हिंदू धर्म में सप्ताह के हर एक दिन को ग्रह अनुसार वार में विभाजित किया गया है और उस दिन पर उसी ग्रह की पूजा या उस ग्रह से जुड़े कार्यों को करना शुभ माना गया है। इस कड़ी में गुरुवार का दिन बृहस्पति यानी कि गुरु ग्रह को समर्पित है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा भी की जाती है।
ज्योतिष शास्त्र में बताया गया है कि बृहस्पतिवार के दिन भगवान विष्णु की पूजा के दौरान उनके समक्ष कपूर का दीया जलाया जाए तो इससे उनकी असीम कृपा मिलती है, लेकिन वहीं अगर इस दिन केले के पत्ते पर कपूर रखकर जलाया जाए तो इससे कई लाभ प्राप्त हो सकते हैं। ऐसे में ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से आइए जानते हैं कि आखिर गुरुवार के दिन केले के पत्ते पर कपूर जलाने का क्या महत्व है और इससे किन लाभों की प्राप्ति होती है।
केले के पत्ते पर कपूर जलाने के लाभ
गुरुवार के दिन केले के पेड़ की पूजा की जाती है क्योंकि उसमें भगवान विष्णु और गुरु ग्रह का वास माना गया है। वहीं, अगर केले के पत्ते पर कपूर जलाया जाए तो इससे भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और दूसरी ओर कुंडली में गुरु ग्रह मजबूत बनते हैं।
गुरु ग्रह को विद्या, शिक्षा, करियर, नौकरी, व्यापार आदि का कारक माना गया है। ऐसे में केले के पत्ते पर कपूर जलाने से जगाने एक ओर विद्या या शिक्षा प्राप्ति में आ थी परेशानियां नष्ट होती हैं तो वहीं, नौकरी एवं व्यापार में आ रही दिक्कतों से भी निजात मिलती है।
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कपूर को नकारात्मक ऊर्जा दूर करने वाला बताया गया है। ऐसे में अगर केले के पत्ते पर कपूर हर गुरुवार के दिन जलाया जाए तो इससे घर में मौजूद नकारात्मकता तो दूर होगी ही, साथ ही व्यक्ति के भीतर स्थित बुरी ऊर्जा या विचार भी खत्म होंगे।
गुरुवार के दिन केले के पत्ते पर कपूर जलाने से विवाह संबंधी परेशानियां भी दूर होती हैं। अगर प्रेम विवाह में देरी हो रही है या रिश्ता की बात बनते-बनते बिगड़ जाती है तो इस उपाय को करने से निश्चित ही ये सभी समस्याएं शीघ्र दूर होने लगेंगी।
भगवान विष्णु की पूजा से वैवाहिक जीवन की उन्नति के मार्ग खुलते हैं। ऐसे में गुरुवार के दिन केले के पत्ते पर कपूर जलाने से वैवाहिक जीवन में प्रेम के साथ-साथ भक्ति का भी परस्पर प्रवाह होता है जिससे दांपत्य जीवन शांतिपूर्ण बना रहता है।
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गुरुवार के दिन भगवान विष्णु की पूजा के बाद केले के पत्ते पर कपूर जलाने से पूजा का दोष दूर होता है। अगर किसी कारण से पूजा में कोई भूलचूक हो गई हो तो ऐसा करने से पूजा में दोष उत्पन्न नहीं होता है और पूजा का संपूर्ण फल व्यक्ति को प्राप्त होता है।
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