री कृष्ण की योजना सफल हुई।
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दुर्योधन ने उन पांच दिव्य बाणों को अर्जुन को सौंप दिया। अगली सुबह, दुर्योधन ने पितामह भीष्म से उन बाणों के बदले नए बाणों को अभिमंत्रित करने का अनुरोध किया, लेकिन भीष्म ने अपने वचन के प्रति दृढ़ रहते हुए इसे अस्वीकार कर दिया।
इस प्रकार अर्जुन द्वारा मांगा गया वरदान पांडवों की सुरक्षा कवच साबित हुआ और कुरुक्षेत्र के युद्ध में कौरवों की पराजय का एक महत्वपूर्ण कारण भी बना। दुर्योधन ने एक प्रकार से खुद अपनी मृत्यु लिखी।
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