herzindagi
image

कब, क्यों और कैसे होती है Cloud Seeding? यहां जानें मीनिंग, साइट इफेक्ट्स और पूरा प्रोसेस

दिल्ली में क्लाउड सीडिंग कर 28 अक्टूबर, 2025 को कृत्रिम बारिश की पहली टेस्टिंग की गई है। हालांकि यह कोई पहली बार नहीं है, इससे पहले भी दो बार यह कोशिश की जा चुकी हैं। नीचे लेख में जानें कब, क्यों और कैसे की जाती है क्लाउड सीडिंग और इसका वास्तिवक अर्थ क्या होता है।
Editorial
Updated:- 2025-10-29, 17:35 IST

दिवाली के बाद से दिल्ली में प्रदूषण बढ़ गया है। बढ़ते वायु प्रदूषण को कम करने के लिए बीते दिन यानी कल क्लाउड सीडिंग कराई गई थी। हालांकि यह प्रयास विफल रहा है। इसके पीछे का कारण बादल में नमी की पर्याप्त मात्रा न होना है। नीचे इस लेख में जानिए क्या है कब क्लाउड सीडिंग कराई जाती है और साथ ही जानें इसका अर्थ, प्रभाव, प्रक्रिया सब कुछ-

क्लाउड सीडिंग का अर्थ (Meaning of Cloud Seeding)

क्लाउड सीडिंग को अच्छे से समझने के लिए यह जानना सबसे पहले जरूरी है, कि क्लाउड सीडिंग का अर्थ क्या होता है। बता दें कि क्लाउड सीडिंग आर्टिफिशियल रेन यानी कृत्रिम वर्षा या हिमपात कराने की एक वैज्ञानिक तकनीक है, जिसमें मशीनों द्वारा बादलों में सिल्वर आयोडाइड जैसे रसायन छिड़के जाते हैं ताकि नमी संघनित होकर बारिश बन सके।

2 - 2025-10-29T123655.460

क्या है और कैसे की जाती है क्लाउड सीडिंग?

भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान,पुणे जिसे आईआईटीएम भी कहते हैं। यहां के शोधकर्ताओं के अनुसार, क्लाउड सीडिंग बादलों में बदलाव कर बारिश करने की नई तकनीक है।

अब मन में दूसरा सवाल आता है कि आखिर कैसे- बता दें कि इसमें सिल्वर आयोडाइड जैसे कणों का इस्तेमाल किया जाता है, जो बादलों में मिलाया जाता है तो चारों ओर जल वाष्ण संघनित होता है।

कैसे काम करते हैं ये कण- बता दें कि ठंडे बादलों में,जहां तापमान शून्य डिग्री सेल्सियस से कम होता है। वहां सिल्वर आयोडाइड के कण बादल में मिलाएं जाते हैं। इसकी वजह से उस स्थान पर पानी और बर्फ जमा हो जाते हैं। इन कणों की संख्या जब बढ़ती है, उस दौरान ये नीचे गिरते हैं और बारिश का रूप ले लेता है।

इसे भी पढ़ें- क्या होता है Cloudburst? जानें एक बार में कितना गिरता है पानी

अगर सवाल अगर तापमान शून्य डिग्री सेल्सियस से ज्यादा हो, तब

ऊपर बताई गई जानकारी को जानने के बाद मन में सवाल आता है कि अगर उस जगह का तापमान शून्य डिग्री सेल्सियस से ज्यादा हो, तो क्लाउड सीडिंग कैसे हो सकती हैं? बता दें कि इस स्थिति के बारे में शोधकर्ताओं ने बताया कि नमी भरे बादलों में, जहां तापमान शून्य डिग्री सेल्सियस से ऊपर होता है, सोडियम क्लोराइड या पोटेशियम क्लोराइड जैसे केमिकल का इस्तेमाल किया जाता है, जो पानी की बूंदों के संलयन को बढ़ावा देने और बारिश कराने में मदद करते हैं। वर्षा कराने की कोशिश में सुधार करने के लिए सीडिंग एजेंट के रूप में काम किया जाता है।

1 - 2025-10-29T123657.651

क्लाउड सीडिंग क्यों की जाती है? (Why is Cloud Seeding Done?)

क्लाउड सीडिंग को करने के पीछे कई कारण होते हैं। नीचे प्वाइंट में आसानी से समझें-

सूखा पड़ने पर- क्लाउड सीडिंग सूखा से राहत दिलाती है। यह उन इलाकों में बारिश की मात्रा बढ़ाने में मदद करती है जहां लंबे समय से सूखे की स्थिति बनी हुई है, जिससे फसलों को पानी मिल सके।

पानी की कमी को करता है कम- बांधों और जलाशयों में जलस्तर को बढ़ाने के लिए कृत्रिम वर्षा यानी क्लाइड सीडिंग कराई जाती है ताकि पीने और सिंचाई के पानी की कमी पूरी हो सके।

प्रदूषण कंट्रोल करने के लिए- घने स्मॉग (धुंध) या वायु प्रदूषण वाले शहरों में, कृत्रिम बारिश हवा में मौजूद महीन कणों को धोकर नीचे ले आती है, जिससे वायु गुणवत्ता में अस्थायी सुधार होता है। कभी-कभी इसका उपयोग ओलों के आकार को कम करने के लिए भी किया जाता है, ताकि फसलों को नुकसान न पहुंचे।

क्लाउड सीडिंग कब की जाती है? (When is Cloud Seeding Done?)

अब अगला सवाल की क्लाउड सीडिंग किस स्थिति में की जाती है। इसका जवाब यह है कि क्लाउड सीडिंग किसी भी समय नहीं की जा सकती है। हालांकि इसके लिए मौसम की अनुकूल परिस्थितियां होना आवश्यक है।

इस प्रक्रिया के लिए हवा में पर्याप्त नमी वाले बादल पहले से मौजूद होने चाहिए। साफ आसमान से बारिश नहीं करा सकती। साथ ही बादल की वर्टिकल थिकनेस, हवा की गति और बादल के भीतर वर्टिकल हवा प्रवाह का सही होना जरूरी है। वहीं यह प्रक्रिया तब की जाती है जब किसी विशेष क्षेत्र में सूखे या प्रदूषण जैसी समस्या हो और कृत्रिम बारिश से तुरंत लाभ की उम्मीद हो।

दिल्ली में कब और कितने बार कराई गई है क्लाउड सीडिंग (Cloud Seeding Delhi Date)

दिल्ली में बीते दिन यानी 28 अक्टूबर, 2025 मंगलवार को क्लाउड सीडिंग की गई थी। हालांकि यह प्रयास विफल रहा। बता दें कि नमी कम रहने के कारण बारिश खुलकर नहीं हो सकी। शोधकर्ता के अनुसार, आर्टिफिशियल बारिश में 50 प्रतिशत नमी का होना अनिवार्य होता है।

क्लाउड सीडिंग के साइड इफेक्ट्स क्या हैं? (Cloud Seeding Side Effects)

किसी भी चीज के इस्तेमाल के फायदे के साथ उसके दुष्प्रभाव होना लाजमी है। उसी प्रकार क्लाउड सीडिंग के भी फायदे के साथ-साथ नुकसान भी हैं। बता दें कि इसमें इस्तेमाल किए जाने वाले केमिकल सिल्वर आयोडाइड है, कम विषैला होता है। हालांकि, बड़े पैमाने पर और लंबे समय तक इस्तेमाल करने की वजह से मिट्टी और जल स्रोतों में रसायनों का जमाव हो सकता है, जिससे नेचर और जलीय जीवन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

स्वास्थ्य पर भी पड़ता है प्रभाव- अत्यधिक रसायनों के संपर्क में आने से सांस या त्वचा में जलन की समस्या हो सकती है। हालांकि, कृत्रिम बारिश के पानी में इन रसायनों की मात्रा आमतौर पर बहुत कम होती है, जो सुरक्षित मानी जाती है।

दूसरे क्षेत्र पर प्रभाव-एक क्षेत्र में कृत्रिम वर्षा कराने से संभव है कि उसी दिशा में आगे बढ़ने वाले बादलों से दूसरे क्षेत्रों में प्राकृतिक वर्षा की मात्रा कम हो जाए।

इसे भी पढ़ें- दिल्ली में होगी नकली बारिश, जानिए क्या है क्लाउड सीडिंग

पहली बार कब कराया गया था क्लाउड सीडिंग

साल 1947 में वायुमंडलीय विज्ञानी बर्नार्ड वोनगुट ने पहली बार कृत्रिम वर्षा कराने की कोशिश की और इसे आगे बढ़ाया। उस दौरान सिल्वर आयोडाइड क्रिस्टल का इस्तेमाल करके शुष्क बर्फ की तुलना में क्लाउड सीडिंग में अच्छे रिजल्ट हुए थे।

अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो इसे शेयर जरूर करें। इसी तरह के अन्य लेख पढ़ने के लिए जुड़ी रहें आपकी अपनी वेबसाइट हरजिंदगी के साथ।

Image Credit- Freepik/ Gemini

यह विडियो भी देखें

Herzindagi video

Disclaimer

हमारा उद्देश्य अपने आर्टिकल्स और सोशल मीडिया हैंडल्स के माध्यम से सही, सुरक्षित और विशेषज्ञ द्वारा वेरिफाइड जानकारी प्रदान करना है। यहां बताए गए उपाय, सलाह और बातें केवल सामान्य जानकारी के लिए हैं। किसी भी तरह के हेल्थ, ब्यूटी, लाइफ हैक्स या ज्योतिष से जुड़े सुझावों को आजमाने से पहले कृपया अपने विशेषज्ञ से परामर्श लें। किसी प्रतिक्रिया या शिकायत के लिए, compliant_gro@jagrannewmedia.com पर हमसे संपर्क करें।